कल पंद्रह अगस्त है. मैंने सोचा की कुछ लिखूं इस स्वतंत्रता दिवस पर. लिखने बैठा तो कुछ या पंक्तियाँ बनी मेरे मस्तिस्क और ह्रदय में. मई उनको आपके सामने रख रहा हूँ|
वर्षों से थी पराधीनता से भारत माता ग्रस्त|
समय सुहाना सैंतालिस का, आया पंद्रह अगस्त||
आया पंद्रह अगस्त हुआ था नया सवेरा|
देश हुआ आज़ाद, फिरंगियों ने भारत छोड़ा||
गैरों की मर्ज़ी से था, जो चलता जीवन|
अपने बस में हुआ, खिल गए वन औ' उपवन||
खिंजा हटी बागों से, आया था बहार का…
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Added by आशीष यादव on August 14, 2010 at 5:40pm —
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व्याख्या
गूढ़ जीवन को सरल बोल दिए,
परिचय मिला जटिलता से,
सबको जीवन का सार बताया,
स्वयं बन गयी सारांश ताल,
स्वामिनी का रूप भी धर लिया,
पर मन बंदिनी से नहीं उबरा,
अंकुर ही मैंने अब तक रोपा है,
वाट वृक्ष बन नहीं किसी कोघोंटा है.
Added by alka tiwari on August 14, 2010 at 4:41pm —
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उष्ण आगोश था
मैं मदहोश था
ना मुझे होश था
ना मुझमे जोश था
मैं शीतस्वापन में था
ना ही मैं जगा
ना मुझे उठाया गया
ना ही मैं जला
न मुझे सुलगाया गया
मुझे तो बुझाया गया
अब राख ही राख है
और हैं एक चिंगारी
आपका :- आनंद वत्स
Added by Anand Vats on August 14, 2010 at 11:24am —
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बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना
तरक्की के सफ़र में थोडा सा माजी बचा लेना
बनाओ संगेमरमर के महल चारो तरफ पक्के
मगर आंगन के कोने में ज़रा माटी बचा लेना
चुभी थी फांस बनकर गोरी आँखों में कभी खादी
न होने पाए इसकी आज बदनामी बचा लेना
कोई भूखा तुम्हारे दर से देखो लौट ना जाये
तुम अपने खाने में से रोज़ दो रोटी बचा लेना
लगा पाओ वतन पर मरने वालो का कोई बुत भी
कोई नुक्कड़ तुम अपने बुत से भी खाली बचा लेना
(बहरे हज़ज़ मुसम्मन…
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Added by Rana Pratap Singh on August 14, 2010 at 10:00am —
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लूटो ..
कितना लूटोगे ???
अब तक कितनो ने लूटा ,
मगर
दुःख नहीं हुआ ,
कारण ???
मुग़ल बाहर से आये थे ,
अंग्रेज भी बाहर वाले थे ,
वो लूटते रहे ,
और मेरे अपनों को,
लूट में सहयोगी बनाते रहे ,
और मैं कराहती रही !!,
मगर तब भी उतना दुःख नहीं हुआ ,
जो अब होता हैं ,
मगर
तुम तो मुगलों और अंग्रेजो से भी ,
दो कदम आगे निकले ,
लूटो !!!
मगर तुम्हे धिक्कार हैं ,
अपनी माँ को भी नहीं छोड़ा,
अब कभी पैदा नहीं करुँगी…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 13, 2010 at 8:00pm —
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क्या समझते हो ,
मैं थक के हार के ,
बैठ जाऊंगा ,
ये सोच जो हैं आपकी ,
इसे गलत साबित कर दूंगा ,
मैं हूँ भोजपुरी पुत्र ,
भोजपुरिया ,
और मैं दहाड़ता रहूँगा ,
चाहे आप मानो या ना मानो
मुझे भाषा ,
मैं आपके सीने पे चिंघाड़ता रहूँगा ,
कब तक मिटाते रहोगे मुझको ,
अपने सदन पटल से ,
अरे बेशर्मो ,
मुझे चाहने वाले....
