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बसंत तुम देर से क्यूं आये ? -- डॉ नूतन गैरोला


ये पतझड़ भी कैसा था
अबके बहुत लंबा
और शीत ?
घनी गहरी बरफ में
हर फूल दबे मुरझाये|
बसंत! तुमने क्यों कर न देखा
मिट्टी में घुटते वो नन्हें बीज
अंकुरित होने को जो थे व्याकुल |
पर खा गयी उन्हें
मौन हिमशिला सर्द|
और उस शीत का प्रेम देखो
पुनः पुनः वापस आया|
विडंबना तुम आये पर
देर से आये|
क्या खिल सकेगा
वो अंकुर
इन्तजारी में जो
दफ़न हुवा
भूमि के अंदर
एक अथाह भारी हिमखंड से
कुचला मृत प्रायः |
अबके बसंत में क्या पतझड खिलेगा,
खिलेगा तो खूब लड़ेगा कि
बसंत तुम देर से क्यों आये ?

डॉ नूतन गैरोला - ७ फरवरी २०११ २१:०३

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Comment by Dr Nutan on March 5, 2011 at 12:47am
dhnvyaad Ravi ji...  
Comment by रवि बेक on February 19, 2011 at 7:49pm
ऐसी क्या खता हो गई बंसत जो तुम इतनी देर से आ रहे हो...
Comment by रवि बेक on February 19, 2011 at 7:48pm
ऐसी क्या खता हो गई बंसत जो तुम इतनी देर से आ रहे हो...
Comment by Dr Nutan on February 10, 2011 at 1:42pm
धन्यवाद वीरेंदर जी... शुभकामनायें
Comment by Dr Nutan on February 10, 2011 at 1:41pm
अरुण जी !! धन्यवाद... हमें प्रोत्साहित किया ... आभार
Comment by Veerendra Jain on February 9, 2011 at 6:47pm
Waah waah Nutanji...behatarin rachna...bahut bahut badhai aapko...
Comment by Abhinav Arun on February 9, 2011 at 7:43am

बहुत ख्यूब नूतन जी | आपका ये अंदाज़ बहुत पसंद आया -

"अबके बसंत में क्या पतझड खिलेगा,
खिलेगा तो खूब लड़ेगा कि
बसंत तुम देर से क्यों आये ?"

वाह ,बहुत बढ़िया , सरल सहज प्रवाह मई काव्य , बधाई |

Comment by Dr Nutan on February 8, 2011 at 7:55pm
धन्यवाद राकेश जी ! .. आपका सादर शुक्रिया .. हौसला अफजाई  के लिए ..
Comment by Dr Nutan on February 8, 2011 at 7:37pm

धन्यवाद शम्स जी... जहाँ मैं रहती हूँ ..वह कल रात भी बर्फीली सर्द हवाएं चल रही थी ..और घनघोर बारिश .... अतः दिल में ये ख्याल आये ... कि बसंत कब आएगा ... ये तो सर्दी है....

आपका धन्यवाद ...

Comment by Dr Nutan on February 8, 2011 at 7:35pm
रंजना जी !! धन्यवाद ... बसंतपंचमी में आपको शुभकामनायें

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