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Anita Bhatnagar
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Anita Bhatnagar's blog post ग़ज़ल
"आ. अनीता जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है पर यह और समय चाहती है। कुछ सुझाव के साथ फिलहाल इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई। /बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |//यह मिसरा बह्र में नहीं है। बनोगे जो भू के कभी चाँद सूरज" या बनोगे धरा के अगर चाँद…"
Feb 2
मनोज अहसास commented on Anita Bhatnagar's blog post ग़ज़ल
"सुंदर प्रस्तुति आदरणीय लेकिन मंच के नियमानुसार आपने इस ग़ज़ल पर बहर नहीं लिखी है जब तक बहर नहीं लिखेंगे तब तक इसको समझने में दुश्वारी है सादर"
Jan 26
मनोज अहसास commented on Anita Bhatnagar's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आदरणीया ग़ज़ल के प्रयास की हार्दिक बधाई आपनव जो बहर लिखी है उसके मुताबिक पूर्ण विराम का प्रयोग इस प्रकार उचित नहीं हैं दो बार पूर्ण विराम न लगाइए एक ही बार लगाइए और दो शेरो के बीच मे एक लाइन नहीं छोड़िए बल्कि हर शेर के बाद एक लाइन…"
Jan 26
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Jan 26
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Jan 25
Anita Bhatnagar left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"सादर आभार आदरणीय "
Jan 25
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for Anita Bhatnagar
"आपका हार्दिक स्वागत है..."
Jan 25
Anita Bhatnagar is now a member of Open Books Online
Jan 25

Profile Information

Gender
Female
City State
Adampur
Native Place
Lucknow
Profession
Teaching
About me
Like poetries, cooking, baking,, reading

Anita Bhatnagar's Blog

ग़ज़ल

 

ग़ज़ल - मुहब्बत क्यूँ नहीं करते 

1222 1222

मुहब्बत क्यूँ नहीं करते,

शरारत क्यूँ नहीं करते |

बड़े ही बे - मुरव्वत हो,

अदावत क्यूँ नहीं करते ||

अलग अंदाज है उनका,

बगावत यूँ नहीं करते |

बिखर जाए अगर लाली,

वो हसरत भी नहीं करते ||

बड़े अरमान हैं मेरे,

हिफाज़त भी नहीं करते |

शिकायत लाख है उनको,

मुखालिफ वो नहीं करते ||

भरोसा तोड़ देते हैं,

इबादत…

Continue

Posted on January 25, 2023 at 9:30pm — 1 Comment

ग़ज़ल

भाव शून्य हो अंतरपट जब,

पराधीन मन बोल रहा है |

मूक शब्द हैं शुष्क नयन पर,

द्रवित हृदय भी डोल रहा है ||

अस्त व्यस्त हैं कर्म हमारे,

बिगड़े हैं संजोग यहाँ पर |

दो दिन की है बची जिंदगी,

समय पहिया बोल रहा है ||

समय हुआ विपरीत कभी तो,

फिर कोई साथ नहीं होगा |

बढ़ते कदमों को मत रोको,

अवलोकन यूँ डोल रहा है ||

अनिता भटनागर(मौलिक व अप्रकाशित)

Posted on January 25, 2023 at 9:24am — 1 Comment

ग़ज़ल

122 122 122 122

जो ख्वाबों ख़यालों में खोए रहेंगे |

सहर के अँधेरे डराने लगेंगे ||1

बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |

तो सातों फ़लक सर झुकाने लगेंगे ||2

मुहब्बत ज़माने से जो बेख़बर है |

बशर देख ताने सुनाने लगेंगे ||3

खुदा की तमन्ना जो करते चलोगे |

फ़लक के सितारे लुभाने लगेंगे ||4

हमें जिंदगी से अदावत मिली है |

इशारे हमें अब डराने लगेंगे ||5

लिखेंगे जुदाई के नगमें कभी जो |

वही तीर बन के सताने लगेंगे…

Continue

Posted on January 25, 2023 at 9:00am — 1 Comment

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At 9:36am on January 25, 2023, लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' said…

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