आग हूँ कुछ पल दहक जाने की मोहलत चाहता हूँ ,
दर्द को पीकर बहक जाने की मोहलत चाहता हूँ.
फिर बिखर जाऊँगा एक दिन पिछले मौसम की तरह ,
फूल हूँ कुछ पल महक जाने की मोहलत चाहता हूँ,
पहले कीलें ठोकिये पहनाईए काँटों का ताज ,
फिर मैं सूली पर लटक जाने की मोहलत चाहता हूँ.
आपकी इन बूढ़ी आँखों का सहारा बन सकूं ,
इसलिए बाबा शहर जाने की मोहलत चाहता हूँ.
कतरा कतरा चूसकर हर शख्स मीठा हो गया…
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Added by Abhinav Arun on September 12, 2010 at 10:38pm —
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इस तरह से तेरी मुहब्बत दिल में समाई है
यूं जिन्दगी मेरी है पर तेरी लगे परछाई है
चाहे शमा की रोशनी चाहे नूर आफताब की
बगैर तेरे हरसू ता़रीकी हर जगह सियाही है
दौलत शोहरत आगोश में रहे सियासत दुनिया का
जब तुं नहीं दिल में हर मोड़ पर तन्हाई है
तुझे यकीं हो न शायद है दिल को एहसास मगर
बदले करवट मेरे जज़्बात जब लेती तुं अंगराई है
धड़कन तेरे दम से है बरकरार सांस सीने में
वजूद मेरी निशां तेरी उल्फत की खुदनुमाई है
और क्या कहे शरद…
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Added by Subodh kumar on September 12, 2010 at 9:30pm —
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उनकी यादो से हमने दोस्ती कर ली,
उसकी परछाई से मोहब्बत कर ली,
उन्होंने बेवफा समजा तो क्या गम है,
बेवफाई से भी हमने वफ़ा कर ली.
Added by rohit kumar sahu on September 12, 2010 at 6:16pm —
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Added by Subodh kumar on September 12, 2010 at 9:00am —
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ये जानता हूँ मैं कि जिंदगी में जिंदगी मिलती नहीं है कभी,
पर फिर भी जिंदगी भर जिंदगी को तलाश रहा हूँ मैं ,
ये जनता हूँ मैं कि वो आसंमा से उतरी परी है,
फिर भी आदमी हो कर उसे छु लेना चाहता हूँ मैं,
ये जानता हूँ मैं कि इजहारे मुहब्बत एक तूफ़ान है ,
पर फिर भी इस तूफ़ान से गुजर जाना चाहता हूँ मैं,
ये जनता हूँ मैं इस जहां से तनहा ही जाऊंगा मैं,
पर फिर भी हर लम्हा उसे याद करता हूँ मैं,
ये जानता हूँ मैं कि उस से लब्ज दो लब्ज भी कह नहीं…
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Added by vinay sharma on September 11, 2010 at 2:30pm —
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Added by Subodh kumar on September 11, 2010 at 11:00am —
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भजन :
एकदन्त गजवदन विनायक .....
संजीव 'सलिल'
*
*
एकदन्त गजवदन विनायक, वन्दन बारम्बार.
तिमिर हरो प्रभु!, दो उजास शुभ, विनय करो स्वीकार..
*
प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!
रिद्धि-सिद्धि का पूजनकर, जन-जीवन सफल बनाओ रे!...
*
प्रभु गणपति हैं विघ्न-विनाशक,
बुद्धिप्रदाता शुभ फलदायक.
कंकर को शंकर कर देते-
वर देते जो जिसके लायक.
भक्ति-शक्ति वर, मुक्ति-युक्ति-पथ-पर पग धर तर जाओ रे!...
प्रभु गणेश की…
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Added by sanjiv verma 'salil' on September 11, 2010 at 9:09am —
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यह ब्लॉग लिखकर मैने इन महाकवियो के महा कुंभ मे सिर्फ़ एक डुबकी लगाने की कोशिस की है.
यह एक ऐसी महारानी है जिनका नाम शायद ही किसी के मधुर वाणी का मोहताज हो.मतलब सॉफ है की द्देश् के हर मध्यम और निम्न वर्ग के लोग के मुह से अक्सर ही इनका नाम निकल ही जाती है, आख़िर महारानी जो है, भाई पूरे देश पर राज करती है यह महारानी.
पहले तो इनकी चर्चाए या नाम चुनाव के समय ही सुनने को मिलते थे, पर आजकल तो…
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Added by Ratnesh Raman Pathak on September 10, 2010 at 6:30pm —
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क़दम
उन्ही के कदमों में जा गिरा ज़माना है
इश्क़-ओ-मुहब्बत का जिनके पास ख़ज़ाना है
वफ़ा की सूली पे जो हँसता हुआ चढ़ जाए
नाम-ए-बेवफ़ाई से बिल्कुल जो अंजाना है
ईद और दीवाली में जो फ़र्क़ नहीं करता
अल्ला और राम को एक जिसने माना है
आसां नहीं है जीना ऐसे जनू वालों का
शॅमा की मुहब्बत में हँसकर जल जाते परवाने हैं
'दीपक कुल्लवीउन सबको करता है सलाम
इंसानियत का बोझ जो हंसकर उठाते हैं
दीपक शर्मा कुल्लवी
09136211486
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 10, 2010 at 4:25pm —
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कहते हैं
बड़ा दम होता है
गरीब की आंखों से
निकलने वाले आंसुओ में ॥
भष्म कर देते है
पत्थरो से बने महलों को ॥
ठीक उसी तरह
जैसे नदी का बहता
शीतल -कोमल जल
बालू कर देती है
तोड़ -तोड़ कर
पत्थरो को॥
Added by baban pandey on September 10, 2010 at 10:00am —
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पुरानी डायरी देख...
