For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

January 2012 Blog Posts (97)

मैं और तन्हाई ...

मैं

और

तन्हाई

लड़ते रहते हैं

कभी बिखरते

कभी संवरते

रहते हैं.

ओ तन्हाई !

तुम क्यों

दुःख -पीड़ा को

रखती हो अपने साथ

फिरती हो यहाँ वहां

लिये हाथों में हाथ…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 11, 2012 at 5:04pm — 1 Comment

भारतीय नव वर्ष

भारतीय नव वर्ष तथा काल गणना.......

काल खंड को मापने के लिए जिस यन्त्र का उपयोग किया जाता है उसे काल निर्णय, काल निर्देशिका या कलेंडर कहते हैं|

दुनिया का सबसे पुराना कलेंडर भारतीय है | इसे स्रष्टि संवत कहते हैं,इसी दिन को स्रष्टि का प्रथम दिवस माना जाता है| यह संवत १९७२९४९११३ यानी एक अरब, सत्तानवे करोड़ ,उनतीस लाख, उनचास हज़ार,एक सौ तेरह वर्ष (मार्च २०१२ तक, विक्रम संवत २०६९ के प्रारंभ तक ) पुराना है|

हमारे ऋषि-…

Continue

Added by dr a kirtivardhan on January 11, 2012 at 4:30pm — 3 Comments

वफा

वफाओं के किस्सों की, 
तो कोई किताब ही नहीं...
यह तो वो ज़ज्बात हैं,
जिनके लिए कोई अल्फाज़ ही नहीं...
कैसे बाँधा है किसी ने,
वफाओं को अल्फाजों में,
ये तो वो किस्से है,
जिनकी कोई जुबाँ ही नहीं...

Added by Yogyata Mishra on January 11, 2012 at 11:01am — 1 Comment

तलाश

चल पड़ा हूँ इक सफ़र पर,

एक अनजानी डगर पर |

मजिल पता है, कि जाना कहाँ है |

पर रास्ता नहीं, वो कहीं खो गया है |

वो मंजिल मैं अब हर डगर ढूँढता हूँ |

कभी तो मिलेगी, अगर ढूँढता हूँ |



जज्बों में हिम्मत, इरादे बड़े हैं |

मगर राह में ऊंचे पर्वत खड़े हैं |

इन्हें पार करना भी मुश्किल बड़ा है |

मगर अब ये बंद भी जिद पे अड़ा है|

इन्हें लांघने का सबब ढूँढता हूँ |

कभी तो मिलेगा अगर ढूँढता हूँ |



किसी कि दुआएं…

Continue

Added by Vikram Srivastava on January 11, 2012 at 2:00am — 1 Comment

ग़ज़ल

सूद पहले फिर असल दो

इक मुहब्बत की ग़ज़ल दो

जो परिन्दे छत पे आयें

उनको दाने और जल दो

शक्ल वैसी ही रहेगी

आईना चाहे बदल दो

धर्मशाला है ये दुनिया

रात काटो और चल दो

ये बदन कल तक नया था

अब पुराना है बदल दो

तुम सवेरे-शाम आओ

मेरे जीवन में खलल दो

......दीपक कुमार

Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 7:13pm — 14 Comments

पहचान नहीं होती

तूफां से सागर की पहचान नहीं होती ,

झील कितनी बड़ी हो,सागर नहीं होती|

गर दुष्टों को सम्मान मिला करता जहाँ मे,

शराफत की कोई पहचान नहीं होती|

बनता है कोई सागर सा,मन की गहराइयों से,

टूटी हुई तलवार की,कोई म्यान नहीं होती|

हीरे ,मोती,मानिक के,सब हैं लुटेरे,

हर निगाह ज्ञान के मोती की,कद्रदान नहीं होती|

किसी किसी पे बरसती है रहमत खुदा की,

बेईमानों की कीमत,उनकी जुबान नहीं होती|

भागते हैं जो लोग फकत दौलत के पीछे,

ईमानदारी की बातें,उनका इमान नहीं…

Continue

Added by dr a kirtivardhan on January 10, 2012 at 4:00pm — 2 Comments

गीत : जब तुम बसंत बन थीं आयीं... संजीव 'सलिल'

गीत :

जब तुम बसंत बन थीं आयीं...

संजीव 'सलिल'

*

जब तुम बसंत बन थीं आयीं...

*

मेरा जीवन वन प्रांतर सा

उजड़ा उखड़ा नीरस सूना-सूना.

