For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

July 2015 Blog Posts (243)

अँधा (लघुकथा)

“अरे बाबा ! आप किधर जा रहे है ?,” जोर से चींखते हुए बच्चे ने बाबा को खींच लिया.

बाबा खुद को सम्हाल नहीं पाए. जमीन पर गिर गए. बोले ,” बेटा ! आखिर इस अंधे को गिरा दिया.”

“नहीं बाबा, ऐसा मत बोलिए ,”बच्चे ने बाबा को हाथ पकड़ कर उठाया ,” मगर , आप उधर क्या लेने जा रहे थे ?”

“मुझे मेरे बेटे ने बताया था, उधर खुदा का घर है. आप उधर इबादत करने चले जाइए .”

“बाबा ! आप को दिखाई नहीं देता है. उधर खुदा का घर नहीं, गहरी खाई है…

Continue

Added by Omprakash Kshatriya on July 11, 2015 at 6:00pm — 18 Comments

लाठी (लघुकथा )

" पिताजी , मुझे प्रोन्नत कर आप ही के दफ़्तर में स्थानांतरित कर दिया गया है ।निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ , बेटे या बॉस की भूमिका में किसे चुनूँ ? "
" 'अफकोर्स !' बॉस की ।रहा तुम्हारे अधीन काम करना , तो बेटा.. , पिता भले ही संतान को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाये परंतु , उसे पिता होने का वास्तविक अहसास तभी होता है , जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।

.
मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by shashi bansal goyal on July 11, 2015 at 5:00pm — 10 Comments

अँधेरा जमीं पे

प्‍यार करना न अब तुम सिखाना मुझे

पास फिर से बुला मत जलाना मुझे

जिन्दगी बेवफाई करे भी तो क्‍या

मौत को रूठने से मनाना मुझे।

चार कन्धे चढ़े वो चले जा रहे।

कुछ नहीं पास उनके दिखाना मुझे।

वो नहीं है किया प्‍यार जिससे कभी

याद उसकी न यारो दिलाना मुझे

मैं मनाता नही कोई उत्‍सव मगर

दीप दिल से जले तो बताना मुझे

हर तरफ जो अँधेरा जमीं पे अभी

जान दे भी उसे है मिटाना मुझे

रात भर अश्‍क गम में बहे क्‍यों सनम

दोस्‍त को…

Continue

Added by Akhand Gahmari on July 11, 2015 at 10:30am — 4 Comments

प्रेम की भाषा (लघुकथा )

रोज सुबह की सैर समंदर के किनारे , विकास का बरसों का सिलसिला रहा है । लेकिन पिछले कुछ दिनों से एक बच्चा रोज उसके पास सुबह - सुबह आकर खड़ा हो जाता है ।



पहले दिन ही विकास की नजर नें उसके आँखों में उसके पेट की भूख को देख लिया था , सो दस रूपये का बिस्कुट एक हाॅकर से लेकर उसे दे दिया ।



वो अब रोज ही अपनी उन भूखी आँखों के साथ विकास के पास आकर खड़ा हो जाता था । विकास भी अब उसके लिए एक बिस्कुट का पैकेट का इंतजाम करके रखता ही था । उसके आँखों में भूख देखना उसे बिलकुल अच्छा नही लगता है… Continue

Added by kanta roy on July 11, 2015 at 9:00am — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - तो मै इंसान होने से मुकरना चाहता हूँ ( गिरिराज भंडारी )

1222   1222   1222   122

क़रीब आ ज़िन्दगी, तुझको समझना चाहता हूँ

मैं ज़र्रा हूँ ,  तेरी बाहों में  फिरना चाहता हूँ

 

समेटा खूब , खुद को, पर बिखरता ही गया मैं

ग़ुबारों की तरह अब मैं बिखरना चाहता हूँ

 

जमा हर दर्द मेरा एक पत्थर हो गया है

ज़रा सी आँच दे , अब मैं पिघलना चाहता हूँ

 

