For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

September 2015 Blog Posts (160)

रेतीला पत्थर

45 
रेतीला पत्थर
========
ए पर्णपूरित लता!
तू  इतनी न इतरा, 
अपने इस रूप पर ,
लावण्य पर, सरलता पर।
मालूम नहीं शायद, 
तू जिसे सरल अवलंबन मानती है,
वह सीधा सूखा ढाक है।
लिपटकर, जिससे आलिंगन कर, 
ऊपर को बढ़कर सुख आभास करती है,
वह तेरा हितैषी तेरा ही काल है।
तेरे रूप के प्रशंसक ये मानव,
कल उन्मत्त होकर,
पलास को पत्तों सहित अग्नि…
Continue

Added by Dr T R Sukul on September 22, 2015 at 10:53am — 2 Comments

फांसी - लघुकथा

जेल की दीवारे चीख चीख कर कह रही थी कि बीती रात रहमत अली ने हाल ही में सजा काटने आये कैदी को मार डाला। लेकिन उसके माथे पर एक भी शिकन नही थी, वो तो अपनी बैरक में खामोश बैठा सोच रहा था।

"अब मिला मुझे सकूं, उसको उसके किये की सजा दे कर मैंने अपनी बीबी को ही इंसाफ नही दिया बल्कि अदालत के झुठे फैसले को भी सच कर दिया है।"

"रहमत अली। अपनी खामोशी तोड़ो और बताओ कल रात क्या हुआ?" थानेदार ने सवाल पूछते हुये उसे लगभग झिंझोड़ दिया।

"अब छोड़िये भी साहब! रात गयी बात गयी।" रहमत अली एक गहरी…

Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 22, 2015 at 10:00am — 11 Comments

लघुकथा - पूंछ

लघुकथा – पूंछ

सीढ़ियाँ गंदी हो रही थी कविता ने सोचा झाड़ू निकल दूँ. यह देखा कर पड़ोसन ने कचरा सीढ़ियों पर सरका दिया.

बस ! फिर क्या था. कविता का पारा सातवे आसमान  पर, “ मैं इस के बाप की नौकर हूँ. नहीं निकाल रही झाड़ू,” बड़बड़ाते हुए कविता ऊपर आई , “ साली अपने को समझती क्या है ? कभी सीढ़ियों पर पानी डाल देगी. कभी लहसन का कचरा. कभी कुछ. मैं इस की नौकर हूँ जो रोजरोज सीढ़ियाँ साफ करती रहू. साली अपने को न जाने क्या समझती है ?

“ क्यों जी. आप बोलते क्यों नहीं.” उस ने पति के हाथ से अख़बार…

Continue

Added by Omprakash Kshatriya on September 22, 2015 at 8:30am — 4 Comments

"चिंगारियां"- (लघु कथा)

"चिंगारियां" - (लघु कथा)



"और ये देखो मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के वो नोट्स जो तुमने मुझे सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी के लिए मुझे दिये थे।इन्हें आज भी मैं संभाल कर रखे हुए हूँ। "- अस्त-व्यस्त से कमरे में वीरेंद्र ने पाँचवीं सिगरेट से एक लम्बा सा कश लेते हुए कहा- " सुमित , तुमने मेरे अंदर भी एक चिंगारी पैदा कर दी थी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए.... और विश्वास करो... वह एक आग में भी तब्दील हो गई थी तुम्हारे नियमित सान्निध्य में। तुम एक सच्चे दोस्त और मार्गदर्शक बने रहे… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 12:22am — 2 Comments

ग़ज़ल :- मगर वो साज़िशें करता रहेगा

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

नज़र पे जब तलक पर्दा रहेगा
तुम्हारा अक्स भी धुंदला रहेगा

मैं ज़ख़्मों की तिजारत कर रहा हूँ
बताओ फ़ायदा कितना रहेगा

वो सरगोशी में बातें कर रहा है
जो देखेगा उसे ख़दशा रहेगा

मिलेंगे हम मगर ये शर्त होगी
हमारे दरमियाँ पर्दा रहेगा

वहाँ मेरी ख़मोशी काम देगी
वो अपनी आग में जलता रहेगा

"समर" ,मालूम है अंजाम उसको
मगर वो साज़िशें करता रहेगा

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by Samar kabeer on September 21, 2015 at 11:15pm — 21 Comments

