Continueदोहा मुक्तक. . . .
दर्द भरी हैं लोरियाँ, भूखे बीते रैन।
दृगजल से रहते भरे, निर्धन के दो नैन ।
हुआ कटोरा भीख का, सिक्कों का मुहताज -
दूर तलक मिलता नहीं,अब निर्धन को चैन ।
*****
आँसू शोभित गाल का, कौन यहाँ हमदर्द ।
सूखे होठों पर जमी , निर्धनता की गर्द ।
पैर पेट से मिल गए, थर - थर काँपे देह -
जीण-क्षीण सा आवरण, लगे पवन भी सर्द ।सुशील सरना…
Added by Sushil Sarna on January 30, 2023 at 3:37pm — 2 Comments
महाराणा प्रताप
चितौड़ भूमि के हर कण में बसता
जन जन की जो वाणी थी
वीर अनोखा महाराणा था
शूरवीरता जिसकी निशानी थी
चित्तौड़ भूमि के हर कण में बसता, जन-जन की जो वाणी थी।।
स्वाभिमान खोए सब राणा जी
किरण चिंता की माथे पर दिखाई दी
महाराणा का जन्म हुआ तो
महल में खुशियाँ छाई थी
चित्तौड़ भूमि के हर कण में बसता, जन-जन की जो वाणी थी।।
बप्पा रावल का शोनित रग-रग में बहता
न सोच सुख-दुःख, क्लेश…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 30, 2023 at 11:30am — No Comments
(22- 22- 22- 22)
जिसको हासिल तेरी सोहबत
क्यों चाहेगा कोई जन्नत
ऐ पत्थर तुझ में ये नज़ाकत
हां वो इक तितली की निस्बत
आप ने आंख से आंख मिलाकर
भर दी हर मंज़र में रंगत
दिल धक-धक करने से हटे तो
खोल के पढ़ लूँ मैं उनका ख़त
उसके हुस्न पे हैरां हूँ मैं
रोज ही बढ़ती जाए हैरत
मैं बिकने वालों में नहीं हूँ
यूँ तुमने कम आंकी कीमत
उसको पाना ही पाना है
कैसा मुकद्दर कौन सी…
Added by Gurpreet Singh jammu on January 29, 2023 at 5:27pm — 6 Comments
2×15
एक ताज़ा ग़ज़ल
टुकड़े टुकड़े में दिन बीता और पहाड़ सी रात कटी।
तेरी उल्फत में जाने जां ज़ीस्त यूँ ही बेबात कटी।
तूने छीन के अँधियारों से मुझको दिया नया जीवन,
तू क्या जाने फिर तेरे बिन कैसे ये सौगात कटी।
इस दुनिया की सबसे पुरानी शर्त है उपयोगी होना ,
उसका मर जाना बेहतर है जिस घोड़े की लात कटी।
चाहत के दो कतरे पीकर जीवन भर सुलगा जीवन,
खुद को लम्हा लम्हा जलाके ये तेरी खैरात कटी।
कैद कर लिया है खुद को बस…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 28, 2023 at 11:25pm — 2 Comments
डर से जिनके थर्र-थर्र कांपे
जो मुगलों की नींव हिला बैठे
हमला करेंगे कब-कहाँ शिवाजी, नींद, उनकी उड़ा बैठे|
जीजा-शाहजी के पुत्र प्यारे
माँ शिवाई के उपासक थे
माता के नाम से शमशीर पास में, नाम उन्हीं से पाये थे|
हृदय सम्राट कहते थे उनको
काम जनता भलाई के करते थे
अष्ट प्रधान दरबार विराजे, जो मंत्रीपरिषद के सदस्य थे|
नारी का सम्मान हमेशा
नारी हिंसा-उत्पीड़न के…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 27, 2023 at 2:30pm — No Comments
गुरु प्रथा को आज यहाँ
मैं काव्य रूप में कहता हूँ
क्षमा माँगता कर जोड़कर
जो कुछ गलत कह जाता हूँ||
शीश झुकाऊँ गुरु चरण में
आज यहाँ गुरु की महिमा कहता हूँ
अंतरात्मा पवित्र है मेरी
जिसे गंगा सी पवित्र बतलाता हूँ||
हिंदू-इस्लाम से अलग धर्म एक
जिसे सिख धर्म बतलाता हूँ
पहले गुरु थे नानकदेव जी
धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ शाहिब’ मैं कहता हूँ||
तलवंडी में जन्म जो पाये
आज ननकाना उसे कहता…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 27, 2023 at 12:00pm — No Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
दो तनिक मुझ मूढ़ को भी ज्ञान अब माँ शारदे
