For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,995)

खाक़ (दीपक शर्मा कुल्लुवी)



खाक़
मेरी ज़िन्दगी की तरह 
मेरे बनाये चित्र भी 
चीथड़े चीथड़े हो गये
वोह तो कुछ न कह पाए 
बस खामोश हो गए 
कसक तो दिल में रह ही गई 
अंतरात्मा मेरी मायूस हो गयी
दर्द …
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 26, 2011 at 12:05pm — 1 Comment

खामोशियाँ...

खामोशियाँ..

चुभते टीसते  नासूर दे जाती हैं..
अनचाहे ही चुभन यादों में उग आती है ..…
Continue

Added by Lata R.Ojha on September 25, 2011 at 11:42pm — 2 Comments

कौंधते सवाल

ये जंग की घड़ी नहीं,

न देश ये गुलाम है ..

फिर क्यों हम आम जनता ,

इस देश में फटेहाल है?



हम उलझे है अपनी चिंताओ में ,

देश की हम सोचे भी क्या ??

हमे मार दिया महंगाई ने ,

भ्रष्टो का कर पायेंगे क्या??



बीता वर्ष घोटालो का था,

नए वर्ष में अब होगा क्या ?

आज हर और जब घोटाला है,

तो फिर कैसी ये व्यवस्था है..

कैसा ये जनतंत्र है,

जिसमे पीस रही जनता है??





हम सबने सुने है नेताओं के कुचर्चे,

पर किसी ने उनका अंजाम सूना??

जब…

Continue

Added by सन्नी on September 25, 2011 at 10:51pm — 3 Comments

एक हुए दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'

एक हुए दोहा यमक:

-- संजीव 'सलिल'

*

हरि से हरि-मुख पा हुए, हरि अतिशय नाराज.

बनना था हरि, हरि बने, बना-बिगाड़ा काज?

हरि = विष्णु, वानर, मनुष्य (नारद), देवरूप, वानर

*

नर, सिंह, पुर पाये नहीं, पर नरसिंहपुर नाम.

अब हर नर कर रहा है, नित सियार सा काम..

*

बैठ डाल पर काटता, व्यर्थ रहा तू डाल.

मत उनको मत डाल तू, जिन्हें रहा मत डाल..

*

करने कन्यादान जो, चाह रहे वरदान.

करें नहीं वर-दान तो, मत कर कन्यादान..

*

खान-पान कर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 25, 2011 at 9:00am — 1 Comment

साँई स्तवन

# साँई स्तवन #



जनम सफल कर ले, भवसागर तर ले,

छुट जायेंगे सारे फंदे, साँई चरण धर ले....

१. कौन सहारा देगा तुझको सोच ज़रा,

तुझे कहाँ ले जाएगा अभिमान तेरा,

अंत समय क्या तेरे साथ चलेगा जग ?…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on September 25, 2011 at 8:17am — No Comments

व्यंग्य - महंगाई ‘डायन’ है कि सरकार

महंगाई पर हम बेकार की तोहमत लगाते रहते हैं। अभी जब बाजार में सामग्रियां सातवें आसमान में महंगाई की मार के कारण उछलने लगी, उसके बाद महंगाई एक बार फिर हमें ‘डायन’ लगने लगी। इस बार तंग आकर महंगाई ने भी अपनी भृकुटी तान दी और कहा कि उसने कौन सी गलती कर दी, जिसके बाद उसे ऐसी जलालत बार-बार झेलनी पड़ती है। महंगाई को बार-बार की बेइज्जती बर्दास्त नहीं हो रही है। उसने सोचा, अब वह कहीं और जाकर अपनी बसेरा तय करेगी, मगर सरकार मानें, तब ना।

सरकार ने जैसे दंभ भर लिया हो कि जो भी हो जाए, महंगाई को साथ रखना… Continue

Added by rajkumar sahu on September 25, 2011 at 1:13am — 1 Comment

आदरणीय योगी जी व आदरणीय सौरभ जी की प्रेरणा से जनित पाँच कह-मुकरियां :



(1)

बड़े प्यार से जो दुलरावै|

हमको अपने गले लगावै|

प्रीति-रीति में हम हों बंदी|

क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!

