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होली है!...............सरररररररर!!!

होली के हुड़दंग मा, खद्दरवा सत रंग।

आम जनता डर रही, शिव धनुवा जस भंग।।1


हाथी साइकिल चले, गदहा राज चलाय।
हर साख उल्लू बैठा, जनता रही लजाय।।2

होली से होली कहे, रंगों का रस रंग।
कौन खूनी रंग रहा, भारत मन बदरंग।।3


लड़खत दारू ठेलिये, कौन दिशा कहॅ ठांव।
नलियै में औंधे पड़े, धिक्कारे सब गांव।।4


होरियारन से होली, रंगो सजे समाज।
नशा मवाली फाग में, गड़बड़ करते काज।।5


रंग देख होली कहे, चलो चली मधुमास।
पानी के अकाल में, केसर टेशु तलास।।6


अबीर लाल गुलाल के, तेवर पेवर देख।
खो गई मॅहगाई में, हरबल पलाश रेख।।7


पापड़ गोझिया रसभरी, छपन भोग नमकीन।
होली दारू ना मिले, होत बड़े गमगीन।।8


के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 5:52pm

होरियारन से होली, रंगो सजे समाज।
नशा मवाली फाग में, गड़बड़ करते काज...   यह दोहा के नियमानु्सार ख़ारिज़ द्विपदी है, भाई

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 31, 2013 at 1:22pm

आदरणीय, श्री सौरभ पाण्डे जी, गुरू जी, आपको सपरिवार प्रेम-सद्भावना के प्रतीक होली के पावन त्योहार पर बहुत बहुत शुभकामनाएं। जी! गुरूजी, मुझे भी कुछ कमी लग रही थी। खास कर द्वितीय और अन्तिम दोहे में। आगे और मेहनत करूंगा। सादर एवं बहुत बहुत धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 1:58pm

आप जिस तरह से कई-कई छंदों में रचनाकर्म करते हैं उस परिप्रेक्ष्य में दोहा छंद में यह प्रविष्टि अत्यंत हल्की और जल्दबाज़ी मे हुई कोशिश लगी.  दोहा छंद में समुचित जानकारी उपलब्ध है. आप शिल्पगत प्रयास करें.

शुभेच्छाएँ

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