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ये जंग की घड़ी नहीं,
न देश ये गुलाम है ..
फिर क्यों हम आम जनता ,
इस देश में फटेहाल है?

हम उलझे है अपनी चिंताओ में ,
देश की हम सोचे भी क्या ??
हमे मार दिया महंगाई ने ,
भ्रष्टो का कर पायेंगे क्या??

बीता वर्ष घोटालो का था,
नए वर्ष में अब होगा क्या ?
आज हर और जब घोटाला है,
तो फिर कैसी ये व्यवस्था है..
कैसा ये जनतंत्र है,
जिसमे पीस रही जनता है??


हम सबने सुने है नेताओं के कुचर्चे,
पर किसी ने उनका अंजाम सूना??
जब होती है फर्क हम में,
फिर कैसा ये समानाधिकार है??


आज देश के वफादार ज़िंदा जलाए जा रहे,
लाचार किसान आत्महत्या है कर रहे,
फिर कैसे करे अभिमान हम,
की गणतंत्र में जी रहे??


कौंधता हर पल मेरे,
मन में कई सवाल है..
जब है कोई सुदृढ़ व्यव्स्था नहीं,
फिर क्यों बनी सरकार है??

हमारे इस सिस्टम की कुछ बातें बड़ी विशेस है,
जो बनना हो कर्मचारी आपको,
योग्यता आपकी तय है,
जो बनते है नेता हमारे,
क्यों उनका कुछ तय नहीं??

ये कैसी हमारी विडम्बना है,
जो पिटे कोई हम विडियो बनाते,
न्यूज़ बनाकर उसे दिखाते,
पर क्यों शोषित को नहीं बचाते???

होता आज जब चीर हरण है,
क्यों आता कोई कृष्ण नहीं?
दुह्शाशन आज भी कम है ,
पर हम सारे बने ध्रितराष्ट्र है क्यों???

वीरो की है ये धरती,
फिर क्यों आज चुप चाप खड़े है,
उठे जो मिलकर लड़ने को,
गद्दारों की औकात है क्या??

ये जंग की घड़ी नहीं,
न देश ये गुलाम है,
फिर क्यों इस देश की जनता,
आज फटेहाल है ??

 

For my poems, please visit:- sunnychaudhary.blogspot.com

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 28, 2011 at 2:20am

आभार मित्र .. . परस्पर सहयोग और सहकार से सब सधता जायेगा.

आपका होना आश्वस्त करता है.   धन्यवाद

Comment by सन्नी on September 28, 2011 at 1:29am

आपका बहुत बहुत धन्यवाद सौरभजी मेरी कविता को पढने के लिए साथ ही अपना सुझाव देने के लिए|

सन्नी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 28, 2011 at 12:04am

 

मेहनत करते रहें, यथोचित संतुलन बन जायेगा.आपके प्रयास और प्रस्तुत प्रविष्टि हेतु पुनः धन्यवाद.

 

कृपया ध्यान दे...

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