कितने "अपने"
पहचाने थे यही रास्ते
पेड़ों की छाँह ओढ़े
कुहनी टेक
सरक जाते थे कितने
अच्छे-बुरे तजुर्बे
अचानक
चौंक जाती थी शाम
"मुझको घर जाना है"
तुम्हारे अरुणिम ललाट पर
अकस्मात चिंता की छायाएँ
और फिर ...
और फिर देख
मेरी आँखों में अपनी आँखों की चमक
तुम्हारा ही मन नहीं करता था
हाथ छोड़ चले जाने को
कि मानो जाते-जाते रुक जाती थी शाम
एक "और" आज के प्रेम-पत्र…
ContinueAdded by vijay nikore on September 30, 2019 at 10:22pm — 6 Comments
जहाँ ये कर दिखाना होगाl
हमारे दिल बताना होगा l
करोगे बात जैसी तुम भी ,
सवालों को उठाना होगा l
सुनी जो भीड़ तूने गाती ,
मिरे दिल का फ़साना होगा l
ख़बर जाती कहानी…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on September 30, 2019 at 7:00pm — 2 Comments
212*
तीर नज़रों का उनका चलाना हुआ,
और दिल का इधर छटपटाना हुआ।
हाल नादान दिल का न पूछे कोई,
वो तो खोया पड़ा आशिक़ाना हुआ।
ये शब-ओ-रोज़, आब-ओ-हवा आसमाँ,
शय अज़ब इश्क़ है सब सुहाना हुआ।
अब नहीं बाक़ी उसमें किसी की जगह,
जिनकी यादों का दिल आशियाना हुआ।
क्या यही इश्क़ है, रूठा दिलवर उधर,
और दुश्मन इधर ये जमाना हुआ।
जो परिंदा महब्बत का दिल में बसा,
बाग़ उजड़ा तो वो बेठिकाना…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 30, 2019 at 5:49pm — 4 Comments
व्यथित हृदय
अनुपम सृजन सृष्टि की बेटी
बेटी को ना ठुकराएं।
प्यार मुहब्बत की निधि बेटी
हाथ बढ़ाकर अपनाएं।।
बेटी अगर अनादृत होगी
जग कलुषित हो जाएगा।
आन मान सम्मान धरा पर
कहीं नहीं बच पायेगा।।
मृदुल भाव मधु सदृश बेटियाँ
जग रोशन नित करतीं हैं।
अंतर्मन के हर विषाद तम
सुखद अमिय रस भरतीं हैं।।
सस्मित सुरभि लुटाकर हर पल
जग मधुमय कर देतीं हैं।
सदा अंक में प्रदीप्त करके
हर बाधा हर लेतीं…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on September 27, 2019 at 7:05pm — 7 Comments
मूर्खता विद्व्ता के सर पर ताण्डव कर रही है ,
सर के अंदर छुपी विद्व्ता संतुलन बनाये हुए है ,
क्योंकि मूर्खता में कोई वजन नहीं है ,
विद्व्ता शालीन है , संयत है , संतुलित है
आराम से मूर्खता को ढोये जा रही है ,
क्योंकि यही युग धर्म है आज , शायद ,
कि वह मूर्खता को शिरोधार्य करे ,
उसे नाचने के लिए ठोस मंच दे , आधार दे।
युगदृष्टा जाने विद्व्ता ने शायद ही कभी
मूर्खता का पृश्रय लिया हो , उसे आधार बनाया हो।
भाषा वैज्ञानिक स्वयं भ्रमित…
Added by Dr. Vijai Shanker on September 27, 2019 at 6:30pm — 4 Comments
यक्ष प्रश्न - लघुकथा -
गौतम ने बैंड बाजे के साथ अपनी एस यू वी गाड़ी से गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जन हेतु दोनों बांहों में सहेज कर बाहर निकाला।
गौतम जैसे ही मूर्ति को लेकर विसर्जन हेतु नदी के तट पर पहुंचा और मूर्ति को विसर्जित करने ही वाला था कि एक अज्ञात हाथ ने उसका हाथ पकड़ लिया।
गौतम अचंभित होकर उस हाथ को पहचानने की चेष्टा करने लगा। उसे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि यह तो उसकी बाँहों में बैठे प्रभु गणेश का ही हाथ था।
उसे लगा कि प्रभु इस अंतिम विदा की बेला में…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 27, 2019 at 12:47pm — 10 Comments
12122×4
हमीं थे सच के करीब दिलबर यकीन तुमको दिलायें कैसे
नज़र से तुमने गिरा दिया जब नज़र में तुमको बसायें कैसे
मिज़ाज़ से तो गई नहीं है तुम्हारी यादें तुम्हारी बातें
