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खामोशियाँ..

चुभते टीसते  नासूर दे जाती हैं..
अनचाहे ही चुभन यादों में उग आती है ..
कुरेदती रहती हैं हर आते जाते पलों को ..
और हर तरफ खरोंच छोड़ जाती हैं..
खामोशियाँ..
चुपचाप कितना बोलती हैं..
हर बात को उचित अनुचित में तोलती हैं..
हो जाती हैं फिर भी गलत खुद ही ..और..
चुप की एक नयी सी चादर ओढ़ लेती हैं..
खामोशियाँ ...
बहुत आकर्षित करती हैं ..
अपने प्रभाव के टूटने से डरती हैं..
कुछ पलों की हो तो ठीक ही हैं वरना..
इंसान को अक्सर तोड़ दिया करती हैं..
खामोशियाँ ...

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Comment by Lata R.Ojha on September 26, 2011 at 5:26pm

shukria Ashish ji ..

Comment by आशीष यादव on September 26, 2011 at 3:31pm
कुछ पलों की हो तो ठीक ही हैं वरना..
इंसान को अक्सर तोड़ दिया करती हैं..
खामोशियाँ ...
बिलकुल सही बात है| एक सुन्दर कविता की रचना की है आपने| बहुत बहुत बधाई|

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