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फागुनी दोहे " होली 2013 " -

दस फागुनी दोहे  " 2013 "

तेरी ही खातिर सजे रंग अबीर के थाल ,
तेरे आने से हुई मेरी होली लाल ।

रंग पर्व में घुल गए इंतज़ार के रंग ,
होली सच में शोभती अपनों के ही संग ।

सरसों टेसू और पलाश हैं बसंत के दूत ,
रंग रूप से कर रहे मादकता आहूत ।

लज्जा तेरा रंग है मेरा रंग संकोच ,
ऐसे में कैसे मने होली तू ही सोच ।

मुझको अब भी याद है वो होली वो फाग ,
तन पर रंग था प्रीत का मन में प्रीत की आग ।

माँ तेरे हाथों बनी गुझिया का वो स्वाद ,
लगता हरपाल साथ है तेरा आशीर्वाद ।

पिचकारी थी पांच की दस पैसे का रंग ,
दिनभर हम भी गाँव में करते थे हुडदंग ।

कहाँ पुलक उत्साह है कहाँ आपसी स्नेह ,
शहरों में हम ढो रहे अपनी छूछी देह ।

                           - अभिनव अरुण
                              {25032013}

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Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 10:06am

दोहों के मर्म आप तक पहुँचने में सफल रहे ये मेरे लिए आशीष के समान है आदरणीय श्री आशीष त्रिवेदी जी आभार आपका !!

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 23, 2013 at 10:44am

बहुत खूब अभिनव जी। होली के लगभग एक माह के बाद भी अबीर गुलाल की महक जेहन में बस गयी। सच है त्योहारों का उत्साह महज औपचारिकता बनता जा रहा है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2013 at 4:49pm

भाई अभिनव अरुणजी. ..

छंदोत्सव और काव्य महोत्सवों में इस छंद पर सबसे अधिक बातें होती हैं. इसी मंच के भारतीय छंद विधान समूह में दोहा शिल्प पर आलेख है. 

सुधीजनों ने आपकी प्रस्तुत छंद-प्रस्तुति में वर्तमान शिल्पगत दोषों के प्रति आपको अगाह नहीं किया, यह देख कर मैं चकित भी हूँ. मेरे कहने को अन्यथा आप नहीं लेंगे यह आशा है, आशय समझियेगा. 

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

सादर धन्यवाद

Comment by Abhinav Arun on March 26, 2013 at 4:24pm

       आदरणीया डॉ प्राची जी ! आपने जिन विन्दुओं की और ध्यान दिलाया , आभार आपका कृपया त्रुटी पूर्ण समस्त दोहे बता दें तो उन्हें एडिट कर दूं । मैं दोहा विधा को भली प्रकार नहीं जानता , स्वीकार है । आपको  होली की हार्दिक शुभकामनाएं !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 26, 2013 at 1:49pm

आदरणीय अरुण अभिनव जी,

बहुत समय बाद आपकी रचना ब्लॉग पर देख कर बहुत खुशी हुई...

बहुत सुन्दर होली के रंग बिखेरे हैं आपने इस दोहावली में... पर शिल्प और मात्राएं कई जगह आगे पीछे हो गयी हैं..

बेहद अदभुत है तो है....गुरु गुरु से अंत नहीं होता विषम चरण का

संस्कार के पाँव पर श्रद्धा का टीका ,

ये है तो सब है यहाँ वरना सब फीका ...सम चरण का अंत हमेशा गुरु लघु से करना होता है ..

सादर  शुभकामनाएँ 

Comment by Abhinav Arun on March 26, 2013 at 1:31pm

श्री ब्रिजेश जी दोहे   प्यारे लगे प्रयास सफल हुआ हार्दिक बधाई होली की और आभार आपक्पा !!

Comment by Abhinav Arun on March 26, 2013 at 1:30pm

बहुत बहुत शुक्रिया राम शिरोमणि जी !!

Comment by Abhinav Arun on March 26, 2013 at 1:29pm

श्री राजेश जी होली की हार्दिक बधाई सहित आभार आपका !!

Comment by Abhinav Arun on March 26, 2013 at 1:29pm

हार्दिक आभार श्री केवल जी दोहे आपको पसंद आये लिखना सार्थक हुआ !!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2013 at 5:29pm

आदरणीय श्री अभिनव अरूण जी, जितने प्यारे दोहे उतनी ही प्यारी फोटो,  बहुत बहुत सुन्दर!  बधाई स्वीकारें।

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