खुल गये कुछ पन्ने पुराने...
कुछ सपने... कुछ अरमाँ... कुछ यादें...
जिन्हें कभी जीया था मैनें, यूँ ही...
यँहीं इन पन्नों में...
जिनकी भीनी-भीनी महक...
आज भी गुमा रही थी मुझे...
वही ताज़गी... वही एहसास... वही मासूमियत...
पर कुछ है...
जो अब वैसा नही...
क्या है...???
शायद... ’मैं’...???
हाँ... ’मैं’...!!
नही रही अब ’मासूम’...
नही रहे अब वो… Continue
Added by Julie on September 9, 2010 at 7:28pm —
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Added by Subodh kumar on September 8, 2010 at 6:00pm —
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मित्रों ,यह कविता बिहार में अक्टूबर -नवम्बर २०१० में होने वाले चुनाव के परिपेक्ष्य में लिखा गया है ॥लालटेन
तीर ,हाथ और कमल ...विभिन्न राजनितिक दलों के चुनाव चिन्ह है //
आ गया मदारी
बजा रहा है डुगडुगी
बंदरों में होने लगी है सुगबुगी
अनेकों हैं नुस्खे
बंदरों को रिझाने के
नज़र डालिएगा इन पर जरा हंस के ॥
पिछली गल्तियाँ अब नहीं करूगाँ
सवर्णों को भी टिकट दूगाँ॥
अपने शाले ने भोंका था भाला
लगाने चला था मेरे ही घर में ताला
इसीलिए घर…
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Added by baban pandey on September 8, 2010 at 8:52am —
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बन्द कमरे में जो मिली होगी
वो परेशान जिन्दगी होगी
यूं भी कतरा के गुजरने की वजह
हममें तुममें कहीं कमी होगी
हम सितम को वहम समझ बैठे
कौन सी चीज आदमी होगी
और भी कई निशान उभरे है
तेरी मंजिल यहीं कहीं होगी
ये है दस्तूरे आशनाई तपिश
उनकी आँखों में भी नमी होगी --
मेरे काव्य संग्रह ---कनक ---से -
Added by jagdishtapish on September 8, 2010 at 8:20am —
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Added by Subodh kumar on September 7, 2010 at 3:09pm —
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आइये
यु.पी. की सैर कराते हैं ,
उस घर में लेकर चलते हैं ,
जहाँ घर नें
गवाएँ मालिक हैं ,
भला हो मीडिया की बात सामने आती हैं ,
"आजतक" पर जो देखा
आँख से आसू आती हैं ,
छोटेलाल ने
अरजी किया था ,
घर में बिजली पाने की ,
घर में बिजली नहीं
आयी ,
नजर लगी बिजली वालो की ,
आया बिल सवा लाख का ,
बेचारा का सर
चकरा गया ,
गया बिचली ऑफिस में ,
कुर्की जप्ती का फरमान पा गया ,
बहुत कोशिश की पर नहीं…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 7, 2010 at 2:00pm —
1 Comment
रेशम के शहर आ बसा हूँ इस यकीन से
कोई तो मिले इश्क जिसे पापलीन से !
मैं चाँद सितारों के ज़िक्र में हूँ अनाड़ी,
इन्सान हूँ जुड़ा हुआ अपनी ज़मीन से !.
सच्चाई की तासीर तो कड़वी ही रहेगी,
आएगी न मिठास कभी भी कुनीन से !
मजबूरी-ए-हालात है कुछ और नहीं है,
जो मस्त लगा नाग सपेरे की बीन से !
बंगले मकान तो यहाँ लाखो ही मिलेंगे
घर ढूँढना पड़ेगा मगर दूरबीन से !
सर को उठाऊँ ग़र तो चूल्हा रहे ठंडा,
सर को झुकाऊँ गर तो गिरता हूँ…
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Added by योगराज प्रभाकर on September 7, 2010 at 10:00am —
21 Comments
▬► Photography by : Jogendrs Singh ©
The little girl in dis pictire is my daughter "Jhalak"..
::::: चाँद की चाहत ::::: Copyright © (मेरी नयी शायरी)
जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 08 अगस्त 2010 )
▬► NOTE :- कृपया झूठी तारीफ कभी ना करिए.. यदि कुछ पसंद नहीं आया हो तो Please साफ़ बता दीजियेगा.. मुझे अच्छा ही लगेगा..
▬►…
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Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 5, 2010 at 10:30pm —
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▬► Photography by : Jogendrs Singh ©
::::: मैं एक हर्फ़ हूँ ::::: Copyright © (मेरी नयी कविता)
जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 09 अगस्त 2010 )
मेरे मित्र आर.बी. की लिखी एक रचना जो नीचे ब्रैकेट्स में लिखी है से प्रेरित होकर मैंने अपनी रचना रची है..
आर.बी. की मूल रचना नीचे है आप देख सकते हैं ► ► ►
((hum dono jo harf hain....
hum ek roz mile....
ek lafz bana...
aur humne ek maane…
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Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 5, 2010 at 10:00pm —
15 Comments
आज...
मैं बहुत खुश हूँ...
पूरी दुनिया 'कल' थी...
पर 'मैं' आज हूँ..
क्योंकि आ ज मिला है मुझे...
एक नया खिलौना...
जिसे सब कह रहे थे 'तिरंगा'...
कल था ये सबके हाथों में...
चाहता था मैं भी...
इसे छूना...
लहराना...
फेहराना...
पर किसी ने ना दिया इसे हाथ लगाना...
जैसे ना हो 'हक' मुझे इन सबका...
कल था तरसता सिर्फ 'एक' को...
आज पाया है पड़ा 'अनेक' को...
कल… Continue
Added by Julie on September 5, 2010 at 9:37pm —
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