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आज...
मैं बहुत खुश हूँ...
पूरी दुनिया 'कल' थी...
पर 'मैं' आज हूँ..
क्योंकि आ ज मिला है मुझे...
एक नया खिलौना...
जिसे सब कह रहे थे 'तिरंगा'...

कल था ये सबके हाथों में...
चाहता था मैं भी...
इसे छूना...
लहराना...
फेहराना...
पर किसी ने ना दिया इसे हाथ लगाना...
जैसे ना हो 'हक' मुझे इन सबका...

कल था तरसता सिर्फ 'एक' को...
आज पाया है पड़ा 'अनेक' को...
कल जिन धूल भरे हाथों से ये गंदे होते थे...
आज उन्ही हाथों से साफ़ किया है...
इन पर लगी धूल को...

नहीं जानता क्या कीमत है इनकी...
पर है अनमोल बहुत मेरे लिए...
क्योंकि इन्हें देख ही मेरे रूठे दोस्त...
फिर बोलेंगे मुझसे...
फिर खिलाएंगे साथ वो खेल नये...
फिर लौटेगी सबके चेहरों की खोई हँसी...

और तब बोलूँगा...
सबके संग...
जो सबने कल बोल रहे थे...
शायद... "जय ~ हिंद"...!!

::::जूली मुलानी::::
::::Julie Mulani::::

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Comment

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Comment by Julie on September 6, 2010 at 4:05pm
जगदीश जी सबसे पहले तो मेरी रचना को आपने पढ़ा उसके लिए तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ, जितनी गहराई से आपने इसे पढ़ा शायद उतनी गहराई से तो हमने इसे लिखा भी ना था, ये सन्देश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे बस यही चाहती हूँ, शुक्रिया...!! :-)
Comment by Julie on September 6, 2010 at 4:03pm
बागी जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका मेरी रचना को इतना पसंद करने का, बस उसकी तरफ समाज का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की जहाँ अक्सर लोगों का ध्यान नहीं जाता... शुक्रिया...!! :-)
Comment by jagdishtapish on September 6, 2010 at 11:30am
wah julie ji
rasrtriya parivesh mein कल था ये सबके हाथों में...
चाहता था मैं भी...
इसे छूना...
लहराना...
फेहराना...
पर किसी ने ना दिया इसे हाथ लगाना...
जैसे ना हो 'हक' मुझे इन सबका---ek bacche ke antarman ki peeda --sach ke ekdam karib कल था तरसता सिर्फ 'एक' को...
आज पाया है पड़ा 'अनेक' को...
कल जिन धूल भरे हाथों से ये गंदे होते थे...
आज उन्ही हाथों से साफ़ किया है...
इन पर लगी धूल को...is visangati par pahle bhi prabudh varg ne --desh ke jimmevaron ka dhyan aakarshit karaya hai --jo nihayat jaruri bhi hai --aapki peeda ek bachche ki bhvna ke madhyam se ---tirange ke samman mein vieshesh roop se vicharniya to hai hi --sath hi is visangati ke aawasyak --nirakaran ke liye khula sandesh bhi hai --ham naman karte hain aapki bhavna ko --sath hi hradya se dhanyvad bhi --behatrin abhivyakti ke liye --saadar

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 6, 2010 at 8:49am
बहुत खूब जुली जी, एक गरीब बालक के मनोदशा का बहुत ही खूबसूरती से आपने दिखाया है अपनी कविता में, आपकी नजर वहा पहुचती है जहाँ पर समाज का अंतिम व्यक्ति होता है, बहुत ही अच्छी कविता है, बधाई इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर, सलाम आप की दृष्टि को ,

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