For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

                               ग़ज़ल

सौ  अफसानों  जैसा  मेरा,  भी बस इतना  अफ़साना  है |
जिस दुनिया ने दर्द दिया है, दिल  उसका  ही  दीवाना है ||

शायद वो  तस्वीर   हो ऐसी,  जो  इस  दिल  को  पहचाने,
इसी आश में जिआ हूँ अब तक, और यूँ ही जीते जाना है ||

कैसे बदलूँ आज तमद्दन ?   गर  वो  पागल  समझ  रहा,
कायम  से  कायम  तक  मेरा,  इससे  ही  आबो-दाना है ||

मेरे  अपने  मुझको  अपना,  समझें,  समझें,  न  समझें,
मुझे उन्हीं के दर पे जीना,  और  वहीं  पर  मर  जाना  है ||

ढूँढ रहा हूँ वफ़ा की शम्मा,  शहर-शहर  और  गली-गली,
मेरी  भी   तकदीर  वही  है -  जैसे   गमगीं   परवाना   है ||

                                                                 रचनाकार - अभय दीपराज

Views: 372

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on February 5, 2011 at 8:28am

बहुत ख़ूबसूरत अंदाजे बयाँ है और इस शेर के तो क्या कहने

मेरे  अपने  मुझको  अपना,  समझें,  समझें,  न  समझें,
मुझे उन्हीं के दर पे जीना,  और  वहीं  पर  मर  जाना  है ||

 

बस एक इल्तिजा है की अगर पोसिबल हो तो फॉण्ट साइज़ नोर्मल ही रखें|

Comment by आशीष यादव on February 5, 2011 at 8:09am
अभय सर, आप की एक खूब सूरत ग़ज़ल हमें पढने को मिली| बहुत बहुत बधाई| अभी मैंने देखा आपने बहुत सारी ग़ज़लें पोस्ट की है, ये मेरा दुर्भाग्य  था की अब तक मै नहीं देख सका| लेकिन आज मै सारी पढूंगा|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन, ' रिया' जी,अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया आपने, विद्वत जनों के सुझावों पर ध्यान दीजिएगा,…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन,  'रिया' जी, अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया, आपने ।लेकिन विद्वत जनों के सुझाव अमूल्य…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल का आपका प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा, बंधु! वैसे आदरणीय…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई "
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदाब, 'अमीर' साहब,  खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने ! और, हाँ, तीखा व्यंग भी, जो बहुत ज़रूरी…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"1212    1122    1212    22 /  112 कि मर गए कहीं अहसास…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय अजय भाई , आपका बहुत शुक्रिया "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीया रिचा जी आपका बहुत आभार "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"तरही ग़ज़ल  का आयोजन जो पहले  १०० - २००  पेज  तक पहुँच जाता था उसका  ८ -१०…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरर्नीय नीलेश भाई , आपने वो सब कुछ कह दिया जो मेरे मन में  थी , आपसे सहमत होते हुए एक…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service