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'पापा'

आपका जाना

दे गया

इक रिक्तता

जीवन में,

असहनीय पीड़ा

मेरे मन में..

 

'माँ'

आज भी

बातें करती है

लोगों से,

लेकिन उसकी

बातों में

होता है

इक 'खालीपन'

आज भी

उसकी निगाहें

देखती हैं

चहुँ ओर

'पर'

उसकी आँखों में हैं

इक 'सूनापन'...  

 

माँ के, दीदी के

छोटू के, भैया के ..

सबके मन में

आपकी याद बसी है

'वो' दरख़्त

की जिसके नीचे 

बरसों शाम

गुजारी थी आपने

उस दरख़्त के

हर पत्ते, हर बूटे में

आपकी याद बसी है,

 

वो सुबह सवेरे

'आपका'

बरामदे में बैठना

'और'

घंटो अखबार के

पन्ने पलटना,

दरवाज़े की

उस चौखट पर,

अखबार के

हर पन्ने पर

आपकी याद बसी है..

 

उस बिस्तर में

उस बर्तन में,

माँ की हर बात में

उसके हर जज्बात में,

आँगन के

हर कण कण में,

आपकी याद बसी है...

 

जीवन तो

चलता रहेगा

'लोगों का'

पूर्ववत, यथावत

पर 'माँ' के

जीवन का एकाकीपन

बन जायेगा

'अंतहीन सफ़र'

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Comment by Meena Pathak on January 13, 2014 at 1:11pm

जीवन तो

चलता रहेगा

'लोगों का'

पूर्ववत, यथावत

पर 'माँ' के

जीवन का एकाकीपन

बन जायेगा

'अंतहीन सफ़र'.............. एक बार फिर आँखे भीग गयीं अनीता 

Comment by vijay nikore on January 13, 2014 at 10:44am

आदरणीया अनीता जी,

 

आज ओ बी ओ पर पुरानी रचनाओं को देखते मेरी नज़र आपकी मर्मस्पर्शी रचना पर अटक गई।

इस अति मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद, और  ’उस’  दुख से जूझने के लिए हृदयतल से संवेंदनाएँ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Anita Maurya on February 9, 2011 at 11:26am
Vandana ji, Arun ji, Ganesh ji..पापा के जाने के बाद जो खालीपन मिला है न, उसे बताने के लिए ये शब्द काफी नहीं है, उस दर्द को व्यक्त ही नहीं किया जा सकता....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 8, 2011 at 2:28pm
अनीता जी , आप उस दर्द के दौर से गुजर कर यह कविता लिखी है , शायद इसी लिये एक एक शब्द दर्द का समंदर छुपाये है | हम सभी आपके इस दुःख मे दुखी है |
Comment by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 3:28pm
अनीता जी एक मर्मस्पर्शी रचना | इसे लिखने के लिए रचनाकार कितनी पीड़ा से गुज़रा होगा इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है | जीवन में एक रिक्तता की परिपूर्ण अभिव्यक्ति |  उत्कृष्ट रचना |

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