_________________________



(2)

अलंकार से सज्जित सोहै|

रस की वृष्टि सदा मन मोहै  |

मिल जाता है परमानन्द |

क्यों सखि साजन? नहिं सखि छंद |

__________________________

(3)

परम संतुलित जिसका भार|

गुरु लघु रूप बना आधार!  

जन-जन को है जिसने मोहा|

क्यों सखि साजन? नहिं सखि…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on September 24, 2011 at 11:00pm — 23 Comments

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - छः  ---------------------

बम सदृश धमाका हुआ  ......................मुझे कानों पर पर विश्वास नहीं हो रहा था पर यथार्थ हर हालत में यथार्थ ही होता है. मैं शालू का प्रस्ताव सुनकर अवाक था .

"शालू ,  जानती हो तुम क्या कह रही हो ?"

"अच्छी तरह. आपने ही तो कहा था कि बार-बार कहा जाने वाला झूठ भी सच हो जाता है . आज सब लोग मुझे आपकी प्रेमिका और महबूबा कह रहे हैं . मेरे नाम के साथ आपका नाम जोड़…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 24, 2011 at 10:20pm — No Comments

सिहर जाता हूँ, ऐसा बोलता है - ग़ज़ल : वीनस केशरी

एक नई ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है, मुलाहिजा फरमाए

 



सिहर जाता हूँ, ऐसा बोलता है
वो बस मीठा ही मीठा बोलता है



समय के सुर में बोलेगा वो इक दिन 

अभी तो उसका लहज़ा बोलता है



ये उसकी तिश्नगी * है या तिज़ारत…
Continue

Added by वीनस केसरी on September 24, 2011 at 2:00am — 24 Comments

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

 लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - पांच ---------------------

उसे देखते ही शालू तीर की तरह निकल गयी

सुबह संजय से मालूम हुआ कि रात में शालू को बेहरहमी से पीटा गया है . समाज की संकीर्णता देखकर मेरा मन क्षुब्ध हो उठा .किसी लड़की का किसी लड़के से मिलने का एक ही मतलब निकालने वाला यह समाज सजग एवं सचेत रहने के नाम पर भयंकर लापरवाही का परिचय देता रहता है . शालू पर , जो अभी यौवन के पड़ाव से कुछ दूर ही थी , उसकी मां ने सुरक्षा के ख्याल…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 23, 2011 at 9:06pm — 2 Comments

चाँद छुप जाओ बादलों में अभी

    चाँद छुप जाओ बादलों में अभी, 

    कहीं ज़माने की तुम्हें नज़र न लगे।

 …

Continue

Added by Kailash C Sharma on September 23, 2011 at 7:00pm — 1 Comment

३ कह मुकरियाँ

(१)

जब आए - तो रस बरसाए

न आए - तो बड़ा सताए

कोई न ऐसा मनभावन 

ऐ सखी साजन?? न सखी सावन ।


(२)

मोरे पास - तो करे मगन

दूजे के संग - देत जलन 

न जग मे कोई वाके जैसा 

ऐ सखी साजन?? न सखी पैसा |

 

(३)

हमरे जीवन कै आधार

वो ही तो सगरा संसार

बड़ा सोच के रचिन रचैया 

ऐ सखी साजन?? न सखी मैया

Added by Vikram Srivastava on September 23, 2011 at 3:00pm — 13 Comments

सियार का अनशन-भाग 1

प्यारे बच्चों, सुनो कहानी................



एक बार की बात है. किसी जंगल का राजा एक शेर था. 

उसकी हिंसा और आतंक से सभी जानवर परेशान थे. कुछ उसका नाम सुनकर डर से कांपते थे और कुछ गुस्से से लाल हो जाते थे. सभी जीवों ने शेर का विरोध करने का मन बनाया. लेकिन आगे कौन बढ़े? जो भी पहल करता शेर उसे मारकर खा…
Continue

Added by Vikram Pratap on September 23, 2011 at 2:25pm — 1 Comment

नहीं आऊंगी

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - चार ---------------------

 

मैं सोच नहीं पा रहा था की इस नयी परिस्थिति का किस तरह सामना करूँ . शालू जाने लगी तो मैनें उसे पकड़ कर पुनः बिठा दिया .

" शालू ,मुझे गलत मत समझो. मेरे दिल में तुम्हारे लिए अब भी वहीँ स्नेह है, पर मां की आज्ञा तुम्हें माननी चाहिए."

