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पहचान नहीं होती

तूफां से सागर की पहचान नहीं होती ,
झील कितनी बड़ी हो,सागर नहीं होती|
गर दुष्टों को सम्मान मिला करता जहाँ मे,
शराफत की कोई पहचान नहीं होती|
बनता है कोई सागर सा,मन की गहराइयों से,
टूटी हुई तलवार की,कोई म्यान नहीं होती|
हीरे ,मोती,मानिक के,सब हैं लुटेरे,
हर निगाह ज्ञान के मोती की,कद्रदान नहीं होती|
किसी किसी पे बरसती है रहमत खुदा की,
बेईमानों की कीमत,उनकी जुबान नहीं होती|
भागते हैं जो लोग फकत दौलत के पीछे,
ईमानदारी की बातें,उनका इमान नहीं होती|
छुपा है खज़ाना बेहिसाब,सागर की गहराइयों मे,
बिना उतरे गहराई मे,कुदरत मेहरबान नहीं |
सोच कर मंजर बर्बादी का,तूफ़ान से पहले,
मछुआरों की बस्ती,विरान नहीं होती|
मुश्किल मे अक्सर,भाग जाते हैं छोड़कर,
बुजदिलों की अलग,कोई पहचान नहीं होती|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
९९११३२३७३२

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on January 11, 2012 at 9:45am

bahut khoob shaandaar ghazal ke liye hardik badhai !!

Comment by mohinichordia on January 10, 2012 at 9:20pm

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