अजनबीपन
दर्पण के पीछे है
एक और दर्पण
मन के भीतर है
एक और मन
शब्दों के जाल में
अनजाने भाव है
ऊपर से गहराई
नापते हैं हम
रात की सियाही में
दर्द के सैलाब पर
अंधेरे की चादर
तानते हैं हम
शूलों के दर्द में
फूल जो महका
उसकी ही रुह से
अनजान है हम
अपनी ही काया के
भीतर जो छाया है
उसकी सच्चाई कब
पहचानते हैं हम
दर्पण के पीछे..
मन के…
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Added by Narendra Vyas on August 3, 2010 at 4:12pm —
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कई बरसों के बाद घर मेरे चिड़ियाँ आईं
बाद मुद्दत ज्यों पीहर में बेटियाँ आईं !
ज़मीं वालों के तो हिस्से में कोठियाँ आईं,
बैल वालों के नसीबों में झुग्गियाँ आईं !
जाल दिलकश बड़े ले ले के मकड़ियां आईं
कत्ल हों जाएँगी यहाँ जो तितलियाँ आईं !
झोपडी कांप उठी रूह तलक सावन में,
ज्योंही आकाश पे काली सी बदलियाँ आईं !
ऐसे महसूस हुआ लौट के बचपन आया,
कल बड़ी याद मुझे माँ की झिड़कियां आईं !
बेटियों के लिए पीहर में पड़ गए ताले
हाथ…
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Added by योगराज प्रभाकर on August 2, 2010 at 9:00pm —
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नज़र को धोखा बार- बार यही होता है.
यूँ तो कुछ भी क्षितिज के पार नहीं होता है .
खुदा बनाता है क्यों उनको हसीं.
जिनके दिल में तमिज़े प्यार नहीं होता है .
दिल भले साज़ है पर सबसे जुदा.
ये वो सितार जिसमे तार नहीं होता है.
उनकी मासूमियत पे हैरां हूँ.
ये भी नहीं कहते ऐतबार नहीं होता है .
रेत में गुल खिला रहे हो पुरी.
दिलजलों के लिए बहार नहीं होता है.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611
Added by satish mapatpuri on August 2, 2010 at 4:53pm —
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भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,
सोहराबुदीन कौन था जिसको दिए सब मिटाए ,
कोई कहता था आतंकबादी था वो बड़ा हठीला ,
किया क्यों उसके कारण मुश्किल किसी का जीना ,
मर गया तो मिट गई बाते क्यों उल्टी हवा बहाए ,
भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,
जो ऐसा काम किया क्यों उसे सूली पे चढाते हो ,
अफजल गुरु को जो बचाए उसको सलाम बजाते हो ,
जागो हिंद के जागो भाई करो उसको सलाम ,
जो इस तरफ के कालिख पोतो के काम करे तमाम ,
सिद्ध हुआ था आतंकबादी मारे तो तगमा…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 2, 2010 at 2:00pm —
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गीत...
प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...
संजीव 'सलिल'
**
प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...
*
प्रतिभा मेघा दीप्ति उजाला
शुभ या अशुभ नहीं होता है.
वैसा फल पाता है साधक-
जैसा बीज रहा बोता है.
शिव को भजते राम और
रावण दोनों पर भाव भिन्न है.
एक शिविर में नव जीवन है
दूजे का अस्तित्व छिन्न है.
शिवता हो या भाव-भक्ति हो
सबको अब तक प्रार्थनीय है.
प्रतिभा खुद में वन्दनीय है.....
