आदिकाल से रक्षा कर रहे हैं: नाग देवता
;समृद्धि का प्रतीक नागपंचमीद्ध
- जया केतकी
श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि नागपंचमी का त्यौहार सर्पाे को समर्पित है। इस त्योहार पर व्रत पूर्वक नागों की पूजा होती है। नागों का मूलस्थान पाताल लोक है। वेद-पुराणों में नागों का अस्तित्व महर्षि कश्यप और कद्रू से माना जाता है। पुराणों में ही नागलोक की राजधानी भोगवती पुरी है। विष्णु की शय्या की शोभा शेषनाग बढ़ाते हैं। भगवान शिव और गणेशजी के अलंकरण में भी नागों की मह्त्त्वपूर्ण भूमिका है। भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है, जो क्रमशः प्रत्येक मास में उनके रथ के वाहक हैं। नागदेवता को भारतीय संस्कृति में देवरुप में स्वीकार किया गया है।
यह तो सच है की वर्षा ऋतु में ही सर्प दंश की अनेक घटनाएँ घटती हैं -लिहाजा हजारो साल पहले से सापों से भयग्रस्त जन इसी माह सापों की पूजा करते आए हैं जिसमें डर भय ही मूल कारण है-भय बिनु होई न प्रीति !
सावन महीने के शुक्ल पक्ष के पाँचवे दिन अर्थात आज ही नाग पंचमी का आयोजन पूरे देश में स्थानिक विशिष्ट पूजा विधान के साथ होता है-एक कथा जिसके उद्भव के बारे में ज्यादा कुछ ज्ञात नही है इस अवसर पर दुहराई जाती है, वह यूँ है -
मणिपुर में एक ब्राह्मण परिवार था जिसके मुखिया ने मनाही के बावजूद नागपंचमी के दिन खेतों को जोतने का निर्णय लिया। वह हल बैल लेकर खेत पर पहुँचा, खेत जोतना शुरू किया , अनहोनी घटित हो गयी -एक प्रसूता नागिन के सभी बच्चे हल से नष्ट हो गए ! तभी नागिन ने ब्राह्मण को डस लिया -जो तत्क्षण वहीं ढेर हो गया। उसने जैसे को तैसा नीति के मुताबिक फैसला लिया कि ब्राहमण ने चूंकि उसके पूरे परिवार को मार डाला है। इसलिए वह भी उसके परिवार के सभी सदस्यों को मार डालेगी। ब्राहमण के घर पहुँच कर पूरे परिवार को डसने के बाद उसे पता चला कि ब्राह्मण किसान की एक बेटी है जो अपने घर (ससुराल ) गयी है। उसे भी काटने के इरादे से जब वह दूसरे गाँव पहुँची तो क्या देखा कि ब्राहमण की बेटी नाग पूजा का पूरा अनुष्ठान किए बैठी है। और धूप दीप नैवेद्य दूध से नागराज की पूजा कर रही है ।यह देख नागिन के मन से बदला लेने का विचार खत्म हो गया। उसने सारा वृत्तांत ब्राहमण बेटी को सुना दिया जिससे वह बहुत दुखी हो गयी ! मगर नागिन ने दयालुता दिखाकर उसे अमृत का कलश सौंप दिया और कहा कि तुरंत जाकर इसे सभी मृतकों पर छिड़को।
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार नाग देवता सारी धरती का भार अपने माथे पर संभाले हुए हैं। इसीलिए श्र्रावण शुक्ल पंचमी को नाग देवता की पूजा की जाती है। दूध, जल, फूल, चावल, नारियल आदि पूजन की सकल सामग्री के साथ नाग की पूजा कर दूध पिलाने का चलन हैं। कुछ लोग दीवार में नाग देवता का चित्र्ा बनाकर पूजा करते हैं। शाम को बगीचे या पेड़ के नीचे घी और दूध रखकर क्षमा प्रार्थना की जाती हैं- हे प्रभु जहाँ हो वहीं रहियो, हमारी रक्षाकरियो, न आँखों दिखियो, न कानों सुनाइयो।
