For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सामयिक दोहे:-
------------   ---------- 

कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!

एक गोद में सिसक रहा,उसपे भारी पांव.
------------   ----------   -----------------  --
फिर चुनाव आये सखी,झरने लगे बयान.
अपने-अपने नेता है,अपनी-अपनी तान.
------------   ----------   -----------------  --
लोकपाल है शोक में,जोक मारते लोग.
खुद होकर पाले नहीं ,नेता कोई रोग.
------------   ----------   -----------------  --
कौव्वों की इस भीड़ में,करिए हंस तलाश.
जिन लोगों की जिद्द पे टिका हुआ आकाश.
------------   ---------- 
अविनाश बागडे.

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AVINASH S BAGDE on February 3, 2012 at 10:20am
आदरणीय Brij bhushan choubey ji ,.सुनीता शानू ji,Shanno Aggarwal mam, Sanjay Mishra 'Habib' bhai.मेरे दोहों को आप सब ने प्यार दिया.
आपका ह्रदय से आभार.
Comment by AVINASH S BAGDE on February 3, 2012 at 10:17am
आपका ह्रदय से आभार.
सौरभ जी मै धन्य हुआ.
Comment by Brij bhushan choubey on January 25, 2012 at 2:23pm
कौव्वों की इस भीड़ में,करिए हंस तलाश.
जिन लोगों की जिद्द पे टिका हुआ आकाश.....kya bat .....bahut khub .
Comment by सुनीता शानू on January 24, 2012 at 1:49pm

क्या बात! बहुत-बहुत बधाई बहुत सुन्दर दोहे लिखे हैं अविनाश जी।

Comment by Shanno Aggarwal on January 9, 2012 at 5:53am

बहुत सुंदर दोहे लिखे हैं. बधाई...अविनाश जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 7, 2012 at 10:20pm

बहुत अच्छे दोहे, अविनाश भाई. बहुत-बहुत बधाई.

कौव्वों की इस भीड़ में,करिए हंस तलाश.
जिन लोगों की जिद्द पे टिका हुआ आकाश.
 

उपरोक्त दोहे की जितनी तारीफ़ करूँ कम होगा.  दोहे के लिये आवश्यक पैनी दृष्टि और अति सधे विचार के लिये भाई आपको हृदय से बधाई दे रहा हूँ. आपने वस्तुतः बताया है जमीन की बात करने वाले कवि का वैचारिक आयाम क्या हो.  वाह !!

 

एक अनुरोध : पहले दोहे में पहली पंक्ति को दूसरी और दूसरी पंक्ति को पहली पंक्ति करके देखा जाय. इस थोड़े से फेर-बदल से कथ्य कुछ अधिक निखर कर सामने आयेगा क्या?

 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2012 at 8:47pm

संजय भाई, दोहे में गुरु+लघु भूल गए क्या ??????????

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 7, 2012 at 8:43pm

सारे दोहे आज की, सच्ची खींचे चित्र 

जागे सारा देश भी, यही कामना मित्र

बढ़िया प्रासंगिक दोहावली आदरणीय अविनाश भाई.... सादर बधाई.

Comment by AVINASH S BAGDE on January 7, 2012 at 7:08pm

AjAy Kumar Bohat ji  bahut-bahut aabhar.

Comment by AVINASH S BAGDE on January 7, 2012 at 7:07pm

सुन्दर गुलदस्ता बनी, दोहावली जनाब

सब दोहे खुशरंग हैं, जैसे फूल गुलाब.......वाह बहुत खूब योगराज प्रभाकर जी साधुवाद !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service