For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(१)

मेरा दिल वो मेरी धड़कन,
उसपे कुरबां मेरा जीवन !

मेरी दौलत मेरी चाहत

ऐ सखी साजन ? न सखी भारत !

---------------------------------------

(२)

अंग अंग में मस्ती भर दे

आलिम को दीवाना कर दे

महका देता है वो तन मन 

ऐ सखी साजन ? न सखी यौवन  !

---------------------------------------

(३)

मिले न गर, दुनिया रुक जाए

मिले तो जियरा खूब जलाए ! 

हो कैसा भी - है अनमोल,

ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल !

-------------------------------------------

(४)
कर गुज़रे जो दिल में ठाने,
नर नारी उसके दीवाने !
वो इतिहास का सुंदर पन्ना 
ऐ सखी साजन ? न सखी अन्ना !
----------------------------------------

 (५)

हरिक बेचैनी का सबब है,
उसे किसी की चिंता कब है ?
दुनिया भर के दर्द है देता
ऐ सखी साजन ? न सखी नेता !

---------------------------------------

 

Views: 1226

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on June 16, 2015 at 11:54pm
बहुत ही सुंदर है ये शब्दों की अठखेलियाँ , देश दुनिया भी याद रखे है कैसे कैसे ये कह - मुकरियाँ ..... बेहतरीन है ये रचनाएँ । नमन सर जी
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 6, 2012 at 9:56pm

कर गुज़रे जो दिल में ठाने,
नर नारी उसके दीवाने ! 
वो इतिहास का सुंदर पन्ना  
ऐ सखी साजन ? न सखी अन्ना !

आदरणीय योगराज जी ...बहुत अच्छी मुकरियाँ गजब पहेली ...अन्ना जी भी मन में छाये..ऐसे लोग अमर हों जाएँ   ..सुन्दर रचना 

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 


Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 3, 2012 at 8:02pm

आदरणीय योगराज सर सादर नमन , धीरे धीरे विलुप्त हुई जा रही विधा को एक नया सृजन देकर आपने इस विधा को एक शशक्त संबल प्रदान किया इसके लिए आपको बधाई और ह्रदय से आभार


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 3, 2012 at 10:57am

भाई अरुण श्रीवास्तव जी, आप जैसे प्रतिभाबान रचना के लिए कोई भी विष मुश्किल नहीं है, पुन: प्रयास करें. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 3, 2012 at 10:56am

आदरणीय अविनाश बागडे साहिब, आपकी सद्शयता और गुण ग्राहकता को कोटिश: नमन.

Comment by Arun Sri on April 3, 2012 at 10:26am

देखने में इतनी साधारण और जब लिखने का प्रयास किया तो ...................... बाप रे बाप ! इतना मुश्किल !!!!!

आप गुरुजनों के  बूते  की ही बात है ये !
बाकी रचना पर .................................. NO COMMENT.

Comment by AVINASH S BAGDE on April 3, 2012 at 10:13am

(१)

मेरा दिल वो मेरी धड़कन, 
उसपे कुरबां मेरा जीवन !

मेरी दौलत मेरी चाहत

ऐ सखी साजन ? न सखी भारत !wah! kya tewar hai Desh-bhakti ke...wah!

(२)

अंग अंग में मस्ती भर दे

आलिम को दीवाना कर दे

महका देता है वो तन मन 

ऐ सखी साजन ? न सखी यौवन  !....bahut hi umda.

---------------------------------------

(३)

 मिले न गर, दुनिया रुक जाए

मिले तो जियरा खूब जलाए ! 

हो कैसा भी - है अनमोल,

ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल !.....samyik bol...

(४) 
कर गुज़रे जो दिल में ठाने,
नर नारी उसके दीवाने ! 
वो इतिहास का सुंदर पन्ना  
ऐ सखी साजन ? न सखी अन्ना !.....Anna:jiske janter-manter me siyasatdan fanse hai...wah! Yograj ji.

 (५)

हर इक बेचैनी का सबब है,
उसे किसी की चिंता कब है ? 
दुनिया भर के दर्द है देता 
ऐ सखी साजन ? न सखी नेता !......lajwab....

"kah-mukariya" aur "chhann-pakaiyya "kahane me aapka koi sani nahi....Yograj ji sadhuwad.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 3, 2012 at 9:45am

आदरणीय मनोज कुमार मयंक साहिब, दरअसल जब तकीबन एक साल पहले पहली दफा मैंने इस विधा पर कलम आजमाई की थी. तब इसके शिल्प के बारे में मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं था. लेकिन बाद में इस पर ओबीओ में बहुत बर खुल कर चर्चा हुई. मेरी नाचीज़ राय में यदि "कह-मुकरी" को चौपाई की तरह १६-१६-१६-१६ (अंत में गुरु) की बंदिश में कहा जाए तो इसमें गज़ब की गेयता पैदा हो सकती है. मेरे प्रयास को सराहने के  लिए दिल से आभार मान्यवर.   


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 3, 2012 at 9:39am

आदरणीय कुशवाहा जी, मैं कोई श्रेय नहीं लेना चाहता हुज़ूर इसका सारा श्रेय  केवल और केवल इस मंच को ही जाता है. मेरे इस अदना प्रयास के बाद बहुत से लोगों ने बहुत ही सुंदर कह-मुकरियाँ कही हैं और मेरी भी दिली तमन्ना है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस लोकविधा पर कलम आजमाई करें. आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभार. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 3, 2012 at 9:30am

भाई वीनस केसरी जी

आपका कहना सत्य है, यह विधा देखने में आसान बेशक लगती है, मगर कह कर मुकर जाना भी आसान नहीं होता. बहरहाल आप जैसे प्रतिभा के धनी के लिए तो यह मुश्किल नहीं होना चाहिए. बल्कि आप जैसा इल्म-ए-अरूज़ का जानकार यदि ऐसी विधा पर कलम आजमाई करे तो बहुत ही उच्चस्तरीय रचनाएँ का सृजन होगा. कह-मुकरियाँ पसंद करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया.    

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
17 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service