For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बंदरों को तो फंसना ही है

मित्रों ,यह कविता बिहार में अक्टूबर -नवम्बर २०१० में होने वाले चुनाव के परिपेक्ष्य में लिखा गया है ॥लालटेन
तीर ,हाथ और कमल ...विभिन्न राजनितिक दलों के चुनाव चिन्ह है //

आ गया मदारी
बजा रहा है डुगडुगी
बंदरों में होने लगी है सुगबुगी
अनेकों हैं नुस्खे
बंदरों को रिझाने के
नज़र डालिएगा इन पर जरा हंस के ॥

पिछली गल्तियाँ अब नहीं करूगाँ
सवर्णों को भी टिकट दूगाँ॥
अपने शाले ने भोंका था भाला
लगाने चला था मेरे ही घर में ताला
इसीलिए घर से उसको निकाला
रोशनी फैलाना ही बचा है मेरा काम
चाहे जाए तो जाए मेरा प्राण
आप ही हैं मेरे कृपा निधान
बातें सुन लो मेरी खोलकर अपने कान ॥


दौड़ पड़े है बन्दर
मदारी ने ऐसा मारा मंतर
विकास का टायर
भाषणों से होने लगा पंचर
लगता है जाति की हवा चलेगी
ईसीसे सबकी दाल गलेगी॥

दिल्ली का फंडा
बिहार में बना है गुल्ली -डंडा
यहाँ "हाथ " का साथ नहीं
"लालटेन " बिन रात नहीं
बिना" तीर" के घात नहीं
"कमल" बिना कोई बात नहीं ॥

Views: 330

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on September 9, 2010 at 4:15pm
Bahut badi hakikat h yah. Aapne bahut sahi likha.
Comment by baban pandey on September 9, 2010 at 12:28pm
मित्रो ..बिहार के ..मदारियों से बच के रहना रे भी
गणेश भाई ....आपनेबिहारी मदारी का विस्तृत वर्णन किया
जय को

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 9, 2010 at 10:03am
बढ़िया बब्बन भईया, ये मदारी बड़े ही करतब बाज है, थोड़ा बच के रहने की जरूरत है, ये बंदरो को फसा कर उल्लू , बोक्का(बकरा) और गदहा भी बनाने मे कुशल होते है तथा अपने रंग बदलने मे गिरगिट को बहुत पहले मात कर चुके है |
बच के रहना रे बाबा बच के रहना रे ................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service