चाहता हूँ मारना अभिमान अब माँ शारदे।१।
*
आ गया देखो शरण में शीश चरणों में पड़ा
भाव पूरित शब्द दो अभिदान अब माँ शारदे।२।
*
यूँ असम्भव है समझना ईश के वैराट्य को
कर सकूँ केवल तनिक गुणगान अब माँ शारदे।३।
*
व्याप्त तनमन में अभी तक नष्ट हो ये मूढ़ता
फूँक दो इक मन्त्र देता कान अब माँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 11:37pm — 4 Comments
ग़ज़ल - मुहब्बत क्यूँ नहीं करते
1222 1222
मुहब्बत क्यूँ नहीं करते,
शरारत क्यूँ नहीं करते |
बड़े ही बे - मुरव्वत हो,
अदावत क्यूँ नहीं करते ||
अलग अंदाज है उनका,
बगावत यूँ नहीं करते |
बिखर जाए अगर लाली,
वो हसरत भी नहीं करते ||
बड़े अरमान हैं मेरे,
हिफाज़त भी नहीं करते |
शिकायत लाख है उनको,
मुखालिफ वो नहीं करते ||
भरोसा तोड़ देते हैं,
इबादत…
ContinueAdded by Anita Bhatnagar on January 25, 2023 at 9:30pm — 1 Comment
वसन्त
उषा अवस्थी
पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 25, 2023 at 6:35pm — 5 Comments
भाव शून्य हो अंतरपट जब,
पराधीन मन बोल रहा है |
मूक शब्द हैं शुष्क नयन पर,
द्रवित हृदय भी डोल रहा है ||
अस्त व्यस्त हैं कर्म हमारे,
बिगड़े हैं संजोग यहाँ पर |
दो दिन की है बची जिंदगी,
समय पहिया बोल रहा है ||
समय हुआ विपरीत कभी तो,
फिर कोई साथ नहीं होगा |
बढ़ते कदमों को मत रोको,
अवलोकन यूँ डोल रहा है ||
अनिता भटनागर(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Anita Bhatnagar on January 25, 2023 at 9:24am — 1 Comment
122 122 122 122
जो ख्वाबों ख़यालों में खोए रहेंगे |
सहर के अँधेरे डराने लगेंगे ||1
बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |
तो सातों फ़लक सर झुकाने लगेंगे ||2
मुहब्बत ज़माने से जो बेख़बर है |
बशर देख ताने सुनाने लगेंगे ||3
खुदा की तमन्ना जो करते चलोगे |
फ़लक के सितारे लुभाने लगेंगे ||4
हमें जिंदगी से अदावत मिली है |
इशारे हमें अब डराने लगेंगे ||5
लिखेंगे जुदाई के नगमें कभी जो |
वही तीर बन के सताने लगेंगे…
ContinueAdded by Anita Bhatnagar on January 25, 2023 at 9:00am — 1 Comment
ग़ज़ल
यह कैसा संसार है भइया
दीप तले अँधियार है भइया
जनता के हिस्से की रोटी
खा जाती सरकार है भइया
जाति धरम के बाद यहाँ क्या
जनमत का आधार है भइया
अधर अरुण कलियाँ धनु भौहें
अंजन हाय कटार है भइया
इस जग में कुछ निश्छल भी है
हाँ वह माँ का प्यार है भइया
आज जरूरत है दुर्गा की
कृष्ण नहीं दरकार है भइया
करता चल कुछ काम भले भी
जीना दिन दो चार है…
Added by रामबली गुप्ता on January 25, 2023 at 8:06am — 6 Comments
विकृत कर गणतंत्र का, राजनीति ने अर्थ
कर दी है स्वाधीनता, जनता के हित व्यर्थ।१।
*
तंत्र प्रभावी हो गया, गण को रखकर दूर
कह सेवक स्वामी बने, ठाठ करें भरपूर।२।
*
आयेगा गणतंत्र में, अब तक यहाँ वसंत
तन्त्र बनेगा कब यहाँ, बोलो गण का कन्त।३।
*
भूखे को रोटी नहीं, न ही हाथ को काम
बस इतना गणतन्त्र में, गाली खाते राम।४।
*
द्वार खोलती पञ्चमी, कह आओ ऋतुराज
साथ पर्व गणतंत्र का, सुफल सभी हों काज।५।
*
लोकतंत्र के पर्व सह, आया …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 6:42am — 2 Comments
वक़्त को भी चाहिए वक़्त, घाव भरने के लिए
ज़ख्म कितने है लगे, हिसाब करने के लिए
बस दवाओं से हमेशा, बात बनती है नहीं
एक दुआ भी चाहिए, असर दिखाने के लिए
