For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

March 2019 Blog Posts (81)

इति सिद्धम (लघुकथा)

डियर संस्कार,

चौंक तो गये होगे! मोबाइल एप्स से, सोशल मीडिया पर या ऑनलाइन अपनी बात कहने के बजाय इस ख़त से ही अपने अंजाम से वाक़िफ़ करा रहा हूं तुम्हें। आख़िर तुमने ही तो सुसाइड के लिए मज़बूर कर दिया! ख़ूब घमंड था मुझे अपनी ऑनलाइन पढ़ाई पर! माडर्न अपडेटिड छात्र समझने लगा था मैं अपने आपको। स्कूल की पढ़ाई, ट्यूशनों की पढ़ाई और फिर सोशल मीडिया, मोबाइल गेम, आधुनिक दोस्त-यारी, फ़ोटो-वीडियोग्राफ़ी इन सब में मशगूल रहते हुए ऑनलाइन अपने हसीन करियर की हसीन रणनीति बनाया करता था मैं! रात भर…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 31, 2019 at 11:00am — 4 Comments

"रिश्तोँ की घुटन"

 

भीड भरे रस्ते पे एक दिन,

बरसोँ पुराना दोस्त मिला । 

चेहरे से मुस्कान थी गायब,

स्वर भी कुछ रुखा सा मिला । । 

 

मैंने पूछा कैसे हो तुम,

वो बोला कुछ ठीक नहीं । 

मैंने पूछा और हाल-ए-इश्क,

सोच के बोला ली भीख नही । । 

 

उसके इस उत्तर से अचम्भित,

ठिठक  गया  मैं  चलते-चलते । 

फिर काँधे पे हाथ रख पूछा,

किसी से नहीं क्या मिलते-जुलते…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 30, 2019 at 7:00pm — 6 Comments

"श्याम-रत्न-धन" (संस्मरण) :

कुछ वर्ष पूर्व की बात है। लम्बी गंभीर बीमारी के बाद मेरी अम्मीजान का इंतकाल हो गया था। पूरे संयुक्त परिवार के साथ मैं भी बहुत दुखी था। मुझे सबसे ज़्यादा चाहने और मेरे भविष्य की सबसे ज़्यादा फ़िक्र और देखभाल करने वाली मेरी मां के चले जाने पर मुझे अहसास हुआ कि स्वयं उनको बहुत चाहते हुए और उनकी चिंता करते हुए भी मैं उनकी न तो समुचित देखभाल कर पाया था और न ही उनकी अपेक्षित सेवा। हां, उनके इंतकाल के बाद सब कुछ याद करते हुए उनके प्रति प्यार इतना ज़्यादा बढ़ गया था कि शुरुआत में हफ़्ते…
Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 29, 2019 at 10:04pm — No Comments

शहीदों का युवाओँ से संवाद- 23 मार्च शहीदी दिवस पर विशेष

हम तो कहीँ और नहीँ गये हैं बच्चोँ,

अभी भी मौज़ूद हैं ह्म तुम्हारे अंदर   

ज़ुल्म को देखकर भी चुपचाप कैसे बैठे हो,

क्या धधकता नहीं है ज्वाला तुम्हरे अंदर । ।

 

 हर इक शय में सियासत भरी हुई है…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 29, 2019 at 3:00pm — 1 Comment

सार छंद -

1-

अर्थ धर्म या काम मोक्ष में, अर्थ प्रथम है आता।

फिर भी पैसा मैल हाथ का,क्योंकर है कहलाता।।

सब कुछ भले न हो यह पैसा, पर कुछ तो है ऐसा।

जिस कारण जीवनभर मानव,करता पैसा-पैसा।।

2-

बिना अर्थ सब व्यर्थ जगत में,क्या होता बिन पैसा।

निर्धन से वर्ताव यहाँ पर, होता कैसा-कैसा।।

धनाभाव ने हरिश्चंद्र को,समय दिखाया कैसा।

बेटे के ही क्रिया-कर्म को, पास नहीं था पैसा।।

3-

इसी धरा पर पग-पग दिखती,पैसे की ही माया।

पैसा-पैसा करते भटके, पंचतत्व की…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 29, 2019 at 12:21pm — 2 Comments

