(15 अगस्त पर विशेष)
हर प्राचीर पर लहराता तिरंगा भारत की स्वतंत्रता की गाथा को दोहरा रहा है। स्वतंत्र्ाता सबको मिले। हमें बहुत कुछ मिला है। लेकिन क्या यह बहुत कुछ हम सभी भारतवासियों ने पाया है? मिलने और पाने में बहुत अंतर है।
देश में दो बार परमाणु परीक्षण किए गए तो बाबरी मस्जिद का विध्वंस और उसके बाद देश भर में फैली हिंसा ने भी हमें यह सोचने पर विवश किया कि क्या साम्प्रदायिकता के आधार पर देश के विभाजन के बाद भी हमने इससे कोई सबक लिया? गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा देश झेल चुका है वह अभी भी इस रफ्तार से बढ़ रहा है कि राजनीतिज्ञों के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य भी दो अलग-अलग हिस्सों में बँट चुका है।
सेना के बल पर हम इसे एक बनाए रखने में सक्षम हैं लेकिन घाटी के मु्स्लमिों का मुजफ्फराबाद की ओर कूच करना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अलगाववाद इस हद तक बढ़ चुका है कि देश के विभाजन के लिए पाकिस्तान की आईएसआई जैसी बदनाम एजेंसी को कोई खास कोशिश करने की जरूरत नहीं है क्योंकि देश बाँटने के लिए हमारे अपने राजनीतिज्ञ ही काफी हैं।
आइए इस पर विचार करें.....
महिलाओं को रात..बिरात घूमने की स्वतंत्र्ाता, घर-घर जाकर काम करने वाली महिलाओं को सम्मान, चाय की गुमटी, ढाबे और दुकानों में काम करने वाले बच्चों को सामाजिक पहचान, गरीबों और पिछड़े वर्ग के लोगों को अपनी मर्जी का काम पाने की स्वतंत्र्ाता। अगर यह नहीं मिला तो स्वतंत्र्ा भारत के प्रति इतनी भावुकता निरर्थक है। क्या आप इस प्रकार की स्वतंत्र्ाता लाने के लिए कुछ मदद कर सकते हैं? भारत का लोकतंत्र्ा चीख-चीख कर कह रहा है। इसे सुनने के लिए केवल कानों की नहीं आंखों की भी जरुरत है! सुनना होगी अपने आसपास से आ रही वह पुकार जो बचपन की ठंडी धूप को भूलकर पेट भरने को रोटी तलाश रही है।
‘जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्दाअपि गरियसि‘ कवि दुष्यंत की ये पंक्तियां बताती है जननी और जन्मभूमि दोनों ही स्वर्ग से भी महान है। एक हमें जन्म देकर हमारे जीवन को धन्य बनाती है और एक सारा जीवन हमारा भार उठाती है। हमारी जन्मभूमि की स्वतंत्र्ाता के 100 वर्ष पूरे होने मंे अब केवल 39 वर्ष ही शेष रह गए हैं। स्वतंत्र्ाता के बाद के आंकड़े देखे जाएं तो भारत निरंतर विकास कर रहा है। हमारी जनसंख्या और युवा पीढ़ी ही आज के समय मंे हमारी सर्वोच्च शक्ति है। यही भारत को सुपर पावर के शिखर तक ले जाएगी।
धर्म के नाम पर टकराहट कोई नई बात नहीं है। मंदिर मस्जिद को लेकर या किसी अन्य धर्म के नाम पर। क्या हम पूरी तरह से धार्मिक रूप से स्वतंत्र हैं। अभी भी अनेक मंदिर मिल जाएँगे जहाँ निम्न जाति वर्ग के लोगों का जाना निषेध है।
आज स्वतंत्र कौन है? स्वतंत्रता का मतलब केवल दूसरे देश के शासक (अँग्रेज) देश छोड़कर चले गए इससे नहीं लगाया जाना चाहिए। यदि यही स्वतंत्रता है तो हमें कहना चाहिए कि शासन प्रणाली का हस्तांतरण कर चले गए। आज वही शासन देश के नेता चला रहे हैं।
63वां स्वतंत्र्ाता दिवस सोचकर ही हमारा मन गदगद हो उठता है कि अब 100 पूरे होने मंे 37 ही कम है। 1947 में जब हमे स्वतंत्र्ाता मिली उसे याद करते ही खुशी होने लगती है। यह खुशी और आनंद का पल हमें जिनके सौजन्य से प्राप्त हुआ वे वीर शहीद सदा ही स्मरण किए जाएंगे। जब भी हम स्वतंत्र्ाता की चर्चा करेंगे उन वीर शहीदों का सदैव कृतघ्न रहेंगे। हमारा देश और आने वाली पीढ़ी ऋण है, उन शहीदों की जिन्होंने अपनी अंतिम सांस न्यौछावर करके हमें यह शुभ दिन दिखलाया।
