Comment
देख लुटाने को सूरज अब खोल रहा है अपना पिटारा,
पाने की तू कोशिश कर ले, पा जाएगा तू भी सितारा.
vah kya bat hain
वाह बहुत खूब कविता लिखी हे आपने बधाई स्वीकार करे
जग जाएगा तो पायेगा जग में सुन्दर अमूल खजाना,
सोकर खोकर समय चूकि फिर रह जाए पीछे पछताना .
समय के रहते जाग, की अपना हिस्सा ले तू आज,
मुसाफिर तू भी जग जा, हो मुसाफिर तू भी जग जा..
bahut hi badhiya ashish ji...bahut bahut badhai aapko is rachna per..
bahut hi sundar,manmohak
dhanyabad
अनवरत ये चलती नदिया, कह रही है चलता जा,
काम अभी तू कर ले अपना आगे का है भरोषा क्या?
श्रम से मिलता सुख, जो सोये पता है वो दुःख.
मुसाफिर तू भी जग जा, हो मुसाफिर तू भी जग जा,
बहुत बढ़िया आशीष जी , शुक्रिया
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online