गुरु प्रथा को आज यहाँ
मैं काव्य रूप में कहता हूँ
क्षमा माँगता कर जोड़कर
जो कुछ गलत कह जाता हूँ||
शीश झुकाऊँ गुरु चरण में
आज यहाँ गुरु की महिमा कहता हूँ
अंतरात्मा पवित्र है मेरी
जिसे गंगा सी पवित्र बतलाता हूँ||
हिंदू-इस्लाम से अलग धर्म एक
जिसे सिख धर्म बतलाता हूँ
पहले गुरु थे नानकदेव जी
धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ शाहिब’ मैं कहता हूँ||
तलवंडी में जन्म जो पाये
आज ननकाना उसे कहता हूँ
करतारपुर एक शहर पाक का
जहाँ उनका समाधि स्थल पाता हूँ||
प्रखर बुद्धि के धनी गुरु जी
जिन्हे मन-विषयों से उदासीन पाता हूँ
आध्यात्मिक चिन्तन में वक़्त गुजारते
समर्पित जीवन मानव सेवा में कहता हूँ||
दूसरे गुरु थे अंगददेव जी
जन्मदाता गुरुमुखी-लंगर की प्रथा पाता हूँ
उत्तराधिकारी गुरु नानकदेव के
जिनका लहिणा नाम भी कहता हूँ||
शुरू करते मल्ल-अखाड़ा प्रथा
जीवन कठिनाई भरा मै पाता हूँ
साहित्य केन्द्रों की स्थापना करते
प्राप्त जिससे सिख धर्म को शक्ति कहता हूँ||
तीसरे गुरु बने अमरदास जी
मिला अंर्तजातीय-पुनर्विवाह को बढ़ावा पाता हूँ
जाति-सतीप्रथा पर घात किए जो
गुरुगद्दी का सच्चा उत्तराधिकारी उन्हे मैं कहता हूँ||
सेवा-समर्पण दिल में जागा
शब्द गुरु नानकदेव की महिमा गाता हूँ
बुराइयों के खिलाफ आंदोलन चलाये
जिसे स्वस्थ विकास में अवरोध बड़ा मैं कहता हूँ||
बहुत गरीब परिवार के बेटे
जिन्हें दामाद गुरु अमरदास का कहता हूँ
प्रसिद्ध हो गये भक्ति-सेवा से
गुरु रामदास जी को चौथा गुरु मैं पाता हूँ||
जमीनें खरीदी जमींदारों से
वहाँ नियुक्त बूढाजी को मैं पाता हूँ
अमृत सरोवर एक नगर बसाया
आज जिसका नाम अमृतसर कहता हूँ||
पांचवे गुरु थे अर्जुन देव जी
निर्माणकर्ता हरमंदिर साहब (स्वर्ण मंदिर) का कहता हूँ
अत्यंत यातनाएं जहाँगीर से पाते
उनका बलिदान बड़ा मैं पाता हूँ||
संकलित करते गुरुओं की वाणी
महत्तव सुखमनी साहिब का कहता हूँ
शांति का संदेश सुनाती
नाम जिसका सुखों की मणि मैं पाता हूँ||
अर्जुनदेव के पुत्र गुरु हरगोविंद जी
महारत हासिल अस्त्र-शस्त्रों में जिनकी कहता हूँ
हत्या करा दी जहाँगीर ने उनकी
क्रांतिकारी जिन्हे एक महान यौद्धा पाता हूँ||
अकाल तख्त का निर्माण कराते
हमेशा जिन्हे शान्त-अभय-अडोल मैं कहता हूँ
पराजित करते मुगल सेना को
संस्थापक नानकराज बतलाता हूँ||
बाबा गुरदिता के छोटे बेटे
मददगार जिन्हें दारा शिकोह का पाता हूँ
गुरु हरराय जी वो कहलाए
सिखों के सातवें गुरु उन्हें कहता हूँ||
आध्यात्मिक एक राष्ट्रवादी
सिख योद्धाओं में नवीन प्राण संचालक कहता हूँ
स्थापना करते अस्पताल व अनसुधान केन्द्र की
जिनसे सिख योद्धाओं को पुरुस्कृत पाता हूँ||
आठवे गुरू हरकिशन कहलाए
जिनका शासन तीन वर्ष ही कहता हूँ
भगवद्गीता के महाज्ञानी
करते अहं ब्राह्मणों का चूर मैं पाता हूँ||
जनों की सेवा का अभियान चलाते
न भेद वर्ण-उंच-नीच का कहता हूँ
उत्तराधिकारी बाबा बकाला बनाए
जब उन्हें प्राण त्यागते पाता हूँ||
सत्य-ज्ञान के प्रचार-प्रसार का
जिम्मा गुरु तेग बहादुर के शीश पर पाता हूँ
उद्धार किया भाई मलूकदास का
जिन्हे नौवाँ गुरु मैं कहता हूँ||
कबूल किया न इस्लाम धर्म को
विरोध किया जो औरंगजेब का पाता हूँ
शीश कटा दिया धर्म रक्षा में
जिन्हे हिन्द की चादर कहता हूँ||
अंतिम गुरु थे गुरु गोविंद जी
सुत गुरु तेग बहादुर के प्यारे कहता हूँ
तलवार उठाए जो पिता की खातिर
उन्हे अंतिम गुरु मैं पाता हूँ||
खात्मा करते जो पाप-अन्याय-अत्याचार का
जिन्हे अतुलीय यौद्धा कहता हूँ
खालसा पंथ के बने संरक्षक
जिन्हे पाँच ककारों (केश, कंघा,कड़ा,किरपान, कच्चेरा) का उपदेशक पाता हूँ||
धोखा पठान का समझ सके न
उन्हे अहिंसा का पुजारी कहता हूँ
नैतिकता-निडरता-आध्यात्मिक जागृति के प्रकाशक
उन्हे दिव्य ज्योति में लीन मैं पाता हूँ||
गुरु प्रथा को आज यहाँ
मैं काव्य रूप में कहता हूँ
क्षमा माँगता कर जोड़कर
जो कुछ गलत कह जाता हूँ||
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