अ से अंधेरा~~~~~मनोज अहसास

बड़े दिनों के बाद में आखिर

उनका बुलावा आ ही गया

सरकारी शिक्षक होने का

मन में कितना हर्ष हुआ

घर से दूर जाना था मुझको

लेकिन सोचा कोई बात नहीं

यही सत्य है इस जग का

कुछ खोकर ही कुछ पाना है

रात से बेहतर होता सवेरा

भले ही बादल वाला हो

पहुँच गया जब शिक्षा मंदिर

देखकर मन बस टूट गया

ऐसा लगा

उन्नत समाज साफ़ सुथरा जीवन

कितना पीछे छूट गया

घोर कालिमा खुरदरी भूमि

श्यामपट्ट से चेहरों तक

मैले कपड़ो में नन्हा भारत

आँखों में… Continue

Added by मनोज अहसास on September 21, 2015 at 9:26pm — 12 Comments

कीचड़ .....

कीचड़ .....

सड़क पर फैले हुए कीचड से

एक कार के गुजरने से

एक भिखारन के बदन पर

सारा कीचड फ़ैल गया

अपनी फटी हुई साड़ी से कीचड़ पौंछते हुए

उसने अपने मन की भंडास निकालते हुए कहा

अमीरजादे गाड़ी से कीचड उछालते हैं

और पलट के भी नहीं देखते

इन्हें भूख से बिलबिलाते हुए

पेट को भरने के लिए रक्खा

भीख का कटोरा नजर नही आता

बस फ़टे कपड़ों से झांकता

बदन नज़र आता है

मेहरबानी पेट पर नहीं

बस बदन पर होती है

वो खुद पर गिरे कीचड़ को

साफ़…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2015 at 8:00pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पलट के फिर आयेंगी- शिज्जु

12112 12112 12112 12112

पलट के फिर आयेंगी वो महक सबा वो सहर कभी न कभी

उदास न हो कि होगा हर इक दुआ का असर कभी न कभी



ये राह बहुत तवील सही, तू तन्हा ओ बेक़रार सही

मगर तुझे याद आयेगी ये घड़ी ये सफ़र कभी न कभी



यूँ हाथ के आबलों पे न जा, ज़बीं से टपकती बूंदें न देख

दिखेगा ज़रूर दुनिया को भी, तेरा ये हुनर कभी न कभी



पिघलने लगेंगे संगे-महक, तेरे तबो-ताब से किसी दिन

निकाल के लायेंगे यही पत्थरों से नहर कभी न कभी



फ़लक़ ये ज़मीन आबो हवा,… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2015 at 5:22pm — 12 Comments

हाइकू

1-अंध विस्वास
चलो ख़त्म कर दे
एक होकर..

2- निभा रहा हूँ
प्रेमी जीवन रीत
साथ तुम्हारे---

3-वाह रे वाह
सब सुख मिलगा
मिली जो खाट---


4-शरद की रात
रजाई मेरे साथ
औ टूटी खाट

5-अहंकार है
अजब धरोहर
मानुष मन

मौलिक/अप्रकाशित
----आमोद बिन्दौरी

Added by amod shrivastav (bindouri) on September 21, 2015 at 3:08pm — No Comments

'मुखाग्नि'- (लघु कथा)

आज सुबह उस चाय की गुमटी पर गरमा गरम चाय पीते-पीते कुछ मुखों से शब्दों के अग्नि-बाण से निकल रहे थे।

"अरे सुना तुमने, मज़हब की बंदिशें तोड़ ग़रीब दोस्त संतोष को मुस्लिम युवक रज़्ज़ाक ने कल मुखाग्नि दी !"