तेरी आँखों मे देखी थी कभी तस्वीर खुद की

जमाना हो गया , मै फिर सँवरना चाहता हूँ

 

लगा के बातियाँ उम्मीद की ,दिल के दिये…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 11, 2015 at 9:00am — 12 Comments

ऐंजल (लघुकथा)

"चलो पापा, आज मैँ आप को शाम की सैर करवा लाती हूँ।" नन्ही तनु की बात सुनकर कई दिन से बिस्तर पर पड़े बीमार राज के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

दूर अस्त होते सूर्य की बिखरती लालिमा और शांत सुहानी शाम के साथ, बेटी के चेहरे पर बड़ो जैसा विश्वास राज को बहुत भला लग रहा था। अनायास तनु उसे लगभग खींचते हुये एक जगह ले गयी और अपनी प्यारी आवाज में बोली। "पापा पापा देखो, यही पर छोड़ गयी थी ना मुझको एक 'ऐंजल'! 'ममा' ने बताया है मुझे।"

और अचानक ही अतीत को याद कर राज की आँखे भीग गयी। "क्या हुआ पापा?"…

Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 11, 2015 at 7:30am — 7 Comments

माँ पढ़ लेती है

माँ पढ़ लेती है

अपनी मोतियाबिंदी आखों

और मोटे फ्रेम के चश्मे से

रामायण की चौपाइयां

हिंदी अखबार की

मुख्य मुख्य ख़बरें

यहाँ तक कि, 

मोबाइल में

अंग्रेज़ी में लिखे नाम भी

पढ़ लेती हैं

कि यह छोटके का फ़ोन है

कि यह बड़के का फ़ोन है

कि बिटिया ने फ़ोन किया है

भले ही बड़ी बड़ी किताबें न पढ़ पाती हों 

पर आज भी पढ़ लेती हैं

हमारा चेहरा

हमारा मन

हमारा दुःख

हमारी तकलीफ…

Continue

Added by MUKESH SRIVASTAVA on July 10, 2015 at 11:29am — 4 Comments

बिट्टो

एक

----

मेरा नाम बिट्टो है,

कल मेरे गाँव का मेला है

सब खुश हैं

मेरी सहेली चुनिया

कह रही थी वह अब की

कान के बुँदे और कंगन लेगी

गुड्डू कह रहा था

वह इस बार बाबू से कह के

मेले में नुमाइश देखेगा

मेरा छुटका भाई

बैट बाल लेगा

अम्मा अपना टूटा तवा बदलेंगी

बाबू कुछ नहीं लेंगे

और मै भी कुछ नहीं लूंगी

क्यों कि हमें मालूम है

उनके पास बहुत ज़्यादा पैसे नही हैं

मै सिर्फ चुपचाप मेला देख के आ जाऊँगी…

Continue

Added by MUKESH SRIVASTAVA on July 10, 2015 at 11:00am — 3 Comments

जन्मदिन का केक (लघुकथा)

 शंभू सिंह्जी  पत्नी के देहांत के बाद,  बेटे ब्रिगेडियर बाबू सिंह के साथ रहने लगे थे! ब्रिगेडियर साहब के बंगले पर रात को पार्टी चल रही थी!

 आउट हाउस में शंभू सिंह जी  रात के खाने का इंतज़ार कर रहे थे! पार्टी के कारण किसी को शंभू सिंह को खाना देने की  याद ही नहीं रही !

 शंभू सिंह जी की, लेटे लेटे ,  कब आंख लग गयी ,पता ही नहीं चला!

 सुबह ब्रिगेडियर  साहब का अर्दली चाय लेकर आया तो शंभू सिंह जी पूछ बैठे,"रात को किस बात की पार्टी थी"!

"जन्म दिन की"!

