For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2019 Blog Posts (89)

आओ मिलकर घर बनाये

ईट पत्थर से बना मकान

उसमें रहते दो इंसान

रिश्तों को वो कदर न करते

एक-दूजे से बात ना करते

कहने को एक मकान में रहते

पर एक-दूजे से घृणा करते

मकान की परिभाषा

को सिद्ध करते ||

 

कच्ची मिटटी का एक, छोटा घर

स्वर्ग से सुंदर, प्यारा घर

एक परिवार की जान था, जो  

प्रेम की सुंदर मिशाल था, वो

सब सदस्य साथ में रहते

हसतें-खेलतें घुल-मिल रहते

नारी के सम्मान के संग सब  

एक दूजे का आदर…

Continue

Added by PHOOL SINGH on April 16, 2019 at 4:47pm — No Comments

हैरान हो जाता हूँ, जब कभी

आँखों में अश्रु निकल आते है मेरे

इतिहास में जा, जब खोजता हूँ

नारी उत्पीडन की प्रथाओ की

कड़ी से कड़ी मै जोड़ता हूँ

हैरान हो जाता हूँ, जब कभी

इतिहास में जा, जब खोजता हूँ

 

कैसी नारी कुचली जाती

चुप होके क्यों, सब सहती थी

बालविवाह जैसी, कुरूतियों की खातिर

सूली क्यों चढ जाती थी

सती होने की कुप्रथा में क्यों

इतिहास नया लिख जाती थी

चुप होके क्यों, सब सहती थी

सूली क्यों चढ जाती थी ||

 

जब कभी…

Continue

Added by PHOOL SINGH on April 16, 2019 at 10:45am — 4 Comments

विवशतायें (लघुकथा) :

बहाव को रोकने के लिये किसी भी प्रकार के बंध या बंधन काम नहीं आ पा रहे थे। तेज बहाव के बीच एक टीले पर कुछ नौजवान अपनी-अपनी क्षमता और सोच अनुसार विभिन्न पोशाकें पहने, विभिन्न स्मार्ट फ़ोन, कैमरे और दूरबीनें लिए हुए बहती तेज धाराओं के थमने या थमाये जाने; बचाव दल के आने या बुलवाये जाने; नेताओं, मंत्री, यंत्री, धर्म-गुरुओं अथवा विशेषज्ञों के दख़ल करने या करवाने के भरोसे, प्रतीक्षा और शंका-कुशंकाओं के साथ माथापच्ची करते हुए एक-दूसरे के हाथ थामे खड़े हुए थे। कोई तटों की ओर देख रहा था, तो कोई आसमां की…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 15, 2019 at 9:31pm — 6 Comments

क्षणिकाएँ :

क्षणिकाएँ :

१.

झाँक सका है कौन

जीवन सत्य के गर्भ में

निर्बाध गति

मौन यति

शाँत या अशांत

बढ़ता है सदा

अदृश्य और अज्ञात लक्ष्य की ओर

हो जाता है सम्पूर्ण

एक अपूर्णता के साथ

एक जीवन

२.

लिख गया कोई

खारी बूँदों से

रक्तिम गालों पर

विरह के

स्मृति ग्रन्थ

रह गई दृष्टि

निहारती

सूने चिन्हों से अलंकृत

अवसन्न से

प्रेम पंथ

३.

हो गई समर्पित

जिसे अपना मान

कर गया वही…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 15, 2019 at 7:59pm — 8 Comments

ग़ज़ल _(रहबरी उनकी मुझको हासिल है)

(फाइ ला तुन _मफा इलुन _फ़ेलुन)

रहबरी उनकी मुझको हासिल है l

अब भला किसको फिकरे मंज़िल है l

दे सफ़ाई न क़त्ल पर वर्ना

लोग समझेंगे तू ही क़ातिल है l

उस हसीं से गिला है सिर्फ यही

वो वफ़ाओं से मेरी गाफिल है l

दोस्तों से वो राय लेते हैं

सिर्फ़ उलफत में ये ही मुश्किल है l

ढूँढ कर लाए तो कोई ऎसा

मेरा महबूब माहे कामिल है l

जो बचाता है बदनज़र से उन्हें

उनके रुखसार का ही वो तिल है…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 15, 2019 at 12:00pm — 11 Comments

पलकों पे ठहर जाता है - ग़ज़ल

मापनी - 2122, 1122,1122, 22(112)

 

दूर साहिल हो भले, पार उतर जाता है

इश्क में जब भी कोई हद से गुज़र जाता है

 

है तो मुश्किल यहाँ तकदीर बदलना लेकिन    

माँ दुआ दे तो मुकद्दर भी सँवर जाता है  

 

हमसफ़र साथ रहे कोई…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on April 15, 2019 at 9:30am — 6 Comments

