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प्रेम की भाषा (लघुकथा )

रोज सुबह की सैर समंदर के किनारे , विकास का बरसों का सिलसिला रहा है । लेकिन पिछले कुछ दिनों से एक बच्चा रोज उसके पास सुबह - सुबह आकर खड़ा हो जाता है ।

पहले दिन ही विकास की नजर नें उसके आँखों में उसके पेट की भूख को देख लिया था , सो दस रूपये का बिस्कुट एक हाॅकर से लेकर उसे दे दिया ।

वो अब रोज ही अपनी उन भूखी आँखों के साथ विकास के पास आकर खड़ा हो जाता था । विकास भी अब उसके लिए एक बिस्कुट का पैकेट का इंतजाम करके रखता ही था । उसके आँखों में भूख देखना उसे बिलकुल अच्छा नही लगता है ।
आज एक अजीब बात हो गई । वो बिस्कुट लेते समय कह उठा ,

" साहब मै अनाथ हूँ । क्या आप मेरे पापा नहीं बन सकते ? " विकास अवाक था ।

उसकी नजर पास में खडे कुत्ते पर गई  I  उसने सोचा  जानवर और इंसान में प्रेम एक ही जैसा होता है ।


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 12:51pm
आप सबकी उपस्थिति कथा को गुमराह होने से मानो बचा लेती है । अनगढ़ हाथों को सही संतुलन मिल जाता है । मै सदा आपके मार्गदर्शन तले स्वंय का विकास पाने को उत्सुक हूँ । आपके मार्गदर्शन तले मिले सुझाव को मै अभी संज्ञान में लेती हूँ ॥ नमन आपको आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ।
Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 12:27pm
बहुत बहुत आभार आपको आदरणीय प्रदीप कुमार जी कथा पर हौसला वर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 13, 2015 at 9:27am

आदरणीया

आख़िरी वाक्य  में परिवर्तन चाहता हूँ कुछ ऐसा -उसकी नजर पास में खडे कुत्ते पर गई  I  उसने सोचा  जानवर और इंसान में प्रेम एक ही जैसा होता है ।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 11, 2015 at 11:30am

प्रेम से तों भगवान  और भक्त एक जैसे हो जाते हैं . . बहुत बढ़िया , बधाई, आदरणीया जी  सादर 

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