यदि हम भारतीय स्वतंत्र्ाता के 50 वर्षो का मूल्यांकन करें तो पाएंगे कि इस बीच अनेक उतार-चढ़ाव आए और जनता ने खट्टे-मीठे अनुभव किए। उनसे देश ने प्रगति भी की और बहुत कुछ सीखा भी। उत्तरोत्तर विकास से यह ज्ञात होता है कि 100 वर्षो की स्वतंत्र्ाता पूरी होते तक भारत विश्व शिखर पर होगा। इसके लिए प्रत्येक भारतवासी को ’देश प्रेम की भावना’ के साथ कार्य करना होगा। यहाँ मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियाँ प्रभावशाली होगी-
है भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमंे रस धार नहीं।
वह ह्रदय नहीं, वह पत्थर हैं, जिसमंे स्वदेश का प्यार नहीं।।
कवि का यहाँ तात्पर्य है कि जब तक प्रत्येक ह्रदय जो देश के प्रति सत्य और निष्ठा से समर्पण नहीं करेगा। ’देश प्रेमी’ नहीं होगा। अतः हम सभी को निजस्वार्थ से ऊपर उठकर देश के विकास मंे सहभागी होना होगा। देश का विकास तभी संभव होगा।
भारतीय स्वतंत्र्ाता के सूत्र्ाधार महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु , सुभाषचंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, भगतसिंह, सरदार पटेल, चंद्रशेखर आजाद आदि सभी देशप्रेम के वे सच्चे वीर थे जिन्होंने स्वतंत्र्ाता की मुहिम मंे अपने स्वार्थ को कभी आड़े नहीं आने दिया। गांधीजी जहाँ सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। वहीं भगतसिंह, सुभाष चंद्रबोस और आजाद क्रांति के द्वारा ब्रिटिश राज्य से छुटकारा पाना चाहते थे। किंतु सभी का उद्देश्य एक ही था।
देश प्रेम के साथ स्वअनुशासन, दृढ़संकल्प तथा कर्तव्यनिष्ठा का सीधा संबंध है। जब प्रत्येक भारतीय इन तीनों का पालन करेगा तो भारत को विश्व मंे प्रथम स्थान प्राप्त करने में कुछ ही वर्ष लगेंगे। स्वतंत्रता का मतलब है जो हम अपने लिए नहीं चाहते वह दूसरों के लिए भी न करें। जातिगत आधार पर आरक्षण का ही मुद्दा लें। सरकार घोषणा कर देती है। चाहे वह अन्य पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति पैसे वाले घर से हो और उच्च जाति का गरीब घर से हो। यह समानता तो हुई ही नही। आरक्षण के पक्षधर और इसकी मुखालिफत करने वाले दोनों आमने-सामने हो जाते हैं।
स्वतंत्र्ाता हमंे जो विरासत मंे प्राप्त हुई है इसे सुरक्षित रखने के लिए हमें सबसे पहले स्वयं को नियंत्र्ाित कर सामाजिक बुराइयों का अंत करना होगा । दिनों दिन बढ़ते व्यभिचार और दुर्व्यसनों से समाज टूट रहा है। इससे हमारा समाज आंतरिक रुप से कमजोर हो रहा है। सच्चा देश प्रेम तभी प्रकट होगा जब समाज की इन आंतरिक बुराइयों को कम करने के लिए प्रयासरत रहेंगे। युवा पीढ़ी मंे उत्साह की कोई कमी नहीं है, सिर्फ कमी है तो धैर्य, उचित मार्गदर्शन और समय की अहमियत समझने की। समय का सदुपयोग करने की बात हर स्थान पर समान महत्व रखती है। कबीर की ये पंक्तियाँ आज भी उतनी प्रभावशाली हैं। “काल करै सो आज कर,आज करै सो अब। पल मंे परलय होयेगा, बहुरि करेगा कब।“
इसका तात्पर्य यह है कि समय के रहते ही हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। अपने शिक्षक और माता-पिता का सम्मान करते हुए धैर्य पूर्वक अपने कार्यो को पूरा करे।