*
अन्न एक ही खाकर…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 2, 2010 at 10:45am —
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सितारों की महफ़िल में आज डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल
लखनऊ, गुरुवार, २९ जुलाई २०१०
ब्लोगोत्सव-२०१० को आयामित करने हेतु किये गए कार्यों में जिनका अवदान सर्वोपरि है वे हैं डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल जिन्होनें उत्सव गीत रचकर ब्लोगोत्सव में प्राण फूंकने का महत्वपूर्ण कार्य किया. ब्लोगोत्सव की टीम ने उनके इस अवदान के लिए संयुक्त रूप से उन दोनों सुमधुर गीतकार को वर्ष के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार का अलंकरण देते हुए सम्मानित करने का निर्णय…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 2, 2010 at 10:41am —
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किसी को मत अपना मान परिंदे
ये दुनिया बड़ी बेईमान परिंदे
मंदिर-मस्जिद ढूंढ़ रहा किसको
हर गली बिकता भगवान परिंदे
मोह का झूठा बंधन दुनियादारी
मत उलझा इसमें जान परिंदे
सांसों के पंख नहीं वश में अपने
ज़िस्मानी पंख झूठी शान परिंदे
मन की तिजोरी जब तक खाली
दौलत पर कैसा अभिमान परिंदे
जितना ऊपर उड़ता जीवन पंछी
खुलता सच का आसमान परिंदे
दुनिया में जो जीना चाहे सुख से
बंद रख आँखें और कान परिंदे
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से
Added by asha pandey ojha on August 2, 2010 at 10:15am —
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हवाओ से कह दो अपनी औकात में रहे
हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।
फिज़ाओं से कह दो अपनी हदों में रहे
हम बहारो से नहीं घटाओ से बनते है।
फूलो से कह दो कही और खिले
हम पंखुड़ी से नहीं काँटों में रहते हैं।
दुश्मनों से कह दो कही और बसे
हम कही और नहीं दोस्तों के दिल में रहते हैं।
Added by praveena joshi on August 1, 2010 at 4:02pm —
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होती है सुबह,ओर ढलती है मेरी शाम बस तेरा नाम ले लेकर
करने लगा शुरू मे आज कल हर काम बस तेरा नाम लेकर
कोई पीता है खुशी मे, किसी को गम, पीना सीखा देता यहाँ
मैने पीया है अपनी ज़िंदगी का हर जाम बस तेरा नाम लेकर
कोई करता है तीरथ यहाँ तो कोई जाता है मक्का ओर मदीना
हो गये पूरे इस जीवन के मेरे सारे धाम बस तेरा नाम लेकर
कोई भागता है दौलत के पीछे तो कोई शोहरत का दीवाना यहाँ
मुझे मिल जाती जहाँ की खुशियाँ तमाम बस तेरा नाम लेकर
किसी को जन्नत…
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Added by Pallav Pancholi on July 30, 2010 at 1:33am —
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पागल किसे कहते है
मैं नहीं जानता
मगर इतना जानता हू कि
अगर आप पर
पागलपन सवार है
तो हिमालय लांघना
कौन सी बड़ी बात है ॥
दोस्तों ,....
हवा जब पागल बनती है
उसे तूफ़ान कहते है
और ....
तूफ़ान घंटे भर में
वह कर देता है जो
हवा वर्षों से नहीं कर सकती ॥
मेरे युवा दोस्तों ....
आइये हमलोग भी तूफ़ान बने
छतविहीन घरों को छत देने के लिए
वृक्षों को नई जड़ देने के लिए
आईये ....
तूफ़ान बन फसलों के साथ…
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Added by baban pandey on July 29, 2010 at 9:15pm —
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.
नव-पावस के भीगे हम-तुम...
कुछ अनचीन्हे कुछ परिचित-से मृदुभावों में जीएँ हम-तुम।
इस भावोदय की वेला में चलो अलस की साँझ भुला दें
चाह रहे जो कहना अबतक आज जगत को चलो सुना दें
इच्छाएँ कह अपनी सारी जड़-चेतन झन्ना दें हम-तुम ॥ नव-पावस के भीगे हम-तुम...
अर्थ बने क्यों रुकने के अब, अलि तन्द्रिल हो क्यों उपवन में
गंध बँधे कब तक कलियों में, पवन रुके कब तक आँगन में
नीरस-चर्या सभी बदल कर नव-उल्लास गहें मिल हम-तुम ॥ नव-पावस के भीगे…
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Added by Saurabh Pandey on July 27, 2010 at 2:02pm —
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कोई किसी से परिचय नहीं कराता
समय के साथ-साथ स्वयं परिचित होता जाता है हर अजनबी
नहीं रहती कोई इकाई बंद अपने आप में फिर
कहीं कुछ बनने लगता है
कहीं कुछ जनमने लगता है चुपचाप
ऐसा नहीं
अँधेरे में भागता हर अभागा पलायनवादी ही हो
चकचकाती इस उजली धूप से
बच पाने की इच्छा भी हो सकती है
वर्ना देखो उसकी आँखें
लाल डोरे की जालियाँ कितनी उलझती गई हैं, और
उलझाती गई हैं उसकी जाने कितनी वेगवती संभावनाएँ
यदि तुम्हारा अभिजात्य
इस…
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Added by Saurabh Pandey on July 27, 2010 at 2:00pm —
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कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,