जमीं से पौधा उखड़ गया पर हवा से खुशबू मिटायें कैसे
जो पकड़े बैठे हैं जिंदगी को वो अपने साये से डर गए हैं
तमाम दौलत कमा चुके हैं सुकून दिल का कमायें कैसे
ग़ज़ल की उंगली पकड़ के चलना सभी के गम में उदास होना
यही तो शाइर की जिंदगी है हम इसको नेमत बतायें…
ContinueAdded by मनोज अहसास on September 27, 2019 at 2:36am — 6 Comments
चन्द्रयान-दो चल पड़ा, ले विक्रम को साथ।
दुखी हुआ बेचैन भी, छूट गया जब हाथ।।1
चन्द्रयान का हौसला, विक्रम था भरपूर।
क्रूर समय ने छीन कर, उसे किया मजबूर।।2
माँ की ममता देखिए, चन्द्रयान में डूब।
ढूँढ अँधेरों में लिया, जिसने विक्रम खूब।।3
चन्द्रयान दो का सफर, हुआ बहुत मशहूर।
सराहना कर विश्व ने, दिया मान भरपूर।।4
चन्द्रयान दो के लिए, विक्रम प्राण समान।
छीन लिया यमराज से, साध…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 26, 2019 at 9:00pm — 6 Comments
अचानक उसे लगा कि पीछे से किसी ने नाम लेकर पुकारा, उसने साइकिल रोकी और पलट कर देखा. थोड़ा पीछे ही उसके परिचित वकील साहब खड़े थे और उसकी तरफ इशारा कर रहे थे. वह साइकिल धीरे धीरे चलाते हुए वकील साहब के पास पहुंचा और उनको नमस्ते किया.
"क्या बात है मैनेजर साहब, आज साइकिल चला रहे हैं. गाड़ी पंचर हो गयी है या खराब है", वकील साहब ने मुस्कुराते हुए पूछा.
उसे हंसी आ गयी, वह क्या साइकिल सिर्फ तभी चला सकता है जब उसकी गाड़ी खराब हो. फिर उसने हँसते हुए ही कहा "अरे नहीं वकील साहब, गाड़ी ठीक है. बस यूँ…
Added by विनय कुमार on September 26, 2019 at 5:49pm — 4 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
-चॉंदी-सोने से दो पल हैं, प्रिय देखॅूं या बात करूं ।
या बांहों में चाँद खिलाकर जगमग सारी रात करूं II
आज असंयम को बहलाऊॅं –‘मेरा पुण्य तुझे मिल जाये ।
जब मैं शांत, अशांत हृदय का पागल झंझावात करूं I।
गजरे का आडंबर तोडूँ , कुंतल शशि -मुख पर छा जाये I
मैं कर से उलझन सुलझाऊॅ, प्रेम -प्रकंपित गात करूं …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 26, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
२२१/ २१२१/ २२२/१२१२
रस्ते सभी जहाँ के ढब आसान जिंदगी
तू ही उलझ के रह गयी नादान जिंदगी।१।
पानी हवा बहुत है यूँ जीने के वास्ते
करती इकट्ठा मौत का सामान जिंदगी।२।
जीवन नहीं करे है तू जीवन सा पर करे
सासों पे झूठ - मूठ का अहसान जिंदगी।३।
क्यूबा बनी सोमालिया, ईराक, सीरिया
कब होगी तू पता नहीं जापान जिन्दगी।४।
देती है उसको मान ढब आती है मौत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 26, 2019 at 6:54am — 8 Comments
2×15
एक ताज़ा ग़ज़ल
वो कहते हैं चाहत कब थी वो इक झूठा सपना था
मुझको भी वो भूलना होगा जो कुछ मैंने सोचा था
इससे बेहतर खुद को समझाने की बात नहीं कोई
जो कुछ किस्मत में लिक्खा था वो तो आखिर होना था
कुछ सालों से मैंने खुद को हँसते हुए नहीं देखा
कुछ सालों मैंने तेरी झूठी मुस्कान को देखा था
सोच समझ वाले लोगों की कुछ भी समझ नहीं आया
जाने कौन सा योग था जो मेरी कुंडली में बैठा था
तरकीबें नाकाम रही सब दुख से तुझे…
ContinueAdded by मनोज अहसास on September 26, 2019 at 12:48am — 2 Comments
Added by Satyanarayan Singh on September 25, 2019 at 10:47pm — 6 Comments
कुछ क्षणिकाएँ :
ख़ामोश जनाज़े
करते हैं अक्सर
बेबसी के तकाज़े
ज़माने से
..........................