शंभू सिंह जी…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on July 10, 2015 at 10:30am — 13 Comments

नए हाइकू

झरना फूटा
संगीत फ़ैल गया
हुआ बावरा

यात्रा अनंत
लक्ष्य का पता नहीं
चलाचल रे

नदी की धारा
रोके नही रूकती
हारीं चट्टानें

मानव मन
उड़ने को आतुर
पंख फैलाये

कोलाहल में
गहराया एकांत
भागी उदासी
.
यह मेरी अप्रकाशित और मौलिक रचना है
डॉ.बृजेश कुमार त्रिपाठी

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on July 10, 2015 at 8:30am — 4 Comments

एहसास ( लघुकथा )

अचानक उसकी नज़र सड़क पर धीमी बत्तियों में खड़ी एक लड़की पर पड़ी | हाड़ कंपा देने वाली ढंड में भी , जब वो सूट पहने अपने कार में ब्लोअर चला के बैठा था , लड़की अत्यंत अल्प वस्त्रों में खड़ी थी | फिर समझ में आ गया उसे , ये कॉलगर्ल होगी |

उसने कार उसके पास रोकी , लड़की की आँखों में चमक आ गयी | आगे का दरवाज़ा खोलकर उसने अंदर आने को बोला और उसके बैठते ही बोला " देखो , मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा , मुझे अपना ग्राहक मत समझना | इस तरह खड़ी थी , क्या तुम्हें ठण्ड नहीं लगती "|

लड़की ने एक बार उसकी ओर देखा और…

Continue

Added by विनय कुमार on July 9, 2015 at 8:53pm — 10 Comments

शाम

शाम



स्वागतम

----------

स्वागत तेरा शाम सदा

श्याम सी सदा शाम हो ,

श्वेत श्याम उन यादों की

हर पल सुनहरी शाम हो

चाहत

--------

दूर होते हम तभी ,

भोर की जब बांग हो .

पास लाती चाहत हमे

नित मिलन की शाम हो

.

जिंदगी

------

जिंदगी तू सुबह भी है

जिंदगी तू शाम भी है

बोझिल कभी तू दर्द से

देती कभी आराम भी है

.

हसरत

---------

हाथ थामे चलते रहें

हसरत मेरी…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 9, 2015 at 4:30pm — 2 Comments

चेप्टर-२ - विविध दोहे

चेप्टर-२ - विविध दोहे

बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय

छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय

ढोंगी या संसार  में, मिला  न  अपना कोय

वर्तमान  की  प्रीत में, बस  धोखा  ही होय

न्यून  वस्त्र  में आ गयी, वर्तमान  की नार

लोक लाज  बिसराय  के, करें नैन तकरार

औछे  करमन से भला, कैसे सदगति होय

जैसी संगत  साथ हो,  वैसी  ही मति होय

पुष्प  छुअन  में शूल से,  कैसे दर्द न होय

टूट  के डारि  से भला,…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 9, 2015 at 3:30pm — 13 Comments

बुझ रहा है हौसला मौला

२१२ २२१२ २२

बुझ रहा है हौसला मौला

राह कोई तो दिखा मौला



नाम पे उसके छलकते हैं

आँख दरिया है' क्या मौला



जैसे पढ़ते हैं किताबों को

काश पढ़ते चेहरा मौला



शाख पर हम घर बनाते गर

हौसला होता जवाँ मौला



जेब खाली और मैं मुज़रिम

जिंदगी है गुमशुदा मौला



रात आधी और नींद नहीं

है उसी का सब किया मौला



है उसे कोई फ़िक्र ही कब

ख़्वाब देकर चल दिया मौला



मन अभी जो बादलों में था

वो ज़मी पे आ गिरा… Continue

Added by Pari M Shlok on July 9, 2015 at 3:05pm — 17 Comments

कहानी : महासम्मोहन

(१)