गांव का युवा और शहर के गिद्ध

माँ की लोरी सुनकर सोने वाला शिशु,

बाप की उंगली पकड चलने वाला शिशु,

दादी नानी से नये किस्से सुनने वाला शिशु,

खिलौने के लिए बाज़ार में मचलने वाला शिशु।

बडा हो…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 27, 2019 at 1:30pm — 2 Comments

मिलती अवाम को ख़ुशी की जलपरी नहीं  (४०)

(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )

.

मिलती अवाम को ख़ुशी की जलपरी नहीं 

रुख़्सत अगर वतन से हुई भुखमरी नहीं 

**

उल्फ़त जनाब होती नहीं है रियाज़ियात 

चलती है इश्क़ में कोई दानिशवरी * नहीं


**

उम्र-ए-ख़िज़ाँ में आप जतन कुछ भी कीजिये 

नक्श-ओ-निग़ार-ए-रुख़ की कोई इस्तरी नहीं 

**

बरसों से काटती है ग़रीबी में रोज़-ओ-शब

कैसी अवाम है कहे खोटी खरी नहीं

**

घर में न…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 26, 2019 at 11:00pm — 4 Comments

साड़ी शराब ले न अब मतदान कीजिए - लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'(गजल )

२२१/ २१२१/२२२/१२१२



जीवन हो जिसका संत सा गुणगान कीजिए

शठ से हों कर्म उसका ढब अपमान कीजिए।१।



साड़ी शराब ले  न  अब  मतदान कीजिए

लालच को अपने, देश पर कुर्बान कीजिए।२।



करता है जो भी भीख का वादा चुनाव में

जूतों  से  ऐसे  नेता  का  सम्मान कीजिए।३।



कुर्सी को उनकी और मत साधन बनो यहाँ

वोटर हो अपने वोट का कुछ मान कीजिए।४।



मंशा है जिनकी राज हित जनता को…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 26, 2019 at 6:52pm — 4 Comments

कुण्डलिया छंद- 'मतदान'

1-

जिसको भी मतदान का, भारत में अधिकार।

उसको चुननी चाहिए, एक कुशल सरकार।।

एक कुशल सरकार, वोट देने से बनती।

जब देते सब वोट, चैन की तब ही छनती।।

यह भी करें विचार, वोट देना है किसको।

उसको ही दें वोट, लगे अच्छा जो जिसको।।

2-

नेता कहें चुनाव में, वोटर को भगवान।

लोकतंत्र के यज्ञ में, समिधा है मतदान।।

समिधा है मतदान, यज्ञ में शामिल होना।

यह अमूल्य अधिकार, नहीं आलस में खोना।।

करके सोच विचार, वोट जो वोटर देता।

वह वोटर निष्पक्ष, सही चुनता…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 26, 2019 at 1:30pm — 6 Comments

बरवै छंद -

1-

हिरणाकुश नामक था, इक सुल्तान।

खुद को ही कहता था, जो भगवान।।

2-

जन्मा उसके घर में, सुत प्रहलाद।

जो करता था हर पल, प्रभु को याद।।

3-

दोनोों  के  थे  विचार, सब  विरुद्ध।

हिरणाकुश था सुत से, भारी क्रुद्ध।।

4-

बहिन होलिका पर था, ऐसा चीर।

जिसे पहनने से ना, जले शरीर।।

5-

मिला होलिका को तब, यह आदेश।

प्रहलाद को गोद लो, कटे कलेश।।

6-

बैठा गोद जपा फिर, प्रभु का नाम।

हुआ होलिका का ही, काम तमाम।।

7-…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 25, 2019 at 8:00pm — 2 Comments

दोहे ... एक भाव कई रूप ... नर से नारी माँगती ..

