Added by Dr Nutan on February 8, 2011 at 6:00am — 15 Comments
Added by prabhat kumar roy on February 7, 2011 at 6:15pm — 3 Comments
कविता :- हर ले वीणा वादिनी !
देश को लूट कर
हक़ हकूक छीन कर
जो बने हैं बड़े
और तन कर खड़े
बेशर्म बेहया
उन दरख्तों के पत्ते और सत्ते ओ माँ !
उनकी धूर्त और मक्कार शाखाएं भी
तू हरले सभी !
तू हरले…
Added by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 4:00pm — 3 Comments
"परिवर्तन" की ८१ वीं गोष्ठी
काशी की सक्रीय संस्था "परिवर्तन" की ८१ वीं काव्य गोष्ठी दिनांक ०६ फरवरी २०११ को जनाब अफ़सोस गाजीपुरी के निवास पर हुई | इसमें बेखुद गाजीपुरी की अध्यक्षता में शाद शिकोहबादी , रोशन मुगलसरावी , अभिनव अरुण , मजहर शकुराबादी , शमीम गाजीपुरी , डॉ.मंजरी पाण्डेय ,आदि कवियों -शायरों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया |संचालन डॉ. सुमन राव ने किया |
करीब पचहत्तर वर्षीय जनाब अफ़सोस गाजीपुरी इस संस्था को पिछले…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 3:43pm — 2 Comments
Added by Bhasker Agrawal on February 7, 2011 at 3:09pm — 3 Comments
Added by अमि तेष on February 7, 2011 at 11:00am — 2 Comments
ये कैसा महिला का महिला के प्रति प्यार ?
एक चीख मेरे कानो में गूंजती है ..बात छह महीने पहले की है ..जबकि एक चीख की आवाज पर मैं अपने चेम्बर से बाहर निकली तो पाया - दर्द में पीड़ित महिला को, जो आठ माह के गर्भ से थी काफी रक्तस्त्राव की वजह से पीली पड़ी हुवी थी | मैं स्त्रीरोग…
Added by Dr Nutan on February 6, 2011 at 11:30pm — 6 Comments
ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है|
इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातः 08 बजे एक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा, आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि…
ContinueAdded by वीनस केसरी on February 6, 2011 at 5:00pm — 7 Comments
'पापा'
आपका जाना
दे गया
इक रिक्तता
जीवन में,
असहनीय पीड़ा
मेरे मन में..
'माँ'
आज भी
बातें करती है
लोगों से,
लेकिन उसकी
बातों में
होता है
इक 'खालीपन'
आज भी
उसकी निगाहें
देखती हैं
चहुँ ओर
'पर'
उसकी आँखों में हैं
इक 'सूनापन'...
माँ के, दीदी के
छोटू के, भैया के ..
सबके मन में
आपकी याद बसी है
'वो'…
ContinueAdded by Anita Maurya on February 6, 2011 at 4:18pm — 5 Comments
तभी तो कारवां ये बदगुमां है
निगाहे शौक से देखे अगर वो
ज़हां में आशियां ही आशियां है
उठाओ हाथ में खंज़र उठाओ
मेरी आँखों के आगे इक मकां है
छुटा है कुछ अभी आलिंगनों से
न जाने कौन अपने दर्मियां है
वहीँ होगी दफ़न अपनी कहानी
हर इक तारीख में अँधा कुआं है
दिखाओ सर्द मौसम को दिखाओ
जमीं की आग सा मेरा बयां है
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — 1 Comment
मिमिया रहे है लोग
ये कौन क़त्ल हो गया
बतिया रहे है लोग
पूनियों सा वक़्त को
कतिया रहे है लोग
संवेदना की मौत पर
खिसिया रहे है लोग
धोखे की टट्टियों को
पतिया रहे है लोग
कुर्सी पे बैठे बैठे
गठिया रहे है लोग
आदम नहीं गधे सा
लतिया रहे है लोग
मौके भुना रहे है
हथिया रहे है लोग
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — No Comments
ग़ज़ल : - मत पढ़ो सच का ककहरा
ज़ख्म हो जाएगा गहरा ,
मत पढ़ो सच का ककहरा |
गड़ रहा आँखों में परचम ,
मैं हूँ गूंगा और बहरा…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 7 Comments
ग़ज़ल : - वो धुआं था रोशनी को खा गया
छत से निकला आसमां पे छा गया ,
वो धुआं था रोशनी को खा गया |
सब ज़बानें मजहबी खँजर हुईं ,
क्या पुनः दंगों का मौसम आ गया |
टहनियों पर तितलियों…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 13 Comments
ग़ज़ल :- मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत
कैद बेशक है आज पिंजर में ,
हौसला है मगर अभी पर में |
मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत ,
जी रहे हम न जाने किस डर में |
हत परिंदों को बचाता है कौन…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:00am — 7 Comments
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on February 4, 2011 at 7:00pm — 2 Comments
एक
जब से हुई है बंद दुकानें उधार की
रंगत बिगड़ गई है फसले बहार की
सावन के रंग अब के फीके लगा किये
ये उम्र है नहीं अब सोलह सिंगार की
बौने है किस कदर ये आदम बड़े बड़े
हद देख ली है हम ने सब के मयार की
हो पायेगा उन्हें क्या जाने यहाँ अता
मन्नत जो मानते है उजड़े मजार की
बाजार से गुजर के वो शख्स रो पड़ा
कीमत बढ़ी हुई है मुश्ते गुबार की
किस्सा-ए-तोता-मैना यों याद था उन्हें
लिखी गयी कहानी उनसे शिकार…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 4, 2011 at 6:30pm — 3 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on February 4, 2011 at 6:00pm — 1 Comment
Added by आशीष यादव on February 4, 2011 at 7:47am — 12 Comments
बींदने की
बेपनाह कोशिश की है
उसे नियन्त्रित करने की
मशक्कत की है कि, जैसा तुम चाहो
मैं वैसा सोचूँ..
तुमने मुझे एक से बढ़ कर एक
रंगीन जाल दिखाया
बनाये अनोखे तिलिस्म और चाहा
कि जैसा तुम दिखाना चाहते हो
मैं बस वो ही देखूँ..
तुमने मेरी उंगलियों को
छेद छेद कर, पिरोने…
ContinueAdded by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 4, 2011 at 4:30am — 9 Comments
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