श्रावणमास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भारत में नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नाग पूजा करके नाग को दूध पिलाना चाहिए। इससे ’नाग देवता’ हमारी रक्षा करते हैं तथा सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। कुछ हिन्दू परिवारों में नाग की छवि दीवार या कागज पर अंकित कर उसकी पूजा की जाती है। शाम को घर के बाहर आंगन में घी-दूध के दिये रखे जाते हैं।
इस संबंध में अनेक दंत कथायें प्रचलित हैं। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन सब्जी-फल आदि को काटना नहीं चाहिए ख्ल-बट्टे में कूटना नहीं चाहिए आदि। इस प्रकार की अनेक धारणाएं आज भी हमारे समाज में मानी जाती है। कोई तवा-कढ़ई चढ़ाने से परहेज करते हैं। तो कोई सुई-धागे के प्रयोग से।
यदि एक प्रकार से देखा जाये तो ये बातें हमारी आस्था और भावनात्मक जुड़ाव तक ही सीमित होती है। कुछ लोग नाग देवता को अपने कुल का रक्षक मानते हैं। उनके अनुसार नाग उनके कुलदेवता है। इस कारण वे उनकी पूजा करते है।
वास्तविकता यह है कि बरसात के कारण सर्पों के बिल में पानी भर जाता है और वे आश्रय ढूढ़ने बगीचे और घरों की और चल पड़ते हैं। अतः अगस्त माह में प्रायः सर्प घुमते दिखाई पड़ जाते है। सर्पों के प्रति श्रद्धा और अपनी रक्षा के बारे में सोचकर ही लोगों ने उन्हें पूजना आरम्भ कर दिया। साँप के पैर नहीं होते हैं। यह निचले भाग में उपस्थित धारियों की सहायता से चलता है। इसकी आँखों में पलके नहीं होती, ये हमेशा खुली रहती हैं। साँप विषैले तथा विषहीन दोनों प्रकार के होते हैं। इसके ऊपरी और निचले जबड़े की हड्डियाँ इस प्रकार की सन्धि बनाती है जिसके कारण इसका मुँह बड़े आकार में खुलता है। इसके मुँह में विष की थैली होती है जिससे जुड़े दाँत तेज तथा खोखले होते हैं अतः इसके काटते ही विष शरीर में प्रवेश कर जाता है। दुनिया में सांपों की कोई २५००-३००० प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
सर्पों का राजा को बरा जाति के साँप को माना जाता है। इसका विवरण अनेक पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। नागराज वासुकी, शेषनाग, कालिया, शंखपाल, पिंगल तथा तक्षक आदि नाम हमें शाóों के मध्य मिलते हैं।
भगवान नारायण की शयनसैया तो शेषनाग ही है। क्षीरसागर में विष्णु जी उसी पर विश्राम करते हैं। इसी प्रकार श्रीकृष्ण के कालियादहन की कथा से श्रद्धालु परिचित है। किस प्रकार यमुना नदी के किनारे खेलते हुए कृष्ण की गेंद यमुना में गिरकर कालिया नाग के घर पहुंची और किस प्रकार से उन्होंने कालिया को वश में किया। भगवान बुद्ध तथा जैन मुनी श्री पार्श्वनाथ के रक्षक श्री नाग देवता माने जाते हैं तथा पार्श्वनाथ जी की मूर्ति के साथ सर्प-पूजा के दृश्य भी गुफाओं में चित्रित किए गये हैं।
यह एक पौराणिक आस्था है कि नागदेवता भगवान षंकर को भी अति प्रिय हैं। षंकर के गले में सर्प लहराता दर्शाया जाता है। सभी षंकर जी के भक्त सर्प की पूजा में विश्वास करते है। क्योंकि सर्प उनका विशेष आभूषण दूध से किया जाता है उसी प्रकार नागपूजा में भी दूध चढ़ाने का विशेष महत्व होता है।