दोहे ... एक भाव कई रूप ...

नर से नारी माँगती ..

नर से नारी माँगती, बस थोड़ा सा प्यार।

थोड़े से उस प्यार पर, तन-मन देती वार।।

नर से नारी माँगती , सपनों का शृंगार।

नारी तन का नर अधम ,करता फिर व्यापार।।

नर से नारी माँगती , जीवन भर का साथ।

ले हाथों में हाथ वो, माने उसको नाथ।।

नर से नारी माँगती,बाहों का संसार।

बन जाता फिर प्रेम वो, माथे का शृंगार ।।

नर से नारी माँगती ,माधव जैसा प्यार।

बन…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 25, 2019 at 6:00pm — 13 Comments

रंग-ए-रुख़सार निखरने का सबब क्या आखिर(३९ )

रंग-ए-रुख़सार निखरने का सबब क्या आखिर
आज फिर सजने सँवरने का सबब क्या आखिर
***
आइना बोल उठा अब्र कहाँ बरसेंगे
काकुल-ए-पेचाँ बिखरने का सबब क्या…
Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 23, 2019 at 7:00pm — 6 Comments

पत्थरों पर गीत लिखे

कितने भले हो तुम 
कि तुमने 
पत्थरों पर गीत  लिखे

और पत्थर उछाल दिए 
 
इधर कितने भले हैं हम 
पत्थराई दृष्टि 
पत्थरों पर गीत पढ़े …
Continue

Added by amita tiwari on March 23, 2019 at 12:30am — 1 Comment

होली के दोहे :

होली के दोहे :

हिलमिल होली खेलिए, सब अपनों के संग।

रिश्तों में रस घोलिए, मिटा घृणा के रंग।। १

रंगों की बौछार में, बोले मन के तार।

अधर तटों को दीजिए, साजन अपना प्यार।। २

होली के हुड़दंग में , सिर चढ़ बोले भाँग।

करें ठिठोली मुर्गियाँ, मुर्गे देते बाँग।।३

तन-मन भीगे रंग में, मचली मन की प्यास।

अवगुंठन में नैन से, नैन रचाएं रास। ४

चाहे जितना कीजिए, होली पर हुड़दंग।

लग कर गले मिटाइये,…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 22, 2019 at 7:00pm — 8 Comments

'कागा उवाच' (लघुकथा) :

तीनों प्यासे थे। अपनी-अपनी सामर्थ्य अनुसार वे पानी की तलाश कर चुके थे। मुश्किल से एक सुनसान जगह पर एक झुग्गी के द्वार के पास एक मटका उन्हें दिखाई दिया। बारी-बारी से तीनों ने उसमें झांका। फिर गर्दन झुकाकर एक दूसरे को उदास भाव से देखने लगे। मटके में पानी का तल काफी नीचे था।



बहुत ज़्यादा प्यासे कौए ने पुरानी लोककथा अनुसार काफी कंकड़-पत्थर चोंच से उठा-उठा कर मटके में डाल कर पानी का स्तर ऊपर लाने की कोशिश की, लेकिन उसे उस कथा की कल्पना की सच्चाई समझ में आ गई। थक कर वह बैठ…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 22, 2019 at 6:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल

221, 2121, 1221, 212



दैरो हरम से दूर वो अंजान ही तो है ।

होंगी ही उससे गल्तियां इंसान ही तो है ।।

हमको तबाह करके तुझे क्या मिलेगा अब ।

आखिर हमारे पास क्या, ईमान ही तो है ।।

खुलकर जम्हूरियत ने ये अखबार से कहा ।

सारा फसाद आपका उन्वान ही तो है ।।

खोने लगा है शह्र का अम्नो सुकून अब ।

इंसां सियासतों से परेशान ही तो है ।।

उसने तुम्हें हिजाब में रक्खा है रात दिन ।

वह भी तुम्हारे हुस्न का दरबान ही तो है…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on March 22, 2019 at 4:39pm — 2 Comments

सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई ..