हो गया अचानक मधुर-सरस

आशा-उछाह लेकर दूना.

उमगा-उछला बन मृग-छौना

जब तुम बसंत बन थीं आयीं..

*

दिन में भी देखे थे सपने,

कुछ गैर बन गये थे अपने.

तब बेमानी से पाये थे

जग के…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2012 at 10:00am — 1 Comment

ग़ज़ल

सामान उठाते हैं

अब लौट के जाते हैं

दिल मेरा दुखाने को

अहबाब भी आते हैं

ये चाँद-सितारे भी

रातों को रुलाते हैं

जो टूट के मिलते थे

वो रूठ के जाते हैं

मैं उनका निशाना हूँ

वो तीर चलाते हैं

हम अपनी उदासी को

हँस-हँस के छुपाते हैं

की ख़ूब अदाकारी

पर्दा भी गिराते हैं

.......दीपक कुमार

Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 12:25am — 10 Comments

सूरज भी कतराने लगा

बेवफा होना तेरा क्या क्या सितम ढाने लगा

अब तो मैं मंदिर में भी जाने से घबराने लगा

हो अलग तुमने जला डाली थी मेरी याद तक

मैं तेरी तस्वीर से दिल अपना बहलाने लगा

भोर की पहली किरण मैंने चुराकर दी जिसे

दूसरे के घर को अब वो फूल महकाने लगा

सर्द रातों में लिपट जाता था कोहरे की तरह

मैं बना सूरज तो दुःख का चाँद शरमाने लगा

घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई

मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा

 

 

 

………………………………….. अरुन…

Continue

Added by Arun Sri on January 9, 2012 at 2:00pm — 4 Comments

तुम्हारी याद में..... तुम्हारे जाने के बाद

तुम्हारी याद मे........

मैं खोयी थी अपने इन्द्रधनुषी सपनों में

अचानक बादलों की एक गडगडाहट ऩे

मुझे तुमसे मिला दिया|

लेकिन मैं कभी मन से

तुम्हारी न बन सकी|

तुम्हारा नियंत्रण मेरी देह पर था,

परन्तु मन आज भी

उन्ही इन्द्रधनुषी सपनों मे

रंगा हुआ था |

धीरे धीरे हमारे बीच दूरियाँ बढ़ने लगी,

बात बेबात तकरारे बढ़ने लगी,

आँगन मे गुलाब के साथ

कैक्टस भी फलने फूलने लगा|

और एक दिन

जब तुम चले गए

मुझे छोड़कर तन्हा

कहीं दूसरे…

Continue

Added by dr a kirtivardhan on January 8, 2012 at 9:00pm — 1 Comment

सपना

सपना ---

लंगड़े की बैशाखी,बच्चे का खिलौना,

रेल आई -रेल आई,लेकर दौड़ा छोना |

.

सुख की परिभाषा उस बच्चे से पूछो,

ना खाने को रोटी,ना सोने का बिछोना|

.

खेलता है फिर भी,रुखी रोटी खा,

मांगता नहीं वह कार या खिलौना|

.

देखा है मैंने उसको सपने सजाते,

खुले गगन तले चाहता है वह सोना|

.

धरती से अम्बर उसकी सीमाएं हैं,

देखता है सबको रोटी का वह सपना|

.

.

डॉ अ कीर्तिवर्धन…

Continue

Added by dr a kirtivardhan on January 8, 2012 at 8:30pm — 8 Comments

कोख का दर्द



मेरी कोख नहीं हुई

अभी तक उजली

क्योंकि उसने दी नहीं…

Continue

Added by mohinichordia on January 8, 2012 at 8:47am — 8 Comments

अमीरी और गरीबी की समीकरणें

इंसान खोज चुका है वे समीकरणें

जो लागू होती हैं अमीरों पर

जिनमें बँध कर चलता है सूर्य

जिनका पालन करती है आकाशगंगा

और जिनके अनुसार इतनी तेजी से

विस्तारित होता जा रहा है ब्रह्मांड

कि एक दिन सारी आकाशगंगाएँ

चली जाएँगी हमारे घटना क्षितिज से बाहर

हमारी पहुँच के परे

ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार

जहाँ अनिश्चितताएँ नगण्य हैं



खोजे जा चुके हैं वे नियम भी

जिनमें बँध कर जीता है गरीब

जिनसे पता चल जाता है परमाणुओं का… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 7, 2012 at 11:58pm — 3 Comments

चंद फुटकर शेर :

अंदाज़ क्या खूब हैं उनकी नज़रों के या रब,

किस अंदाज़ से वो नज़र अंदाज़ किया करते हैं |
                    -x-
अदा होती गयीं ज्यों-ज्यों वफ़ा की किश्तें,
और भी साफ़ होते गए स्वार्थ के रिश्ते |
                    -x-
एक बस में बैठ, माँ तो चली गयी अपने घर,
मेरा मन अब भी रोता भटकता, बस-स्टैंड पर |
                    -x-
दिन भर…
Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on January 7, 2012 at 9:00pm — 6 Comments

रामलू- लघु कथा.

