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ये जानता हूँ मैं

ये जानता हूँ मैं कि जिंदगी में जिंदगी मिलती नहीं है कभी,
पर फिर भी जिंदगी भर जिंदगी को तलाश रहा हूँ मैं ,

ये जनता हूँ मैं कि वो आसंमा से उतरी परी है,
फिर भी आदमी हो कर उसे छु लेना चाहता हूँ मैं,

ये जानता हूँ मैं कि इजहारे मुहब्बत एक तूफ़ान है ,
पर फिर भी इस तूफ़ान से गुजर जाना चाहता हूँ मैं,


ये जनता हूँ मैं इस जहां से तनहा ही जाऊंगा मैं,
पर फिर भी हर लम्हा उसे याद करता हूँ मैं,

ये जानता हूँ मैं कि उस से लब्ज दो लब्ज भी कह नहीं पाता हूँ मैं,
पर फिर भी तन्हाई में उस से मिलना चाहता हूँ मैं,

ये जानता हूँ मैं कि वो बहुत नाजुक कलि है,
पर फिर भी उसे अपनी दास्तान सुनाना चाहता हूँ मैं,

पहली पर लिख रहा हूँ , आप का आशीर्वाद मिले और सलाह भी....

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 12, 2010 at 10:54am
ये जनता हूँ मैं इस जहां से तनहा ही जाऊंगा मैं,
पर फिर भी हर लम्हा उसे याद करता हूँ मैं,

बहुत खूब बहुत बड़ी बात आप ने कह दी, अच्छी रचना, आप और भी अच्छा लिख सकते है,लगे रहे ,
Comment by Admin on September 12, 2010 at 10:52am
आदरणीय विनय शर्मा जी, सर्वप्रथम मैं ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपकी पहली रचना का ह्रदय से स्वागत करता हूँ , आपका पहला प्रयास सराहनीय है, ख्यालात अच्छे है, उम्मीद है कि आगे आपकी और भी रचनाएँ और अन्य रचनाओं पर आपकी टिप्पणिया पढ़ने को मिलती रहेगी |

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 11, 2010 at 6:28pm
अच्छा प्रयास है विनय शर्मा जी, जिस सकारात्मक जज़्बे का इज़हार अपने अपनी कविता में किया है वो काबिल-ए-तारीफ है जिसके लिए आप मेरी बधाई के पात्र हैं !

कृपया ध्यान दे...

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