यह सुनकर एक पंडित जी बड़बड़ाने लगे-

"सारा अंतिम संस्कार अपवित्र हो गया, पता नहीं आत्मा को कैसे शान्ति मिलेगी ?"

इस पर एक शिक्षित युवक बोला-

"अरे ये सब वो धर्मान्तरित मुसलमान हैं जो आज भी अपने मूल धार्मिक कर्मकांड गर्व से करते हैं।"

तभी एक दाढ़ी वाले ने दाढ़ी पर…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 21, 2015 at 9:30am — 24 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आज हमें होश में आने का नहीं -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122-- 1122 --1122 --112

 

इस तरह आज हमें होश में आने का नहीं

मुफ्त आई है मगर यार पिलाने का नहीं

 

सिर्फ रोता हुआ हर गीत सुनाने का नहीं…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on September 21, 2015 at 4:25am — 22 Comments

ग़ज़ल : जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २

 

चेहरे पर मुस्कान लगाकर बैठे हैं

जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं

 

कहते हैं वो हर बेघर को घर देंगे

जो कितने संसार जलाकर बैठे हैं

 

उनकी तो हर बात सियासी होगी ही

यूँ ही सब के साथ बनाकर बैठे हैं?

 

दम घुटने से रूह मर चुकी है अपनी

मुँह उसका इस कदर दबाकर बैठे हैं

 

रब क्यूँकर ख़ुश होगा इंसाँ से, उसपर

हम फूलों की लाश चढ़ाकर बैठे हैं

------------

(मौलिक एवं…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:29pm — 16 Comments

अगर पूर्वजों के सहारे न होते .

अगर रंग - बिरंगे ये नारे न होते.
तो फिर हम भी इतने बेचारे न होते .
बस बातों के मरहम से भर जाते शायद .
अगर ज़ख्म दिल के करारे न होते .
भला किसकी हिम्मत सितम ढा सके यूँ .
अगर हम जो आदत बिगाड़े न होते .
कहीं ना कहीं से तो शह मिल रहा है .
निर्भया के बसन यूँ उतारे न होते .
मिट जाती  कब की  ये रस्मोरिवाज़ें .
अगर पूर्वजों के सहारे  न होते .
  
मौलिक और अप्रकाशित
सतीश मापतपुरी

Added by satish mapatpuri on September 20, 2015 at 10:00pm — 3 Comments

लोकतंत्र (लघुकथा)

आम बजट के सत्र के बाद लोकतांत्रिक सरकार ने लोकतंत्र के एक नये तरीके इन्टरनेट से बजट पर एक सर्वे द्वारा जनता की राय मांगी|

 

कोई भी उसे खोलता तो सबसे पहले लिखा मिलता, "आपके अनुसार बजट कैसा है?" जिसके तीन विकल्प थे - सर्वमान्य, औसत-मान्य और अमान्य| जो कोई प्रथम दो विकल्प में से कोई एक चुनता, नाम, पता और टिप्पणी पूछी जाती, लेकिन यदि कोई अंतिम विकल्प को चुनता तो उससे पूछा जाता, "इसका उत्तरदायी कौन है?" इसके दो विकल्प थे - सरकार और जनता|

 

जिस-जिसने जनता को चुना उन्हें…

Continue

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 20, 2015 at 9:30pm — 5 Comments

औरतें [लघु कथा ]

"आजकल सर काफी बदल गए हैं ,नोटिस किया ?"

तीन चार रोलिंग चेयर , कहने वाली की तरफ घूम  गईं  I

"हाँ ss ...मै भी   देख रही हूँ ,पहले तो एक्स रे जैसी  आँखें ,ऊपर से नीचे तक हमें  घूरती  रहती थीं I पर आज कल तो एकदम झुकी रहती हैं Iक्या हो गया मशीन को ?"