हिंदुस्तान में हिंदी के बाद ,
सबसे ज्यादा हैं ,
मैंने ही दिया था राजेंद्र बाबु को ,
जिसका तुम गुणगान…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 13, 2010 at 7:00pm —
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(15 अगस्त पर विशेष)
हर प्राचीर पर लहराता तिरंगा भारत की स्वतंत्रता की गाथा को दोहरा रहा है। स्वतंत्र्ाता सबको मिले। हमें बहुत कुछ मिला है। लेकिन क्या यह बहुत कुछ हम सभी भारतवासियों ने पाया है? मिलने और पाने में बहुत अंतर है।
देश में दो बार परमाणु परीक्षण किए गए तो बाबरी मस्जिद का विध्वंस और उसके बाद देश भर में फैली हिंसा ने भी हमें यह सोचने पर विवश किया कि क्या साम्प्रदायिकता के आधार पर देश के विभाजन के बाद भी हमने इससे कोई सबक लिया? गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा देश झेल…
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Added by Jaya Sharma on August 13, 2010 at 5:02pm —
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आदिकाल से रक्षा कर रहे हैं: नाग देवता
;समृद्धि का प्रतीक नागपंचमीद्ध
- जया केतकी
श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि नागपंचमी का त्यौहार सर्पाे को समर्पित है। इस त्योहार पर व्रत पूर्वक नागों की पूजा होती है। नागों का मूलस्थान पाताल लोक है। वेद-पुराणों में नागों का अस्तित्व महर्षि कश्यप और कद्रू से माना जाता है। पुराणों में ही नागलोक की राजधानी भोगवती पुरी है। विष्णु की शय्या की शोभा शेषनाग बढ़ाते हैं। भगवान शिव और गणेशजी के अलंकरण में भी नागों की मह्त्त्वपूर्ण भूमिका है।…
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Added by Jaya Sharma on August 13, 2010 at 4:18pm —
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तू हमारा दिल जिगर है तू हमारी जान है
तू भरत है तू ही भारत तू ही हिन्दुस्तान है
अय तिरंगे शान तेरी कम ना होने देंगे हम
तू हमारी आत्मा है तू हमारी जान है |
तेरी खुशबू से महकती देश की माटी हवा
हर लहर गंगा की तेरे गीत गाती है सदा
तू हिमालय के शिखर पर कर रहा अठखेलियां
तेरी छांव में थिरकती प्यार की सौ बोलियां
तू हमारा धर्म है मजहब है तू ईमान है |
जागरण है रंग केसरिया तेरे अध्यात्म का
चक्र सीने पर है तेरे स्फुरित विश्वास का
भारती की… Continue
Added by jagdishtapish on August 13, 2010 at 9:47am —
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आज मै आप लोगो की सेवा में एक बार फिर अपनी रचना प्रस्तुत रहा हूँ. मुझे उम्मीद है की ये आप लोगो को पसंद आएगी. और आप लोगो का आशीर्वाद रूपी कमेन्ट अवश्य मिलेगा.
जागरण गीत
पूरब में जगी है भोर, पंछी करने लगे है शोर,
मुसाफिर तू भी जग जा, हो मुसाफिर तू भी जग जा,
जग जाएगा तो पायेगा जग में सुन्दर अमूल खजाना,
सोकर खोकर समय चूकि फिर रह जाए पीछे पछताना .
समय के रहते जाग, की अपना हिस्सा ले तू आज,
मुसाफिर तू भी जग जा, हो मुसाफिर तू भी जग जा,
अपना सब…
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Added by आशीष यादव on August 12, 2010 at 3:08pm —
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अकाल ....
एक दिन में नहीं
कह कर आता है ...धीरे -धीरे ॥
बादल रुठ जाते है
जमीन दरारें दिखाती है
कमल कुम्भला जाते है
चिड़ियों को नहीं मिलता अन्न
बगुले को नहीं मिलते कीटें
धान के खेतों में ॥
सरकार कहती है
कोई नहीं रहेगा भूखा
विदेशों से मंगा लिया जाएगा
चावल -गेहू -दाल ॥
क्या सरकार मिटा देगी
रामू काका के चेहरे पर उगी झुरीयां
जो मुनिया की शादी
टल जाने से हो गई है गहरी ॥
क्या सरकार देख पा…
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Added by baban pandey on August 12, 2010 at 2:47pm —
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मेरे घर के उत्तर- पश्चिम कोने पर
रहता है एक सांप
हमारे घर जितना पुराना ही
६३ साल का ॥
तीन बार हमें डंस चूका है
१९६५, १९७२, और कारगिल में
यद्दिपी कि तीनों बार
वह भाग खड़ा हुआ
मगर विष -वृक्ष बो गया है ॥
उसने कश्मीर में अपने
छोटे -छोटे बच्चो को जन्म दिया है
फुफकारते है उसके बच्चे कश्मीर में ॥
कश्मीर के लोगो का जीना
उसने तबाह किया हुआ है ॥
अब मेरे पुरे घर में ....
उसके विषैले बच्चे फ़ैल रहे है…
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Added by baban pandey on August 12, 2010 at 2:30pm —
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जीवन के इस मोड़ पे
शब्दों से घटाने
और कविताओं के जोड़ में
अनुभवों के सागर में
और इस धरती पे जीवन के
निचोड़ से
क्या सीखा मैंने?
रोता रहा हूँ कई बार
और कोसा भी सबको मैंने
किस्मत के आगे भीख मागी
और पुकारा रब को भी मैंने…
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Added by अनुपम ध्यानी on August 12, 2010 at 12:14pm —
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आज पीने चला था जाम मैं,
प्रियतम ने प्याला थमा दिया|
चला था मैं इश्क लड़ाने,
उन्होने नज़रें झुका लिया|
कल्पना के हाथों से स्वयं
दो जाम बना दिया||
बड़ी नशीली आँखें उनकी,
मेरे मन मानस पर छा गयी|
श्यामल अंगूर की कोमल कलियों,
बीच शीशा लेकर आ गयीं|
नीर रसों के स्वाद ने मुझे
मधुघट की राह दिखा दिया|
मृदुल हथेली की चाहत ने,
उसे मादक द्रव्य बना दिया ||
एक बार ही तो था माँगा,
प्रेयसी, के…
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Added by ABHISHEK TIWARI on August 12, 2010 at 11:00am —
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कत्ल पेड़ों का हुआ तो, हो गया प्यासा कुआँ !