सवालों में उलझी
जवाबों में सुलझी
अभिव्यक्ति की तलाश में
बीत गयी
ज़िंदगी
.................................
कोलाहल
ज़िंदगी का
डूब जाता है
श्वासहीन एकांत में
...................................
देकर
एक आदि को अंत
लौटते हुए
सभी खुश थे अंतस में
लेकर ये भ्रम…
Added by Sushil Sarna on September 25, 2019 at 7:00pm — 12 Comments
मैंने ढेरों पत्र लिखे तुमको
उत्तर जिनका अपेक्षित है
तुम व्यस्त हो गये हो शायद
या पता पता तुम्हारा है बदला
लिखते ऊँगली के पोर दुखे
मन करता लेकिन और लिखे
इसलिए डायरी लिख डाली…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 25, 2019 at 12:30pm — 2 Comments
1212 1212 1212 1212
शराब जब छलक पड़ी तो मयकशी कुबूल है ।
ऐ रिन्द मैकदे को तेरी तिश्नगी कुबूल है ।
नजर झुकी झुकी सी है हया की है ये इंतिहा ।
लबों पे जुम्बिशें लिए ये बेख़ुदी कुबूल है ।।
गुनाह आंख कर न दे हटा न इस तरह नकाब ।
जवां है धड़कने मेरी ये आशिकी कबूल है ।।
यूँ रात भर निहार के भी फासले घटे नहीं ।
ऐ चाँद तेरी बज़्म की ये बेबसी कुबूल है ।।
न रूठ कर यूँ जाइए मेरी यही है…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on September 24, 2019 at 9:30pm — 2 Comments
12122×4
अंधेरी घाटी में रोशनी का हसीन चश्मा जरूर होगा
हमें खबर तो नहीं है फिर भी तलब का रस्ता जरूर होगा
पुराने शब्दों की बारिशों में सकून अपना तलाश कर ले
जो उसके दिल में कहीं नहीं था वो खत में लिक्खा जरूर होगा
तेरे कदम यूं जमे हुए हैं, तुझे हिलाना सरल नहीं है
हमारी आहों से फिर भी इक दिन तेरा तमाशा जरूर होगा
चरागों का दम चुराने वाले क्या तुझको इतनी समझ नहीं है,
बुझेगी सूरज की जिंदगी जब, इन्हें जलाना जरूर होगा…
Added by मनोज अहसास on September 24, 2019 at 12:50am — 4 Comments
स्वरचित कविता
शीर्षक- "लक्ष्य तय करो जीवन का"
पंचभूत तन दो दिन का
लक्ष्य तय करो जीवन का
शैशव में मासूम रहें सब
सीखें हैं जीने का ढब
धीरे-धीरे तन मुस्काए
मन में चुलबुल शोखी आए
पथ पर मंथर कदम पड़ें
करतब करते लघु बड़े
गतिमय जीवन निश-दिन का
पंचभूत तन दो दिन का
लक्ष्य तय करो जीवन का
सदाचार का पाठ पढ़ो
सुगढ़ प्रेम के तंत्र गढ़ो
करो बड़ों का तुम सम्मान
बंधु!देव!मनुज-संतान!
छोटों पर वात्सल्य लुटाओ
खिलखिल करके गले…
Added by Dr. Anju Lata Singh on September 23, 2019 at 6:44pm — 3 Comments
शमा जली, उठा धुँआ
तुम वहाँ औऱ मैं यहाँ
सोचती हूँ के क्या लिखूं
जिस्म यहाँ औऱ दिल वहाँ
पकड़ी क़लम ने उंगलियां
टो सुझा नहीं के क्या लिखें
तेरी अधूरी दास्तां या फ़िर …
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 23, 2019 at 6:30pm — 1 Comment
कहाँ हूँ, कौन हूँ मैं
क्यूँ मद हवा सा डोल रहा
क्या कोई हवा का झोका हूँ जो
क्यूँ हर नियम को तोड़ चला ||
क्या बहते जल की धारा हूँ
जिधर चले उस ओर मार्ग बना
कल-कल, छल-छल की आवाज कर
शुद्ध तन-मन को मैं करता चला ||
क्या खुला आकाश हूँ मैं
जो अनंत, असीम है
जीव जन्म का बीज है जो
छोर का जिसके नहीं पता ||
क्या असीमित सी भू-धरा हूँ मैं
सहनता की सीमा नहीं
हर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 23, 2019 at 3:51pm — 6 Comments
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