खींच लेता हैं समंदर, लहरों को आगोश में
सागर तो होना चाहिए, सैलाब लाने के लिए
पानी में डूबा हुआ, लोहा कभी सड़ता नहीं
बस हवा हीं चाहिए, उसे जंग खाने के…
ContinueAdded by AMAN SINHA on January 23, 2023 at 5:24pm — 1 Comment
221 2121 1221 212
मुश्किल में अपने इश्क़ की यूँ देखभाल कर।
अपने कहे का ,अपने लिखे का ख़्याल कर।
महसूस हो न दिल मे कभी उसकी याद तो,
अपने ज़मीर को जगा के सौ सवाल कर।
इक तरफा प्यार फिर भी बहुत कामयाब है,
खुद में ही उलझे रहना है सिक्के उछाल कर।
हम ही नहीं थे आपकी महफ़िल की रौशनी,
अच्छा किया है आपने दिल से निकाल कर।
ये चार दिन की बात तो मेरे लिए थी बस,
तू चाँदनी को रखना हमेशा संभाल कर।
कुदरत के…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 22, 2023 at 12:06am — 5 Comments
उषा अवस्थी
सबकी अलग देनदारियां हैं
जीवन-नदिया में,
कर्म-नौका पर सवार
सुख-दुख से उत्पन्न
अपरिहार्य लहरें
सहने की मजबूरियां हैं
जब तरंगे "सम" पर आती हैं
पहुँचाती हैं सहजता से
इच्छित गन्तव्य तक
समस्त उलझनों के पार
कराती हैं, स्वयं से स्वयं का
"साक्षात्कार"
प्रकृति आईना दिखाने को सन्नद्ध है
नियमों से आबद्ध है
जो अपना धर्म
सदैव निभाती है
"मैं"…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 21, 2023 at 6:57pm — 6 Comments
12122 12122 12122 12122
तेरे ख्यालों के अंजुमन में हज़ार पहरे लगे हुए हैं
सजाये कैसे ग़ज़ल का दामन गुनाहों में हम रंगे गए हैं
हमारे जैसा उदास कोई हमें कहीं भी नहीं मिला पर
हमारे दुख से बड़े बहुत दुख ज़माने भर में भरे पड़े हैं
कभी नहीं वो कहेंगे हमसे के उनके दिल में है प्यार अब भी
सकार को भी जिया था हमने नकार को भी समझ रहे हैं
ये ज़िन्दगी की उदास खुशबू जो बस गयी है मेरी रगों में
ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें…
Added by मनोज अहसास on January 20, 2023 at 8:00pm — 3 Comments
इस तमस की खोह में आ चाँद भूले से कभी तो
गीत गा दो तुम सुरीला, वेदना को भूल जाऊँ।
*
जब नगर हतभाग्य से आ खो गये हैं गाँव मेरे
हर कदम पर चोट खाकर पथ विचलते पाँव मेरे।।
तोड़कर सँस्कार सारे छू रहे प्रासाद तारे
धूप से भयभीत मन है पग जलाती छाँव मेरे।।
सभ्यता की रीत कोई भौतिकी गढ़ती नहीं है
आत्ममंथन कर लचीला, वेदना को भूल जाऊँ।
*
जन्म पर जो भी तनिक थी, तात की पहचान खोई
बन सका है भर जगत में,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2023 at 2:04pm — 4 Comments
2122 2122
पत्थरों पर चल रहा हूँ
रास्तों को छल रहा हूँ 1
लग रहा हूँ आज मीठा
सब्र का मैं फल रहा हूँ 2
कर दिया उनको पवित्तर
यार गंगा जल रहा हूँ 3
अब नहीं ख्वाहिश किसी की
हाँ कभी बेकल रहा हूँ 4
आज इतनी गाड़ियाँ है
मैं कभी पैदल रहा हूँ 5
याद आऊँ, मुस्कुरा दो
वह तुम्हारा कल रहा हूँ 6
मैं डुबोया हूँ खुद ही को
स्वयं का दलदल रहा हूँ…
ContinueAdded by आशीष यादव on January 19, 2023 at 11:56pm — 1 Comment
इस मधुवन से उस मधुवन तक
पतझड़ पसरा है आँगन तक।१।
*
पायल बिछिया तक जायेगा
आ पसरा है जो कंगन तक।२।
*
मत मरने दो मन इच्छाएँ
आ जायेगा यह यौवन तक।३।
*
दिखता जब ऋतुराज न कोई
फैल न जाये अब यह मन तक।४।
*
धरती की तो रही विवशता
पसरे मत यह और गगन तक।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2023 at 3:52pm — 2 Comments
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