(पति पत्नी में मंहगाई को लेकर होली पर नोकझोक)
बलम ना करो बलजोरी
अबके फागुन खेलूंगी ना
तोरे संग मैं होरी .
बलम ना करो बलजोरी .
मेरी बात माने नाहीं
मैं ना मानूंगी तोरी.
बलम ना करो बलजोरी.
बलम ना करो बलजोरी.
चांदी की पिचकारी लाओ,
लाओ रंग गुलाबी लाल,
जयपूर से लंहगा लाओ
तब जाकर छुओ गाल.
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मंहगाई की मार ने गोरी
जीना किया मुहाल.
पिचकारी मंहगी हुई
मंहगा हुआ गुलाल.
आओ हम रंग चुरा लें
प्रीत की फुलवारी से
आओ खेले हम होली
नयनन की पिचकारी से.
नयनन की पिचकारी से
एक दूजे को रंग लगाएंगे
हाथों में ले अबीर नेह का
गालों को लाल कर जायेंगे.
............नीरज कुमार ‘नीर’
यह मेरी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना है.
Comment
अगर पत्नी मान जाय आपकी बातों को
समझ सके आपके मन के जज्बातों को
तो समझिए आपका घर स्वर्ग है
आपको सपरिवार होली मुबारक!
नीरज जी, महंगाई की आढ़ लेकर कोई भी पति बच नहीं पाएगा . होली तो होली है.......!
एक गीत है ' मो से छल किए जाए, हाय रे हाय सैयां बेईमान'' बहुत बधाई
नीरज जी चाहे जितना समझाइए पत्नी मानेगी नहीं। ये भावनात्मक बातें शादी के बाद डिमांड पूरी होने पर ही पत्नी को समझ में आती हैं।
मेरी बधाई स्वीकारें। साथ ही होली की शुभकामनाएं। कम से कम सलवार सूट ही पत्नी को खरीद दीजिएगा।
सुन्दर अभिव्यक्ति, हार्दिक बधाई श्री नीरज कुमार "नीर"
आदरणीय,नीरज कुमार ‘नीर‘ जी, बहुत - बहुत सुन्दर! बधाई स्वीकार करें।
होली का बहुत ही सुन्दर गीत पति-पत्नी के बीच का सुन्दर भाव, अति उत्तम।
bahot sundar bhai neeraj ji................badhai ho
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