"वैरी फनी ,पर सच में यार ,कुछ भी ख़ास पहनो ,बार बार अपने केबिन  में बुला लेते थे  बहाने से "I

"हाँ ss ..  इतना कांशस कर देते थे न कभी कभी , पर अब तो गुड मॉर्निंग का जवाब भी नज़रें नीची कर के देते हैं, चक्कर क्या है…

Continue

Added by pratibha pande on September 20, 2015 at 10:00am — 17 Comments

बिट्टू वाली नाव- (लघु कथा)

'बिट्टू वाली नाव'- (लघु कथा)



तीनों में से सिर्फ बिट्टू की नाव ही तैर पायी।दोनों बहनें फिर पीछे रह गयीं थीं। रह रह कर पल्लवी को नदी में अपनी और छोटी बहन की डूबती नावों का दृश्य याद आ रहा था।

बेचैन हो कर वह अपनी माँ से पूछ ही बैठी-"हमारी ज़िद पर इतने दिनों के बाद दादाजी ने हमारे लिए नावें बनायीं थीं। ऐसा क्यों मम्मी कि केवल बिट्टू की ही नाव सही तरीके से बनी और वह अच्छे से तैरती रही ?"

शिल्पा बेचारी बच्चों से क्या कह पाती, लेकिन भावुक होकर दोनों बेटियों के सिर पर हाथ फेरते समय… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 19, 2015 at 8:42am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर-- (ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

2122---2122---2122---212

 

वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर

हर दफा उनकी ख़ता रखते रहे ज़ेरे-नजर

 

ये इशारे मानिए दरिया बहुत गहरा…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on September 19, 2015 at 3:00am — 24 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल
(वहर 22 22 22 22 2 )

वो फिर घुस आया ,मन के समन्दर I
मैं छोड़ आया  जिसे मन्दिर अंदर  II

सब कसमें लेते हैं बदले की ,
अब रहे कहां बापू के बन्दर I

आजिज कोई हो नेमत देता ,
है कोई ऐसा मस्त कलन्दर I

अबरोधों से खुद है तुम्हें लड़ना ,
सम्भालो तुम अपने सभी सन्दरI

धन बल ज्ञान न बंधे जाति में ,
कौन यहाँ मुफलिस कौन सिकन्दर I

"मौलिक एवं अप्रकाशित "

Added by कंवर करतार on September 18, 2015 at 10:30pm — 4 Comments

लुटा हाला गया मुझ पर...गजल

बहर

1222/1222/1222/1222



अचानक आज ये कैसा ज़ुल्म पहरा गया मुझ पर।

सितम इतने कहा से वो लेकर ढा गया मुझ पर।।



न बारिश है न सावन है हवा का भी नही झोंका।

ये कैसे गम के बादल हैं कहा से छा गया मुझ पर।।



चलो अब चाँद तारों तुम मेरी हालत पे हँस भी लो।

तुम्हे अच्छा स मौका है अमावस आ गया मुझ पर।।



इजाजत दे गए अपने चिरागों घर जलाने की।

जला दो उनकी यादें जो चुभा भाला गया मुझ पर।।



लगे है जख्मकुछ ऐसे दुआ का भी असर न हो।

के वो… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on September 17, 2015 at 11:22pm — 22 Comments

गाँव-घर मुझको बुलाते हैं (ग़ज़ल)

1222  1222  1222  1222

छलकते आँसुओं को हम तभी क्यूं भूल जाते हैं..

किसी को याद करके हम कभी क्यूं मुस्कुराते हैं..

-

न हम अपनी वफ़ाओं को कभी भी छोड़ पाते हैं,

न अपनी बेवफाई से कभी वो बाज़ आते हैं..

-

फ़िदा इन ही अदाओं पर हुऐ थे हम कभी यारों,

ज़रा सी बात पे वो रूठ कर फिर मान जाते हैं..

-

नज़र की बात थी,पर वो कभी भी बूझ ना पाये,

ज़रा, हम हाल दिल का बोलने में हिचकिचाते हैं..

-

भटक के इस शहर में,उब…

Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2015 at 3:50pm — 8 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service