1984 के दंगों के आरोपी को छोडती हैं ,
जनता के मांग पर फिर केस चलता हैं ,
उसके बाद दोबारा सज्जन कुमार अंदर जाता हैं ,
कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,
टाइटलर हैं किस्मत वाले दोबारा क्लीन चिट मिली ,
अमित शाह को लेकर भाजपा ने जो बक्तब्य दिया ,
आम आदमी सोचने पर मजबूर हो जाता हैं ,
कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,
Added by Rash Bihari Ravi on July 27, 2010 at 1:30pm —
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हसीना तेरे गालों पे पसीना जब भी आता है ।
सही माने में सावन का महीना तब ही आता है ।
न जाने साँस चलने को ही किसने ज़िन्दगी कह दी ।
हसीं जुल्फों की हो जब छांव जीना तब ही आता है ।
जहाँ में मय भी ,मैकश भी ,है साकी भी ,है पैमाने ।
हो मयखाना सनम की आँख पीना तब ही आता है ।
कहाँ इनकार है मापतपुरी सूरज के जलने से ।
मगर जब जलती है शमा सफीना तब ही आता है ।
गीतकार --- सतीश मापतपुरी
मोबाईल -- 9334414611
Added by satish mapatpuri on July 26, 2010 at 1:00pm —
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चिंतन और आकलन:
हम और हमारी हिन्दी
संजीव सलिल'
*
हिंदी अब भारत मात्र की भाषा नहीं है... नेताओं की बेईमानी के बाद भी प्रभु की कृपा से हिंदी विश्व भाषा है. हिंदी के महत्त्व को न स्वीकारना ऐसा ही है जैसे कोई आँख बंद कर सूर्य के महत्त्व को न माने. अनेक तमिलभाषी हिन्दी के श्रेष्ठ साहित्यकार हैं. तमिलनाडु के विश्वविद्यालयों में हिन्दी में प्रति वर्ष सैंकड़ों छात्र एम्.ए. और अनेक पीएच. डी. कर रहे हैं. मेरे पुस्तक संग्रह में अनेक पुस्तकें हैं जो तमिलभाषियों ने…
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Added by sanjiv verma 'salil' on July 26, 2010 at 10:38am —
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कल आँखे खोली दुनिया में
कल को रुखसत हो जाएंगे
संग चले जो कह कर अपना
सब बेगाने हो जाएंगे
साथ तुम्हारा भी ना होगा
वादे सारे खो जाएंगे
दिल में दी थी जगह जिन्होने
क्या फिर बांहे फैलाएंगे?
हाँ, पर जिनको दी मुस्कानें
भुल नहीं हमको पाएंगे
रह ना सकेंगे इस दुनिया में
यादों में हम रह जाएंगे।।
"रिचा भारती"
Added by Raju on July 25, 2010 at 4:22pm —
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गुरु को नित वंदन करो, हर पल है गुरूवार.
गुरु ही देता शिष्य को, निज आचार-विचार..
*
विधि-हरि-हर, परब्रम्ह भी, गुरु-सम्मुख लघुकाय.
अगम अमित है गुरु कृपा, कोई नहीं पर्याय..
*
गुरु है गंगा ज्ञान की, करे पाप का नाश.
ब्रम्हा-विष्णु-महेश सम, काटे भाव का पाश..
*
गुरु भास्कर अज्ञान तम्, ज्ञान सुमंगल भोर.
शिष्य पखेरू कर्म कर, गहे सफलता कोर..
*
गुरु-चरणों में बैठकर, गुर जीवन के जान.
ज्ञान गहे एकाग्र मन, चंचल चित अज्ञान..
*
गुरुता…
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Added by sanjiv verma 'salil' on July 25, 2010 at 8:30am —
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अब सर से पानी निकलने लगा है
तैरता मन भी अब डूबने लगा है ॥
सूनी माँ की आंखों में , बेटे का इंतज़ार है
अब ,सिर्फ उनका ताबूत घर आने लगा है ॥
आशा लगाईं थी कुदाल ने , लाल कोठी पर
कपास के खेतों में भी अब दरार आने लगा है ॥
अब खाव्बो की मलिका , मरने लगी है
इच्छाओ का घर भी अब ,जलने लगा है ॥
मैं कुछ कर न सका दोस्तों, देश के लिए
इसका मलाल अब मुझे , आने लगा है॥
लाल कोठी-संसद
Added by baban pandey on July 22, 2010 at 4:18pm —
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कभी - कभी उसे लगता है
नेत्र हीन हो जाए
ताकि वह देख न सके ....
शरीर दिखाती औरतें
किसानों की आत्महत्याए
निठारी में नाले से निकले
छोटे -छोटे बच्चों के नर कंकाल
और
सैनिक बेटे को खोने के बाद
एक मूर्छित माँ का चेहरा ॥
कभी -कभी उसे लगता है
बहरा हो जाए
ताकि वह सुन न सके
नेताओं के झूठे आश्वाशन
नक्सलियों के बंदूकों से
गोलियों की तडतड़ाहट
लोक संगीत की जगह फ्यूजन -मयूजिक
और
हमलों में शहीद हुए जवानों…
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Added by baban pandey on July 21, 2010 at 8:45pm —
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कौरव पांडव मिल चीर खीचते ,
सदन खड़ी बेचारी द्रोपदी बनकर,
हाथ जोड़े लुट रही थी वो अबला,
कृष्ण ना दिखे किसी के अन्दर ,
चुनाव का चौपड़ है बिछने वाला ,
शकुनी चलेगा चाल,पासे फेककर,
खेलेंगे खेल दुर्योधन दुश्शाशन ,
होगा खड़ा शिखंडी भेष बदलकर,
हे!जनता जनार्दन अब तो जागो,
रक्षा करो कृष्ण तुम बनकर,
दिखाओ,तुम्हे भी आती है बचानी आबरू ,
"बागी" नहीं जीना शकुनी का पासा बनकर,…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 21, 2010 at 8:00pm —
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