(१)
बाँटना तो चाहते हैं हम तेरे रंजो अलम पर,
वक़्त ने पाँव में जंजीर जो पहनाई है |
सो जाते हैं जब--सब--तब हम उठ के देखते हैं,
बरसों से सिरहाने में तस्वीर जो छुपाई है ||
(२)
उसने पूछा भी नहीं और हमने बताया भी नहीं,
बस इसी जद्दोजेहद में कट गई है ज़िन्दगी |
मेरे मालिक ये कैसा इम्तिहान ले रहे हो तुम,
वो लौट के आये हैं अब---जब बट गई है ज़िन्दगी ||
(३)
जिसकी थी जरुरत हमें वो तो नहीं मिली,
किसको बताते क्या मिला…
Posted on July 15, 2011 at 9:00pm
Posted on March 13, 2011 at 8:13pm — 1 Comment
Posted on October 12, 2010 at 10:36am — 3 Comments
Posted on September 18, 2010 at 12:30pm — 2 Comments
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
प्रणाम ,
आप की रचना अनुमोदन हेतु प्राप्त हुई है, आप को सूचित करना है कि आप कि उस रचना को १५ अगस्त के शुभअवसर पर अनुमोदन कर प्रकाशित कर दिया जायेगा,
आपका
एडमिन
OBO