संविधान शिल्पी

भीमराव बहुजन के त्राता

जनजीवन के भाग्य विधाता

सदा विषमता से टकराए

ज्वलित दलित हित आगे आए ll

लड़कर भिड़कर भेद मिटाए

पग पीछे को नहीं हटाए

सहकर ठोकर राह बनाए

तम से गम से ना घबराए ll

बोधिसत्व भारत के ज्ञानी

भारतरत्न भीम हैं शानी

दूर किये अश्पृश्य बुराई

वर्णभेद की पाटे खाई ll

छुआछूत का भूत भगाए

समरसता समाज में लाए

बहुजन हित की लड़े लड़ाई

वंचित को अधिकार दिलाई ll

शोषित कुचले जन के…

Continue

Added by डॉ छोटेलाल सिंह on April 14, 2019 at 6:47pm — 8 Comments

राजनीति - लघुकथा -

राजनीति - लघुकथा -

आज शहर में देश के जाने माने और सबसे बड़े नेता जी की चुनावी रैली थी। समूचा शहर उमड़ पड़ा था। हर तबके और हर समुदाय के लोग मौजूद थे। पिछले चुनाव की तरह इस बार भी लोगों ने नेता जी से बड़ी आशायें लगा रखी थीं।

एक तो पहले ही नेताजी तीन घंटे देरी से आये। धूप और गर्मी से लोग परेशान थे। मगर फिर भी सब डटे हुए थे क्योंकि अधिकाँश लोग तो पैसे लेकर सभा में आये थे। बचे हुए लोग भविष्य में कुछ मिलने की आशायें लगाये थे। नेताजी ताबड़तोड़ डेढ़ घंटे अपना चिर परिचित  भाषण देकर चले…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on April 14, 2019 at 11:22am — 8 Comments

डाटा रिकवरी! (लघुकथा) :

कई दिनों से टल रहा काम निबटा कर, थके-हारे मिर्ज़ा मासाब अपने अज़ीज़ दोस्त पंडित जी के साथ अपने घर वापस पहुंचे। अपनी नाराज़ बेगम साहिबा को कुछ इस अंदाज़ में देखने लगे कि बेगम का ग़ुस्सा फ़ुर्र से उड़ गया!



"क्या बात है पंडित जी! आज ये हमें इस तरह क्यूँ घूर रहे हैं!" कुछ शरमा कर मुस्कराते हुए बेगम ने अपने पल्लू की आड़ लेकर कहा।



"डाटा रिकवरी करवा कर आये हैं मिर्ज़ा जी के लेपटॉप की!" पंडित जी ने दोस्त का कंधा दबाते हुए कहा।



"अच्छा! वो तो बहुत बढ़िया किया आपने। बहुत…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 13, 2019 at 11:30pm — 5 Comments

नवगीत- राजनीति के पंडे

लेकर आये

हैं जुगाड़ से,

रंग-बिरंगे झंडे

सजा रहे

हर जगह दुकानें,

राजनीति के पंडे

 

खंडित जन

विश्वास हो रहा…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on April 13, 2019 at 10:07pm — 6 Comments

'आम चुनाव और नेता'

आल्हा छंद (16, 15 अंत में गुरु लघु)

लोकतंत्र के महापर्व में, हुए सभी नेता तैयार

शब्द बाण से वार करें वे, छोड़ छाड़ के शिष्टाचार।।

युध्द भूमि सा लगता भारत, जहाँ मचा है हाहाकार

येन केन पाने को सत्ता, अपशब्दों की हो बौछार।।

खून करें वे लोकतंत्र का, जुमले हैं इनके हथियार

हित जनता का भूल गए वे, ऐसा इनका है आचार

हे जन मन तुम जाग उठो अब, व्यर्थ न जाये यह त्योहार

ऐसा कुछ इस बार करो तुम, राजनीति बदले आकार ।।

रंग बराबर बदलें ऐसे,…

Continue

Added by Vivek Pandey Dwij on April 13, 2019 at 8:27am — 6 Comments

महाभुजंगप्रयात सवैया-रामबली गुप्ता

सूत्र-आठ यगण प्रति पद; 122x8

चुनो मार्ग सच्चा करो कर्म अच्छे जहां में तुम्हारा सदा नाम होगा।

करो यत्न श्रद्धा व निष्ठा भरे तो न पूरा भला कौन सा काम होगा।।

न निर्बाध है लक्ष्य की साधना जूझना मुश्किलों से सरे-आम होगा।

इन्हें जीतना पीढ़ियों के लिए भी तुम्हारा नया एक पैगाम होगा।।1।।

करे सामना धैर्य से मुश्किलों का न कर्तव्य से पैर पीछे हटाए।

नहीं हार से हार माने जहां में कभी कोशिशों से न जो जी चुराए।।

अँधेरा घना या निशा हो घनेरी…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 13, 2019 at 7:32am — 4 Comments

मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है (४२ )

(१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२ )

.

मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है 

उक़ूल पर ज्यों पड़े हैं ताले अदब का ख़ुर्शीद ढल रहा है 

**

किसी की माँ का नहीं है रिश्ता किसी भी दल से मगर यहाँ पर

ये पाक रिश्ता भरी सभा में बिना सबब ही उछल रहा है

**

किसी ने की याद सात पुश्तें किसी को कह डाले चोर कोई

जुबान बस में नहीं किसी की जुबाँ का लहज़ा बदल रहा है …

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 13, 2019 at 1:00am — 3 Comments

ग़ज़ल

122 122 122 12

मुहब्बत की ख़ातिर ज़िगर कीजिये ।

अभी से न यूँ चश्मे तर कीजिये ।।

गुजारा तभी है चमन में हुजूऱ ।

हर इक ज़ुल्म को अपने सर कीजिये ।।

करेगी हक़ीक़त बयां जिंदगी ।

मेरे साथ कुछ दिन सफ़र कीजिये ।।

पहुँच जाऊं मैं रूह तक आपकी ।

ज़रा थोड़ी आसां डगर कीजिये ।।

वो पढ़ते हैं जब खत के हर हर्फ़ को ।

तो मज़मून क्यूँ मुख़्तसर कीजिए ।।

लगे मुन्तज़िर गर…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 12, 2019 at 10:34pm — 2 Comments

कुण्डलिया छंद-

ढलती जाती उम्र में, डगमग होती नाव।

कभी-कभी नैराश्य के, आ जाते हैं भाव।।

आ जाते हैं भाव, और दुख होता भारी।

लगने लगती व्यर्थ, तभी यह दुनियादारी।।

जीर्णशीर्ण यह नाव,चले हिचकोले खाती।

घिरता है अवसाद, उम्र जब ढलती जाती।।

2-

माला फेरी उम्रभर, तीरथ किए हजार।

काम क्रोध मद मोह से, पाया कभी न पार।।

पाया कभी न पार, जिन्दगी व्यर्थ गँवाई।

बीत गई अब उम्र, विदा की बेला आई।।

मन में रखकर द्वेष, बैर अपनों से पाला।

धुला न मन का मैल,जपी निसदिन ही…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on April 12, 2019 at 9:22pm — 6 Comments

उम्र....

उम्र ...



गर्भ से चलती है

धरती पर पलती है

आँखों को मलती है

संग साँसों के चलती है

उम्र

जिस्म की दासी है

युग युग से प्यासी है

ख़ुशी और उदासी है

छलती ही जाती है

उम्र

मस्तानी जवानी है

अधूरी सी कहानी है

लहरों की रवानी है

रेत सी फिसल जाती है

उम्र

काल की दुपहरी है

चिताओं पर ठहरी है

ज़माने से बहरी है

धधक जाती है चुपके से

उम्र

कल तक जो चलती थी

आशाओं…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 12, 2019 at 5:16pm — 4 Comments

देशभक्ति का चोला

देशभक्ति का चोला पहन

देश का युवा घूम रहा

मतवाला होके डोल रहा

ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||

 

घूम घूम कर,

झूम झूम कर

वीरो की गाथा खोज रहा

ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||

 

बलिदान को अपने वीरो के

हर पल हर क्षण को

रम रमा कर यादों में अपनी

खोया-खोया फिर रहा||

ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||

 

"मौलिक और अप्रकाशित"

 

Added by PHOOL SINGH on April 12, 2019 at 3:30pm — No Comments

कर्म ओर किस्मत

उम्र संग ये बढती है

कर्म से अपने चलती है

परीक्षा धैर्य की लेकर

मार्ग प्रशस्त ये करती है||

 

कर्म के पथ पर चढ़कर

ये, अगले कदम को रखती है

हार-जीत के थपेड़े दे देकर

निखार हुनर में करती है||

 

त्रुटी को सुधार के तेरी

आत्मविश्वास से बढ़ती है

उतार चढ़ाव के मार्ग बना

हर परस्थितियो लड़ने को  

तैयार हमें ये करती है||

 

तरक्की की सीढी चढ़े सदा

लक्ष्य निर्धारित करती है

उठा-गिरा…

Continue

Added by PHOOL SINGH on April 12, 2019 at 3:05pm — 2 Comments

कुछ क्षणिकाएं :

कुछ क्षणिकाएं :

उल्फ़त की निशानी

आँख में

थिरकता

बूँद भर पानी

...........................

समाज

अंधेरों के घेरों में

सभ्यता

न साँझ में

न सवेरों में

..........................

माँ की लाश

बिलखता विश्वास

टूटा आकाश

बेटी के पास

.............................

जीवन रंग

हुए बदरंग

रिश्तों के संग

...............................

दृष्टि में विकार

बढ़ता व्यभिचार

नारी…

Added by Sushil Sarna on April 11, 2019 at 7:51pm — 2 Comments

जीना हमकों सिखा दिया

वक्त की उठक बैटक ने

जीना हमकों सिखा दिया

जिन्दगी की पेचीदा परिस्थितयों से

लड़ना हमकों सिखा दिया

जीना हमकों सिखा दिया||

 

मुखौटों में छुपे चहरों से

रूबरू हमकों करा दिया

क्या कहेगी ये दुनियाँ

इस उलझन से जो छुड़ा दिया   

जीना हमकों सिखा दिया ||

 

लोग कहे तो हंसे हम

और कहे तो रोये

लोगों के हाथो चलती, जिंदगी को

खुल के जीना सिखा दिया

जीना हमकों सीखा दिया ||

 

साथ ना छोड़ेगे के…

Continue

Added by PHOOL SINGH on April 11, 2019 at 5:21pm — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service