For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गांव का युवा और शहर के गिद्ध

माँ की लोरी सुनकर सोने वाला शिशु,

बाप की उंगली पकड चलने वाला शिशु,

दादी नानी से नये किस्से सुनने वाला शिशु,

खिलौने के लिए बाज़ार में मचलने वाला शिशु।

बडा हो गया , इतना के अदब भूल गया है, 

महत्वकाशाँ को पाले, सपने पूरे करने की जिद में,

रिश्तो की ले रहा बली, माँ चुप और बाप मौन है,

 सुन लाल तेरे सिवा हमारा जग में कौन है।।

            वातावरण में नीरवता

महत्वकाशाँ के स्वप्न पंखो पर आरुढ होकर,

वो चल पडा  फिर गांव से  शहर की ओर,

पत्थरो के शहर में गश्त करते पोलिस जवान,

जैसे बियाबान,तभी किसी ने अंदर खींचा,बिठाया।

एक बुज़ुर्ग फुस्फुसाया शहर में आज़ कर्रफ्यू है,

तुम कौन? उसने पूछा मैने बताया उसने अट्टाहस लगाया,

फिर पूछा क्या करोगे शहर में,मैने कहा कुछ भी,

युवा हूँ और युवा चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता।।

 

         फिर एक लंबी खामोशी

 

तो तुम युवा हो, वायु के रथ पर सवार ,

कोई कैसे सीखा सकता है के तुम्हे कैसे जीना है,

तुम नये ज़माने  के  युवा हो और आज़ाद भी हो,

युवा  यानि जोश और खरोश से लबालब सागर।

युवा अगर बढे तो आसमाँ छू ले  और पलटे तो वायु,

और वायु  यानि शक्ति का एक अतुलनीय भंडार,

जो कभी भी नहीं  डरता, उससे कैसी  तकरार,

वो गर चल पडे तो इस पार या फिर उस पार।।

             मगर सावधान

वत्स ये तुम्हारा प्यारा, न्यारा गांव नही है ,

जहाँ जीवान प्रेम से शुरु ,प्रेम पर खत्म होता है,

जहाँ कुछ अप्रिय होने पर बुज़ुर्ग सम्भाल लेते हैं,

ये पत्थरो का एक विशाल जंगल रुपी शहर है।

यहाँ शिकार की तलाश में गिद्ध दृष्टि गडाये बैठे हैं,

ये गिद्द युवा नहीं बुढे हैं शिकार करने में असमर्थ,

ये बहलायेंगे फुसलायेंगे उकसायेंगे अपने स्वार्थ के लिए,

अब निर्णय तुम्हे करना है अपने विवेक  के बल पर।।

                किंतु ठहरो

 निर्णय से पूर्व अपनी महत्वकांशाओ को तराजू में तोलो,

महत्व समझो और देखो इनको अपने भविष्य के दर्पण में,

क्या आवश्यक है इनका बोझ ढोते ढोते यूँ ही मर जाना,

या ऐसा पथ चुनना जिसमें सुख भी हो और शांति भी ।

चलो इस असमंजस से बाहर निकलो और निर्णय लो,

अन्यथा ये बूढे और चालाक गिद्द तुम्हे कही का ना छोडेंगे,

 तुम सम्भल गये तो सहस्रो के प्राण वायु बन सकोगे,अन्यथा,

ना युवा ना वायु बाल्कि शहर के गिद्दो में एक गिनती मात्र।।

-प्रदीप भट्ट- मौलिक व अप्रकशित

Views: 351

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PHOOL SINGH on April 15, 2019 at 5:14pm

एक अच्छा प्रस्तुतिकरण सुंदर बधाई स्वीकारें|

Comment by Samar kabeer on March 31, 2019 at 11:33am

जनाब प्रदीप भट्ट साहिब आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service