मेरे गाँव का रामलू .बचपन से ही जरा आपराधिक प्रवृत्ति का था.बड़ा हुआ तो पुलिस यदा-कदा उसके पीछे रहती थी. कुछ दिनों बाद वह गायब हो गया.कालान्तर में एक घटना हुई .मै शहर किसी काम से गया.वहां किसी बाबा का प्रवचन चल रहा था.उत्सुकतावश ,भीड़ देख मै भी पंडाल में घुस गया.कड़ा पहरा था मंच के इर्द-गिर्द.बाबा पे मेरी नज़र पड़ी तो मै..अवाक्!!! अरे!ये तो अपना रामलू ही है!!!! इतना बदल गया!!
जो नहीं बदला वो ये कि-मंच पर पुलिस अब भी उसके पीछे थी.
--अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on January 7, 2012 at 7:00pm — 2 Comments

उन्हें देख कर सूरत पे जलाल आए

जब भी तुझको पाने का ख्याल आए |

पाए किस तरह ज़हन में सवाल आए ||

.

छोड़ कर हिया वो आ लगे गले से ,

जब उनसे हम पूछने उनका हाल आए |

.

बिन उनके तो हम बैठे रहें बुझे से ,

उन्हें देख कर सूरत पे…

Continue

Added by Nazeel on January 7, 2012 at 12:00pm — 3 Comments

पहले सी मासूमियत

याद आता है

अपना बचपन,

जब  हम उड़ान में रहते थे

बेफिक्री के असमान में रहते थे

दिन गुजरता था बदमाशियों में

पर रात अपने ईमान में रहते थे !

याद आता है,

दिन भर तपते सूरज को चिढाना

आंधियो के पीछे भागना

उनसे आगे निकलने की कोशिश करना

जलती तेज हवाओं से हाथ मिलाना,

और फिर ..............

पता ही नही चला कि

कब माँ की कहानियों की गोद से उठकर

हमारी नींद सपनो के आगोश में चली गई !



दिन से अच्छी थी रातें

हमेशा से

और…

Continue

Added by Arun Sri on January 7, 2012 at 11:00am — 6 Comments

सामयिक दोहे

सामयिक दोहे:-
------------   ---------- 

कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!

एक गोद में सिसक रहा,उसपे भारी पांव.
------------   ----------   -----------------  --
फिर चुनाव आये सखी,झरने लगे बयान.
अपने-अपने नेता है,अपनी-अपनी तान.
------------   ----------   -----------------  --
लोकपाल है शोक में,जोक मारते लोग.
खुद होकर पाले नहीं ,नेता कोई रोग.
------------   ----------  …
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on January 6, 2012 at 7:58pm — 15 Comments

प्यास बुझती नहीं ..

प्यास बुझती नहीं ..

देश था परतंत्र

गुजरे ज़माने की बात है

मुद्दतों बाद तुमसे मुलाकात है.

गुलामी की ज़ंजीर डली थी पाँव मे.

तपती धूप

दोपहरी जेठ की

कौन बैठता था छाओं में.

पर प्यास तो थी

जीभ पर नहीं

ज़हन में…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 6, 2012 at 12:00pm — 3 Comments

तुझ बिन ...

तुझ बिन जिंदगी हमसे, कुछ ऐसे फिसल रही है ,

ज्यों कतरा कतरा जान, हर दम निकल रही है .



हर आहट पे तू आया, गफलत मुझे सताती ,

ख्वाबों से घायल नींदें , हर पल संभल रही है .



तुझे बेवफा जो कहते, वो लोग हैं बहुत से ,

लोगों को तू दिखा दे, वो वफ़ा मचल रही है .

.

मैं जानता हूँ जानम , तेरी मजबूरियों को ,

तू एक बार आ जा, मेरी…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 5, 2012 at 4:49pm — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service