2121-212-2121-212

सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई।।

ख़ैरख्वाह वो बने,खैर-ख्वाही' की गई।।

मुद्दतों के बाद गर जो यूँ बात की गई।।

खामियां जता के ही गात फिर भरी गई।।

गर दो'-आब की पवन,रोंक लें ये खिड़कियां ।

रूह चंद दिवारों के दरमियाँ सिली गई।।

गर कहूँ जो' उनकी' तो साफ़ लफ़्ज हैं यही।

रात-ओ-दिन युँ आदतन हमसे बात की गई ।।

बिन पढ़े किताब -ए- दिल ,ग़र हिंसाब कर दिया ।।

तो दरख़्ती' जिंदगी क़त्ल ही तो की…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2019 at 10:30am — 1 Comment

पत्थरों पे हैं इल्ज़ाम झूठे सभी-गजल

212 212 212 212

अब नए फूल डालों पे आने लगे,

और' भ्रमर फिर ख़ुशी से हैं गाने लगे।

पत्थरों पे हैं इल्जाम झूठे सभी,

राही के ही कदम डगमगाने लगे।

रहबरी तीरगी की जो करते रहे,

अब वो सूरज को दीपक दिखाने लगे।

वादा वो ही किया जो था तुमने कहा,

घोषणा क्यों चुनावी बताने लगे।

जिनकी आँखों पे सबने भरोसा किया,

वक्त  आने पे सारे वो काने लगे।

भैंस बहरी नहीं सुन समझ लेगी सब,

बीन ये सोच कर फिर…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 21, 2019 at 11:30am — 2 Comments

सरदार लाज़मी हो असरदार तो जनाब (३८ )

++ग़ज़ल ++(221 2121 1221 212 /2121 ) 

सरदार लाज़मी हो असरदार तो जनाब 

जो चुन सके अवाम के कुछ ख़ार तो जनाब 

****

ऐसा भी क्या शजर जिसे फूलों से सिर्फ़ इश्क़ 

कोई हो शाख शाख-ए-समरदार* तो जनाब (*फल से लदी डाली )

***

होगा नसीब में कि न हो बात और है 

ता-ज़ीस्त रहती प्यार की दरकार तो जनाब 

***

जज़्बात बर्ग-ए-गुल* से ही होते हैं क़ल्ब…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 20, 2019 at 10:51pm — 2 Comments

नवगीत-वेदना ने नेत्र खोले-बृजेश कुमार 'ब्रज'

वेदना ने नेत्र खोले

रात ने उर लौ लगाई
चांदनी कुछ मुस्कुराई
आज फिर चन्दा गगन में बादलों के बीच डोले
वेदना ने नेत्र खोले

रातरानी खिलखिलाई
रुत रचाती है सगाई
आ गया मौसम बसंती प्रीत पंछी ले हिंडोले
वेदना ने नेत्र खोले

ओ बटोही देश आजा
छोड़कर परदेश आजा
टेरती कोयल सलोनी मन पपीहा नित्य बोले
वेदना ने नेत्र खोले
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2019 at 6:11pm — 8 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

AMAN SINHA posted blog posts
1 hour ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: सही सही बता है क्या

1212 1212सही सही बता है क्याभला है क्या बुरा है क्यान इश्क़ है न चारागरतो दर्द की दवा है क्यालहू सा…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted blog posts
1 hour ago
दिनेश कुमार posted blog posts
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन अभिवादन व हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी. सादर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
" आदरणीय अशोक जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"  कोई  बे-रंग  रह नहीं सकता होता  ऐसा कमाल  होली का...वाह.. इस सुन्दर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली.. हार्दिक बधाई आदरणीय "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service