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मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है (४२ )

(१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२ )

.

मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है 
उक़ूल पर ज्यों पड़े हैं ताले अदब का ख़ुर्शीद ढल रहा है 
**
किसी की माँ का नहीं है रिश्ता किसी भी दल से मगर यहाँ पर
ये पाक रिश्ता भरी सभा में बिना सबब ही उछल रहा है
**
किसी ने की याद सात पुश्तें किसी को कह डाले चोर कोई
जुबान बस में नहीं किसी की जुबाँ का लहज़ा बदल रहा है 
**
कोई करा दे कहीं पे दंगे किसी भी मज़हब की आड़ लेकर
कहीं पे जादू चला किसी का कहीं पे फ़तवा भी चल रहा है
**
ग़रीब के सब हिमायती हैं तमाम वादे उसी की ख़ातिर
यहाँ इसी कश्मकश में लेकिन ग़रीब का दम निकल रहा है
**
अवाम चुपचाप देखता  है अजब नज़ारे सियासतों के
लगे है ऐसे कि घर में आकर कोई उसे जैसे छल रहा है
**
न अब अटल सा है मीर कोई न रहनुमा है कलाम जैसा 
गिरा है मेयार मीर का जो उरूज  से नित फिसल रहा है 
**
चुनाव आयोग दायरे में रहे सदा चाहती सियासत
तमाम कोशिश के बावज़ूद अब उसी का सिक्का ही चल रहा है
**
शराब साड़ी बँटे अभी भी तमामतर टोटके भी जारी
जगह जगह नोट का यूँ मिलना 'तुरंत' जनता को खल रहा है
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'बीकानेरी |
मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Samar kabeer on April 16, 2019 at 5:53pm

// उरूज़  का अर्थ बुलंदी से लिया है//

तो इसे "उरूज" कर लें,'ज्' के नीचे से बिंदी हटा लें ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 16, 2019 at 5:39pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब | आदाब | हौसला आफजाई के लिए दिली शुक्रिया | अवाम शब्द पढ़ने सुनने में स्त्रीलिंग ही लगता है अच्छा हुआ सर ,आपने बता दिया मैंने तो हमेशा स्त्रीलिंग में ही प्रयोग किया है | उरूज़  का अर्थ बुलंदी से लिया है |सादर | 

Comment by Samar kabeer on April 16, 2019 at 2:35pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'अवाम चुपचाप देखती है अजब नज़ारे सियासतों के'

आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ "अवाम" शब्द पुल्लिंग है ।

'गिरा है मेयार मीर का जो उरूज़ से नित फिसल रहा है'

इस मिसरे में 'उरूज़' का क्या अर्थ है? 

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