For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'कागा उवाच' (लघुकथा) :

तीनों प्यासे थे। अपनी-अपनी सामर्थ्य अनुसार वे पानी की तलाश कर चुके थे। मुश्किल से एक सुनसान जगह पर एक झुग्गी के द्वार के पास एक मटका उन्हें दिखाई दिया। बारी-बारी से तीनों ने उसमें झांका। फिर गर्दन झुकाकर एक दूसरे को उदास भाव से देखने लगे। मटके में पानी का तल काफी नीचे था।


बहुत ज़्यादा प्यासे कौए ने पुरानी लोककथा अनुसार काफी कंकड़-पत्थर चोंच से उठा-उठा कर मटके में डाल कर पानी का स्तर ऊपर लाने की कोशिश की, लेकिन उसे उस कथा की कल्पना की सच्चाई समझ में आ गई। थक कर वह बैठ गया।

दूसरे कौए से देखा न गया। अपनी प्यास बुझाने हेेतु उसने अंदाज़ लगा कर मटके के बीच और नीचे वाले भाग की तरफ़ चोंच मारकर छेद करने की कोशिश की। चोंच में अत्याधिक दर्द होने लगा, लेकिन छेद ही न हो सका। पहले वाले को भी कुछ उम्मीद बंधी थी, लेकिन दूसरे वाले का निराश चेहरा उससे देखा न गया।

वे दोनों तीसरे कौए को निहारने लगे, जिसकी आवाज़ बंद हो गई थी प्यास की वज़ह से। तीसरे ने इधर-उधर फुदक कर कोई युक्ति सोची और उड़ कर भाग गया। एक घूरे से कोल्ड-ड्रिंक पीने वाली जैसी लम्बी नलिका सी स्ट्रॉ चोंच में दबाकर वापस लौटा और वह स्ट्रॉ मटके में डाल कर पहले वाले कौए की मेहनत का फ़ायदा लेकर उससे पानी की घूंट पीने लगा। उसके आमंत्रण पर बाकी दोनों कौओं ने भी अपने गले तर कर लिए।


"भाईसाहब! आपको ये तरीक़ा कैसे सूझा? क्या कोई नई लोककथा सुन-पढ़ ली?" दूसरे वाले कौए ने पहले वाले के पास बैठ कर तीसरे से पूछा।


"चौकन्ना रहना होगा! इस ज़माने में इंसान किस-किस तरह से जुगाड़ करते हैं; चारों तरफ़ क्या, कैसे और क्यों हो रहा है सब समझना होगा अपडेट रहने वास्ते!" तीसरे के कंठ से आवाज़ निकली, आत्मविश्वास के साथ।


"हां, सही कहते हो! यहां तो लोग बेरोज़गार, अनपढ़़, ग़रीब, अपराधी, पशु-पक्षियों सब से अपने काम निकाल लेते हैं! हमको भी आजकल के साम-दाम-दंड-भेद-तकनीक सब सीखने चाहिए! यही नई कथा-व्यथा है!" पहले कौए ने तीसरे से चोंच मिला कर कहा।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 587

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 1, 2019 at 5:11pm

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर अपना अमूल्य समय देकर व राय देते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीय समर कबीर साहिब,  आदरणीय सुशील सरना साहिब, आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा और आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।

Comment by babitagupta on March 29, 2019 at 11:56pm

संदेशात्मक रचना, जमाने के साथ चलना हैं तो कमजोरियों के रोना ना रोकर,सोच को विस्तृत करो अर्थात् अपडेट हर पल रहना ।

बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय शेख सरजी।

Comment by Neelam Upadhyaya on March 27, 2019 at 2:21pm

आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी, नमस्कार। अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on March 26, 2019 at 7:15pm

आदरणीय शेख़ उस्मानी साहिब, आदाब .... बहुत ही सुंदर और सारगर्भित लघु कथा हुई है। अपडेट रहना ही पड़ेगा वरना ज़माना आगे निकल जाएगा हमें छोड़कर।

Comment by Samar kabeer on March 26, 2019 at 2:28pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 23, 2019 at 12:05pm
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन, संदेश प्रद, रोचकता पूर्ण एवम प्रतीकत्मक लघुकथा।अच्छी कल्पना।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
51 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service