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Narendra Vyas
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Bikaner
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Jaipur
Profession
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i m editor of Akhar kalash hindi literacy blog

Narendra Vyas's Blog

पिछला सावन !

याद है मुझे !

पिछला सावन

जमकर बरसी थी

घटाएँ

मुस्कुरा उठी थी पूरी वादीयाँ

फूल, पत्तियां मानो

लौट आया हो यौवन



सब-कुछ हरा-भरा

भीगा-भीगा सा

ओस की बूँदें

हरी डूब से लिपट

मोतियों सी

बिछ गई थी

हरे-भरे बगीचे में

याद है मुझे !



गिर पडा था मैं

बहुत रोया

माँ ने लपक कर

समेट लिया था

उन मोतियों को

अपने आँचल में

मेरे छिले घुटने पे

लगाया था मरहम

पौंछ कर मेरे आँसू और

मुझे बगीचे…
Continue

Posted on September 15, 2010 at 10:16pm — 3 Comments

अवतार हेतु आर्त-निवेदन

सभी ओपन बुक्स परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम और आप सब मिलकर सच्चिदानन्द घनआनन्द आनन्द स्वरूपा श्री कृष्ण भगवान को एक बार पुनः इस धरती पर अवतरित हो पापों का नाश करने का आर्त निवेदन करें!



हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देने वाले, शरणागत की रक्षा करने वाले भगवान्! आपकी जय हो! ज्य हो!! हे गो-ब्राह्मणों का हित करनेवाले, असुरों का विनाश करने वाले, समुद्र की कन्या (श्रीलक्ष्मी जी)- के… Continue

Posted on September 2, 2010 at 6:44am — 4 Comments

अहिंसा का यथार्थ स्वरूप

सामान्यतया अहिंसा का अर्थ कायरता से लगाया जाता है..जबकि अहिंसा का वास्तविक अर्थ होता है निडरता | दूसरे अर्थों में कहूँ तो 'अभय', जो भयजदा नहीं हो और ये ही निडरता ही नैतिकता का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है. इंसान का निडर होना उसका सबसे अहम् गुण होता है. निडर और अभय व्यक्ति ही स्वतंत्र हो सकता है. हिंसक व्यक्ति सदा स्वयं को असुरक्षित और तनावग्रस्त महसूस करते हैं, साथ ही अप्रिय भी होते हैं। भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस हिंसावादी नहीं थे..निडर थे..अभय थे..अपने आपको कभी परतंत्र नहीं समझा और इसी विचार को… Continue

Posted on August 28, 2010 at 4:27pm — 3 Comments

कलियुग में भी सतयुग !

सुना है

सभ्यता सबसे पहले

यहीं आई,

पड़ी है अब खंडहरों सी

पिछवाड़े में जमीन्दोस है

खुदाई में दिखती है

शर्म खरपतवार सी

बेशर्मी की

हरीभरी क्यारियों में

अपने वजूद को रोती है

इंसानियत

चेहरों की हवाइयों सी उड़

उलटी जा लटकी

अँधेरी सुरंग में



सच तो अब

पन्नो में ही पलता है

इंसान

मरने से पहले

जिन्दा जलता है

रिअलिटी का तो अब,

सिर्फ शो होता है

परिवार तो

हम और

हमारे दो होता है

मातृत्व… Continue

Posted on August 27, 2010 at 8:30pm — 5 Comments

Comment Wall (9 comments)

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At 9:23am on October 4, 2012,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 8:01pm on March 13, 2011, आशीष यादव said…
आदरणीय नरेन्द्र व्यास जी, आप ने मेरे ब्लॉग को पढ़ा और मुझे अच्छी सलाह दी, मै दिल से आभारी हूँ| मै आप से अनुरोध करूँगा की आप मेरी अशुद्धियों से मुझे अवगत कराएं| आप की अति कृपा होगी|
At 6:17pm on October 4, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 7:28am on October 4, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…
MANY MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY NARENDRA BHAIYA///...MAY ALL UR DREAMS COME TRUE ON THIS BIRTHDAY....

At 9:53pm on July 12, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 1:08pm on July 12, 2010, Admin said…

At 4:47pm on July 11, 2010,
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
said…
हमारा सौभाग्य है की श्री नरेंद्र व्यास जी भी आज "ओपन बुक्स ओनलाईन" से जुडे हैं ! श्री व्यास जी "आखर कलश" के संचालक के तौर पर बहुत समय से साहित्य सेवा और साधना से जुडे हुए हैं ! मैं श्री नरेंद्र व्यास जी को बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने मेरी प्रार्थना स्वीकार करते हुए "ओपन बुक्स ओनलाईन" से जुड़ने का निर्णय लिया ! मुझे आशा है कि आपकी मौजूदगी से हम सबको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, oBo परिवार में बहुत बहुत स्वागत है आपका !
At 4:46pm on July 11, 2010, advocate mukund vyas said…
pagelagna bhai shab ....
i m also from bikaner .... or sanjog se aapke ghar ke pass hi rahta hu..
At 3:32pm on July 11, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

 
 
 

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"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
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"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
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