शालू का मेरे यहाँ आना-जाना अब काफी कम हो गया था. वह मेरे यहाँ तब ही आती थी जब उसकी मां और मधु या तो घर से बाहर हों या सो गयी…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 22, 2011 at 10:56pm — 2 Comments

कविता : सामान्य वर्ग के सामान्य बाप का सामान्य बेटा

मैं हूँ सामान्य वर्ग का एक सामान्य अधेड़

न, न, अभी उम्र पचास की नहीं हुई

केवल पैंतीस की ही है

मगर अधेड़ जैसा लगने लगा हूँ



मेरी गलती यही है

कि मैं विलक्षण प्रतिभा का स्वामी नहीं हूँ

न ही किसी पुराने जमींदार की औलाद हूँ

एक सामान्य से किसान का बेटा हूँ मैं



बचपन में न मेरे बापू ने मेरी पढ़ाई पर ध्यान दिया

न मैंने

नौंवी कक्षा में मुझे समझ में आया

कि इस दुनिया में मेरे लिए कहीं आशा बाकी है

तो वह पढ़ाई में ही है

तब मैंने पढ़ना…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 22, 2011 at 3:38pm — 17 Comments

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

 

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - तीन  ---------------------

वह बड़ी हो चुकी थी. सदैव की भाँती एक दिन वह आकर मेरे बगल में बैठ गयी . मैं कुछ परेशान था .

"मुझसे नाराज है अंकल?" उसने पूछा .

"नहीं तो . सर में हल्का दर्द है ."  मैंने यूं ही उसे टालने के ख्याल से…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 21, 2011 at 11:26pm — 3 Comments

माँ

तेरी प्यारी सी सूरत 

ममता की मूरत 

तेरी आँखों से झरती करुणा

स्नेह का झरना

माँ! तेरी आँखों से झरती वो करुणा,

कब, मेरे अन्दर रिस गई,

मैं नहीं जान पाई?…



Continue

Added by mohinichordia on September 21, 2011 at 8:30pm — 2 Comments


प्रधान संपादक
5 कह मुकरियाँ

(१)

मेरा दिल वो मेरी धड़कन,

उसपे कुरबां मेरा जीवन !

मेरी दौलत मेरी चाहत

ऐ सखी साजन ? न सखी भारत !

---------------------------------------

(२)

अंग अंग में मस्ती भर दे

आलिम को दीवाना कर दे

महका देता है वो तन मन 

ऐ सखी साजन ? न सखी यौवन  !

---------------------------------------

(३)

मिले न गर, दुनिया रुक जाए

मिले तो जियरा खूब जलाए ! 

हो कैसा भी - है अनमोल,

ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on September 21, 2011 at 4:30pm — 59 Comments

मेरी भी समस्या का कोई तो समाधान हो

प्रभु!  नभ-जल-थल में तुम्हारा गुणगान हो,

तुमसे छुपाऊँ क्यों, तुम सर्वव्यापिमान हो! 

कैसे मैं कमाई करूँ, मुझे भी तो ज्ञान हो,

मेरी भी समस्या का कोई तो समाधान हो!

 

नियत, हैसियत प्रभु मेरी तुम जानो वैसे,

माल-असबाब यहाँ खा रहे है कैसे कैसे!

चौखट में आया तेरी, वादा चढ़ावे का ले…

Continue

Added by Subhash Trehan on September 21, 2011 at 1:30pm — 9 Comments

जीने के बहाने आ गए

सामने आँखों के सारे दिन सुहाने आ गए 

याद हमको आज वह गुज़रे ज़माने आ गए 



आज क्यूँ उन को हमारी याद आयी क्या हुआ 

जो हमें ठुकरा चुके थे हक़ जताने आ गए 



दिल के कुछ अरमान मुश्किल से गए थे दिल से दूर 

ज़िन्दगी में फिर से वह हलचल मचाने आ गए 



ग़ैर से शिकवा नहीं अपनों का बस यह हाल है 

चैन से देखा हमें फ़ौरन सताने आ गए 



उम्र भर शामो सहर मुझ से रहे जो बेख़बर 

बाद मेरे क़ब्र पे आंसू बहाने आ गए 



हैं "सिया' के…

Continue

Added by siyasachdev on September 21, 2011 at 2:19am — 7 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
11 hours ago
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Saturday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Friday
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
Thursday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
Thursday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Oct 30

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Oct 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Oct 26

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service