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अमीरी और गरीबी की समीकरणें

इंसान खोज चुका है वे समीकरणें
जो लागू होती हैं अमीरों पर
जिनमें बँध कर चलता है सूर्य
जिनका पालन करती है आकाशगंगा
और जिनके अनुसार इतनी तेजी से
विस्तारित होता जा रहा है ब्रह्मांड
कि एक दिन सारी आकाशगंगाएँ
चली जाएँगी हमारे घटना क्षितिज से बाहर
हमारी पहुँच के परे
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ अनिश्चितताएँ नगण्य हैं

खोजे जा चुके हैं वे नियम भी
जिनमें बँध कर जीता है गरीब
जिनसे पता चल जाता है परमाणुओं का संवेग
इलेक्ट्रानों की स्थिति, वितरण और विवरण
रेडियो सक्रियता का कारण
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ चारों ओर बिखरी पड़ीं हैं अनिश्चितताएँ

पर जैसे ही हम मिलाते हैं
गरीबों और अमीरों की समीकरणों को एक साथ
फट जाता है सूर्य
घूमना बंद कर देती है आकाशगंगा
टूटने लग जाते हैं दिक्काल के धागे
हर तरफ फैल जाती है अव्यवस्था
किसी गुप्त स्थान से आने लगती हैं आवाजें
“ऐसा कोई नियम नहीं बन सकता
जो अमीरों और गरीबों पर एक साथ लागू हो सके
हमारे नियम अलग हैं और अलग ही रहेंगे”

कसमसाने लगते हैं
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत भाग को घेरने वाले
काली ऊर्जा और काला द्रव्य

मगर इन आवाजों के बावजूद
सीईआरएन में धमाधम भिड़ते हैं शीशे के परमाणु
खोजा लिया जाता है
प्रकाश की गति से ज्यादा तेज चलने वाला न्युट्रिनो
पकड़ा जाने ही वाला है हिग्स बोसॉन
लोगों का गुस्सा उतरने लगा है सड़कों पर
संसद का एक सदन पार चुका है लोकपाल

धीरे धीरे खोजे जा रहे हैं
दो परस्पर विरोधी समीकरणों को जोड़ने वाले
छुपकर बैठे धागे

दूर कहीं मुस्कुराता हुआ ईश्वर
निश्चित कर रहा है समय
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत काले हिस्से के सफेद होने का

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 9, 2012 at 9:54pm

आदरणीय सौरभ जी और सतीश जी इस प्यार और हौसला अफ़जाई के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 9, 2012 at 2:21pm

जिस ज़मीन से उपरोक्त बात कही गयी है, उसके लिये पहली बधाई.

 

सीईआरएन में धमाधम भिड़ते हैं शीशे के परमाणु
खोज लिया जाता है
प्रकाश की गति से ज्यादा तेज चलने वाला न्युट्रिनो
पकड़ा जाने ही वाला है हिग्स बोसॉन
लोगों का गुस्सा उतरने लगा है सड़कों पर
संसद का एक सदन पार चुका है लोकपाल

आत्म-निर्णय से उपजी क्रिया पद्धति और झोंक में किये गये मनमानेपन के बीच के अंतर को समझना बहुत ही आवश्यक है. इन्हीं विन्दुओं की समझ वस्तुतः देवत्त्व और दानवी प्रक्रिया की समझ बढ़ाती है.  कवि ने देवत्त्व की आड़ में आरोपित हो रहे काइयाँपन को परखे जाने की सोच पर जोर दिया है.  हिग्स बोसोन के माध्यम से अत्यंत ही अनूठे ढंग से प्रकाश डालने के लिये भाई धर्मेन्द्रजी आपको शत्-शत् बधाई. ..

हार्दिक बधाई !!!

 

Comment by satish mapatpuri on January 8, 2012 at 1:13am

“ऐसा कोई नियम नहीं बन सकता जो अमीरों और गरीबों पर एक साथ लागू हो सके हमारे नियम अलग हैं और अलग ही रहेंगे”

इस रचना के लिए बहुत - बहुत बधाई मित्रवर ................ सच कहें तो आज ऐसी ही सोच की जरुरत है.

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