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कहाँ छुपा रखा था इस शाहकार को?
बौलिंग में ’दूसरा’ .. आपका ये ’मिसरा’ .. वाह-वाह.. .!
बनारस में हफ़्ते भर रहा पर अफ़सोस समय नहीं निकाल पाया. खैर, गर्दन झुका-झुका कर देखा और देख लिया .. :-)))))
हा हा हा
नहीं मानेंगे
जय हो ! (आदरणीय सर्वश्री) वीनस जी बागी जी और राकेश जी मन इस नेह से तर गया | ओ बी ओ साथिओं का यह सौहार्द अतुलनीय अमूल्य और अक्षुण है | आप सभी को सादर सप्रेम दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !!
ये परायेपन वाली बात है
है कि नहीं :(
अपने घर में अपने परिवार के सदस्यों से कोई इस तरह बात करता है क्या ?
खास कर अपने छोटों से ?
ओ बी ओ परिवार है
सोच रहा हूँ किसी दिन बनारस पहुँच जाऊं....
बड़े भाई से मिलाने की अभिलाषा को पूरा कर लूं
आदरणीय श्री वीनस जी, अब क्या कहा जाय आदरणीय श्री अरुण जी को, वो सुधरने वाले नहीं, एक काम करते है ...क्यों ना आप ही आदरणीय श्री को इग्नोर कर के चले/पढ़े/स्वीकार करें |
कमेन्ट पढ़ने वालों से निवेदन है कि अरुण जी के पिछले कमेन्ट पर से आदरणीय श्री को हटा कर पढ़े
अरुण जी को कह कह कर थक गया, मुझे जान गया हूँ कि अरुण जी तो मानने से रहे,,
तो अब इस निवेदन के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा है
आदरणीय श्री वीनस जी कुछ वर्ष पहले लिखी ग़ज़ल है शुरूआती दिनों में इसे काफी सराहा गया मुझे भी इसके कुछ शेर बेहद पसंद है आभार आपका , इसे अभी फेस बुक पे भी शेयर किया है | शुरू के दो मिसरे परिचय के रूप में मंचों पर इस्तेमाल करता रहा हूँ :-)) !!
आपकी इन बूढ़ी आँखों का सहारा बन सकूं ,
इसलिए बाबा शहर जाने की मोहलत चाहता हूँ.
लाजवाब
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