सर्प पूजा का विधान इस कारण भी माना जाता है कि सर्प विषैले होते हैं। उनकी पूजा करके लोग उनके प्रकोप से बचना चाहते हैं। सर्प की पूजा से व्यक्ति उनमें आस्था प्रकट करता है तथा उनसे एक वास्तविक दूरी बनाए रखता है।
ऋषि-मुनियांे ने नागोपासना में अनेक व्रत-पूजनका विधान किया है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी नागों को आनन्द देनेवाली है। पंचमी तिथिको नागपूजा में उनको गो-दुग्ध से स्नान कराने का विधान है। कहा जाता है कि एक बार मातृ-शाप से नागलोक जलने लगा । इस दाहपीड़ा की निवृत्ति के लिये (नागपंचमीको) गो-दुग्धस्नान जहाँ नागों को शीतलता प्रदान करता है, वहाँ भक्तों को सर्पभय से मुक्ति भी देता है। गाय के दूध के अभाव में भैंस का दूध भी लिया जा सकता है।
व्रत के साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजा में पृथ्वी या दीवार पर सर्पोेंका चित्र बनाया जाता है। मिट्टी या गोबर से नाग बनाकर पुष्प, गुन्ध, धूप-दीप एवं विविध नैवेधों से नागों का पूजन किया जाता है। दक्षिण भारत के केरल, आंध्रप्रदेश, चैन्नई में नागराज मंदिर हैं। जहाँ इनकी नित्य पूजा की जाती है। ’नागपंचमी पर्व’ पर यहाँ विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मध्यप्रदेश में उज्जैन में नाग देवता का मंदिर है साल में केवल नागपंचमी के दिन पूजा होती है। इसी प्रकार जयपुर के हरदेव्जा मंदिर में भी नाग देवता की पूजा होती है। पश्चिम बंगाल के असम और उड़ीसा में भी नाग मंदिर बनाए गए हैं और नियमित पूजे जाते हैं।
महाराष्ट्र में नागपंचमी के दिन महिलाएं प्रातः स्नान करके ’नववारी’ साड़ी पहनकर तैयार होती है। इस दिन सबेरे नाग को पिटारी में लेकर आते हैं। óियां नागदेवता कि दूध, चावल, फूल आदि चढ़ाकर पूजा करती हैं। वे हल्दी-कुमकुम लगाकर नागदेवता को ’मीठा दूध’ पीने को देती है और प्रार्थना करती है कि उनके घर में सुख-समृद्धि रहे तथा उनकी रक्षा करना। कुछ घरों की वृद्ध माताएं पांच सर्पों की आकृति बनाकर उसकी पूजा करती हैं। पंजाब में ’नागपंचमी’ का त्यौहार गुगानवमां कहलाता है।
इस दिन यहाँ आटे को सानकर एक बड़े नाग का स्वरूप दिया जाता है। इसे बनाने के लिए मोहल्ले के सभी लोग एक स्थान पर आटा और घी या मक्खन इकट्ठा करते हैं। ’नाग’ बनाते हैं और धूमधाम से पूजा करते हैं। दूसरे दिन गड्ढा करके गाड़ते हैं।
यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। कुछ स्थानों पर इस दिन नागदेवी ’मन्सा’ की पूजा की जाती है। खासतौर पर बंगाल के स्थानों में नागदेवी की पूजा होती है। नागपंचमी हमारे धार्मिक पर्वों में से एक है। यह सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
सावन में खेतों मेड़ों की निंदाई गुड़ाई या जुताई के समय सावधान रहें । जिससे किसी साँप के बच्चे न तो संकट ग्रस्त हो और न ही खेत में काम करने वाले। यह तथ्य भी है कि जुलाई माह सापों के अंडे बच्चे देने का होता है।
Comment
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online