तिश्नगी अब क्या बुझाएगा भला तिश्ना कुआँ !
पनघटों पर ढूँढती फिरती सभी पनिहारियाँ,
एक दिन ये लौट कर आयेगा बंजारा कुआँ !
बस किताबों में नजर आएगा, ये अफ़सोस है
हो गया इतिहास अब ये भूला बिसरा सा कुआँ !
एक दिन बेटी को जिसकी खा गया था रात में,
उसको तो ख़ूनी लगे उसदिन से ही अँधा कुआँ !
मौत शायद टल ही जाये धान की इंसान की,
गर किसी सूरत कहीं ये हो सके ज़िन्दा कुआँ…
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Added by योगराज प्रभाकर on August 12, 2010 at 12:30am —
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एक समय था जब
घर आया अतिथि
देव तुल्य होता था ..
उसको पेट भर खिला कर
कभी-कभी गृहस्वामी भूखा ही सोता था...
ऐसे गृह स्वामी की झूठन में लोट-पोट
आधा सोने का नेवला
युधिष्ठिर के राजसूय यग्य में भी ...
पूरा सोने का न हो पाया था..
और उसने सम्राट के यग्य के सम्पूर्ण फल को
गृह स्वामी की तुलना में
व्यर्थ ही बताया था..
जी भले ही लोग कहें
छोटा परिवार - सुख का आधार
नयूक्लीअर परिवार –सुखी-परिवार …
पर मैं सोचता हूँ
सुख…
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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on August 11, 2010 at 3:42pm —
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धर्म धुरी है इस जगती की
धर्म सृष्टि का है आधार..
धर्म न्याय से ही सुस्थिर है
इस दुनिया के सब व्यापार.
धर्म सिखाता है बेटे को
माँ का हो पूरा सम्मान..
धर्म मान कर ही सीमा पर
सैनिक देता अपने प्राण ..
सूर्य चन्द्र भी धर्म मान कर
देते हैं प्रकाश उपहार ;
धर्म मान निज वृक्ष फूलते
नदियाँ जल देतीं साभार ...
पत्नी माँ दोनों हैं स्त्री ,
किन्तु पृथक इनका स्थान
माँ माँ है पत्नी है पत्नी,
धर्म कराता इसका…
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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on August 11, 2010 at 3:38pm —
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आज मैं सोचता हूँ,
आज मैं सोचता हूँ की वो दिन फिर वापस आ जाए,
फिर वेसे ही मौज मनाए,
तितली के पिछे हम जाए,
फूल के महको मे खोजाये,
तब तो हम थे धूम मचाते,
समय बिताया हसते गाते,
सखाओ के संग बात बनाते,
समझ ना पाया दिन केसे जाते,
ये केसा दिन आया देखो,
खुद भि समझ ना पाया देखो,
कहा है जाना क्या करना है,
अब तक समझ ना पाया देखो,
जीवन के इस रंग मंच पर,
अपना पात्र निभाया देखो,
मन चंचल को माना लिया है,
उसको सब…
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Added by pankaj jha on August 11, 2010 at 3:37pm —
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बिजलियाँ दिल पे गिराते जाइये --
आप तो बस मुस्कराते जाइये --
हर किसी से दिल नहीं मिलता मगर --
हाथ तो सबसे मिलाते जाइये |
तेरे नाम से ही मुझको दुनियां ने पुकारा है --
मेरी ज़िन्दगी का आखिर तू ही तो सहारा है --
परदा जो हटा दो तो दीदार मयस्सर हों --
हम गैर सही लेकिन परदा तो तुम्हारा है |
पहले तो मुझे होश में आने की दवा दो --
फिर आपकी मर्ज़ी है जो चाहे सजा दो --
जब टूट ही गया दिल जी के भी क्या करें --
जीने की दुआ दो या मरने की दुआ दो |
Added by jagdishtapish on August 11, 2010 at 9:22am —
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ऐसे भी ज़माने में लोगो
ऐसे भी ज़माने में लोगो गमनाक फ़साने होते हैं
दुनिया से तो लाजिम है लेकिन खुद से भी छुपाने होते हैं
कुछ और नए देना है अगर दीजेगा मगर हंसते हंसते
नासूर बना करते हैं जो वो जख्म पुराने होते हैं
उठता है कोई जब दुनिया से कांधे पे उठाया जाता है
महफ़िल से उठाने के पहले इल्जाम लगाने होते हैं
पूछो न शबे फुरकत में क्यों ये दामन भीगा रहता है
दिल रोता है अन्दर अन्दर हँसना तो बहाने होते हैं
सौ बार तपिश मैखाने की…
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Added by jagdishtapish on August 10, 2010 at 10:56pm —
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