विधान लोनी का जन्म 26 जनवरी 1950 को बनारस के जिला अस्पताल में हुआ था। उसके पिता निधान लोनी विश्वनाथ मंदिर के पास चाय बेचा करते थे। लोग कहते हैं कि विधान लोनी में उस लोदी वंश का डीएनए है जिसने उत्तर भारत और पंजाब के आसपास के इलाकों में सन 1451 से 1526 तक राज किया था। जब बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगलवंश की स्थापना की तब इब्राहिम लोदी का एक वंशज बनारस भाग आया और मुगलों को धोखा देने के लिए लोदी से लोनी बनकर हिन्दुओं के बीच हिन्दुओं की तरह रहने…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 9, 2015 at 11:18am — 9 Comments

दोहा गीत (एक प्रयास)

मनुज रूप मैं पा गया,

हुआ स्वप्न साकार

 

 

कोमल किरणे भोर की,

बिखराती जब नेह है,

दिखती उल्लासित धरा

आन्दंदित हर देह है.

 

सचमुच एक सराय सा

लगा मुझे संसार

 

प्यार भरे व्यवहार से

मिलती देखी जीत है,

बना एक अनजान जब,

मेरे मन का मीत है

 

सच्ची निष्ठा ने किया,

हरदम बेडा पार

 

लोभ मोह माया कपट,

सारे लगते काल हैं,

सत्य यहाँ है मौत ही,

बाकी सब…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2015 at 9:07am — 14 Comments

ग़ज़ल : ख़तरे में गर हो आब तो लोहा उठाइये

बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२

हों जुल्म बेहिसाब तो लोहा उठाइये

ख़तरे में गर हो आब तो लोहा उठाइये

 

जिसको चुना है दिन की हिफ़ाजत के हेतु वो

खा जाए आफ़ताब तो लोहा उठाइये

 

भूखा मरे किसान मगर देश के प्रधान

खाते मिलें कबाब तो लोहा उठाइये

 

पूँजी के टायरों के तले आ के आपके

कुचले गए हों ख़्वाब तो लोहा उठाइये

 

फूलों से गढ़ सकेंगे न कुछ भी जहाँ में आप

गढ़ना हो कुछ जनाब तो लोहा…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 8, 2015 at 11:00pm — 23 Comments

ग़ज़ल-नजर मिल रही थी तो दिल डर गया।

१२२ १२२ १२२ १२



नजर मिल रही थी तो दिल डर गया।

नजर से बचे तो जिगर मर गया।।



अभी पाँव रक्खा ही था इश्क में।

बडी तेज सर पर से पत्थर गया।।



कदम कोई अपना मेरी कब्र पर।

जहाँ पर जिगर था वहाँ धर गया।।



नजर थी,बला थी, वो क्या थी मगर।

उसे सोचते सोचते मर गया ।।



जमाने ने सर पर बिठाया उसे।

जरा सी उछल कूद जो कर गया।।



फना हो गयी है शराफत या रब।

या है ही नहीं तू या फिर मर गया।।



हँसाने की कोशिश करों उसको… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on July 8, 2015 at 10:44pm — 11 Comments

अपना अपना धर्म (लघुकथा)

"अपने मज़हब पर मरने का हौसला है कि नहीं?"

"है, लेकिन मेरे अपने धर्म पर, तुम्हारे नहीं|"

"हमारा धर्म तो एक ही है..."

"तुम्हारे पास वहशत फ़ैलाने का हौसला है, मेरे पास न डरने का हौसला, तो फिर हमारे धर्म अलग हुए न?"

यह सुन तीसरा बोला:

"मेरे पास हर धर्म की लाशें सम्भालने का हौसला है|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 8, 2015 at 10:30pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बड़ी खूबसूरत हवालात होगी (फिल बदीह ग़ज़ल(राज)

122 122 122 122

 

 तुम्हारी समझ से वो सौगात होगी

,मगर मेरी नजरों में खैरात होगी

 

मुझे चाहिए मेहनतों के  निवाले,

जिये रहमतों पर तेरी जात होगी.

 

न जाने कहाँ अब मुलाकात होगी

,जहाँ आमने सामने बात होगी

 

घटाएँ हिमालय के रुखसार…

Continue

Added by rajesh kumari on July 8, 2015 at 9:14pm — 15 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
5 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
45 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
20 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service