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गज़ल : पत्थरों पर चल रहा हूं

2122 2122

पत्थरों पर चल रहा हूँ

रास्तों को छल रहा हूँ 1

लग रहा हूँ आज मीठा

सब्र का मैं फल रहा हूँ 2

कर दिया उनको पवित्तर 

यार गंगा जल रहा हूँ 3 

अब नहीं ख्वाहिश किसी की

हाँ कभी बेकल रहा हूँ 4

आज इतनी गाड़ियाँ है

मैं कभी पैदल रहा हूँ 5

याद आऊँ, मुस्कुरा दो 

वह तुम्हारा कल रहा हूँ 6

मैं डुबोया हूँ खुद ही को

स्वयं का दलदल रहा हूँ 7

चल रहा हूँ चाल अपनी

दुश्मनों को खल रहा हूँ 8 

कर रहे परदा मुझी से 

वो कि जिनका कल रहा हूँ 9 

योगचारी हूँ, कभी पर

हुस्न पर पागल रहा हूँ 10 

हो गया खुद बेसहारा

जो कभी संबल रहा हूँ 11 

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 3:41pm

आ. भाई आशीष जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

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