भारत में स्वतंत्र्ाता के बाद हर क्षेत्र्ा मंे उत्तरोत्तर उन्नति की है। देश में एकता बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास किए जा रहे है। अनेक जाति और धर्मो के लोग यहाँ आपसी मेलजोल के साथ रह रहे हैं यहाँ अयोध्या राम मंदिर, बाबरी मस्जिद तथा आरक्षण से जुड़े हुए विवाद हुए, उसके बाद भी हमारी एकता और अखंडता बनी हुई है। यह हमारी एकता और भाईचारे का प्रमाण है।
देश में समानता लाने के लिए राष्ट्रीय कानून की आवश्यकता है जो सभी भारतवासियों को समानरुप से नियंत्र्ाित करें। स्वतंत्र्ाता का तात्पर्य यह नहीं है कि व्यक्ति अपने अधिकारों का दुरुपयोग करे और देश की प्रगति मंे बाधक बने। आज हम जिस युग मंे साँस ले रहे हैं, वह गतिशीलता से भरपूर युग है। कम्प्यूटर ऐसा यंत्र्ा है, जो हमारे विकास की बागडोर को थामकर तीव्रता से आगे बढ़ रहा है। खाद्य पदार्थो के क्षेत्र्ा से लेकर रेल्वे और हवाई जहाज के क्षेत्र्ा तक कम्प्यूटर का महत्व छा रहा है। परंतु हमंे इसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।युवाओं को कम्प्यूटर के गलत धंधों से बचना चाहिए तभी देश प्रगति कर सकेगा।
आधुनिक शóों से लैस सैनिक हमारे देश की सुरक्षा के कर्णधार है। उत्तरोत्तर उन्नति के साथ हमारी सेनाएं देश की सुरक्षा मंे सीना तानकर डटी हुई हैं। आज हमारे देश के सर्वोच्च पद की कमान एक महिला के हाथों मंे है। यह हमारे देश की उत्तरोत्तर प्रगति का सबसे बड़ा सबूत है। प्रतिभा पाटिल भारती की प्रथम नागरिक है। वे राष्ट्रपति पद के लिए सर्वसम्मति से चुनी गई है। इसके साथ ही सोनिया गांधी, मल्लिका साराभाई, किरण बेदी, बछेन्द्री पाल पर्वतारोही, सानिया मिर्जा आदि अन्य क्षेत्र्ाों मंे अग्रणी महिलाएँ हमारी विकास लीला का बखान करती हैं।
इस स्वतंत्र्ाता और निरंतर विकास को सजीव करने के लिए हमारी युवा पीढ़ी को सही मार्गदर्शन देकर सत्ता की बागडोर देना आज के सत्ता संचालकों और सत्ताधारकों के साथ ही समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों की भी जिम्मेदारी हैं। आज हम 63वां स्वतंत्र्ाता दिवस मनाते हुए यह दृढ़ निश्चय करें कि सामाजिक बुराइयों का दमन करते हुए देश के विकास और एकता अखंडता के पथ की दीप्तमान करेगी।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लेकिन यदि देश का एक नागरिक वोट डालने में असमर्थ रह जाता है। तो मैं समझता हूँ कि उसके लिए तो इस लोकतंत्र के कोई मायने ही नहीं रह जाते। जब तक इस स्वतंत्रता का लाभ कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुँच जाता, तब तक इस स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं है। आज देश की आबादी का कितना ही बड़ा हिस्सा होगा जिससे पूछें कि हमारे देश का नाम क्या है? या फिर यह भारत क्या है। निश्चित रूप से नहीं बता पाएगा।
स्वतंत्र्ाता दिवस पर सभी भारतवासियों को बधाई।
रवीन्द्रनाथ टैगौर की कविता
जहाँ हृदय में निर्भयता है और मस्तक अन्याय के सामने नहीं झुकता,
जहाँ ज्ञान का मूल्य नहीं लगता,
जहाँ संसार घरों की संकीर्ण दीवारों में खंडित और विभक्त नहीं हुआ,
जहाँ शब्दों का उद्भव केवल सत्य के गहरे स्रोत से होता है,
जहाँ अनर्थक उद्यम पूर्णता के आलिंगन के लिए ही भुजाएँ पसारता है,
जहाँ विवेक की निर्मल जल-धारा पुरातन रूढ़ियों के मरुस्थल में सूखकर लुप्त नहीं हो गई,
जहाँ मन तुम्हारे नेतृत्व में सदा उत्तरोत्तर विस्तीर्ण होने वाले विचारों और कर्मों में रत रहता है,
प्रभु उस दिव्य स्वतंत्रता के प्रकाश में मेरा देश जागृत हो !
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