मैं कौन हूँ ?
अनंत आकाश या अन्तरिक्ष का मौन हूँ
धरती का श्रृंगार हूँ पाताल का आधार हूँ
पर्वतों में हूँ शिखर पाषाण में भगवान हूँ
नदियों का पाट हूँ निर्बाध उसका बहाव हूँ
झरने सा पतन मेरा झर झर आवाज हूँ…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 27, 2012 at 6:29pm — 11 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 27, 2012 at 5:30pm — 10 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 27, 2012 at 5:30pm — 2 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 27, 2012 at 5:00pm — 12 Comments
Added by kavita sinha gupta on April 27, 2012 at 4:30pm — 4 Comments
माधुर्य
(वाणी का माधुर्य)
वाणी का माधुर्य-
देता है जीवन को विस्तार
जहाँ प्रेम है
वहां लेन-देन नहीं है
देना ही देना है
कोई व्यापार नहीं है |
.…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 27, 2012 at 4:00pm — 6 Comments
'ग़ज़ल'
दुआओं से किसी की फल रहा हूँ
निगाहों में तुम्हारी खल रहा हूँ
किसी को भी नहीं मैं छल रहा हूँ
न तो रहमोकरम पर पल रहा…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on April 27, 2012 at 1:00pm — 15 Comments
कुछ खरी-खरी
Added by rajesh kumari on April 27, 2012 at 12:00pm — 14 Comments
आखिर पुलिस ने उस दुर्दांत आतंकवादी को मार गिराया, उसे मार गिराने वाले पुलिस अफ़सर की बहादुरी की भूरि भूरि प्रशंसा हो रही थी तथा उसके लिए बड़े बड़े सम्मान देने की घोषणाएं भी हो रहीं थी. मीडिया का एक बड़ा दल भी आज उसका साक्षात्कार लेने आ रहा था. इसी सिलसिले में वह बहादुर अफ़सर तैयारियों का जायजा लेने पहुँचा.
"सब तैयारियां हो गईं?" उसने एक अधीनस्थ से पूछा
"जी सर !"
"क्या किसी ने लाश की शिनाख्त की:"
"नहीं सर, चेहरा इतनी बुरी तरह से…
Added by योगराज प्रभाकर on April 26, 2012 at 12:13pm — 39 Comments
मैं हूँ स्वछन्द ,नीर की बदरी, जहां चाहे बरस जाऊँगी …
ContinueAdded by rajesh kumari on April 26, 2012 at 9:00am — 13 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 26, 2012 at 7:00am — 20 Comments
पेश है हाइकु....
Added by AVINASH S BAGDE on April 25, 2012 at 1:12pm — 13 Comments
लघु कथा :- गिद्ध…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 11:46am — 42 Comments
कौन हूँ मैं...
_______
आज फिर से वो ही ख्याल आया हैं,
आत्मा से उभर के एक सवाल आया हैं,
कि मैं कौन हूँ...??
कौन हूँ मैं... ?
हैं रंगमंच जो दुनिया ये,
क्यूँ अपने किरदार को भूल रहा,
जीना था औरो की खातिर,
क्यूँ अपने दुखों में झूल रहा,
क्यूँ मुझमें हैं अनबुझी प्यास,
क्यूँ खुशियों को मैं ढूँढ रहा,
अनभिज्ञ हूँ…
Added by praveen on April 24, 2012 at 9:00pm — 10 Comments
ज्वालाशर छंद
१६ ,१५ पर यति अंत में दो गुरू (२२)
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संकीर्णताओं से बचाती, निष्काम कर्म भावना ही.
हो जायें प्रवृत्त मनुज सभी, अधार हो सदभावना ही.
कर्तव्य का बस बोध होवे,इच्छा न कुछ पाने की हो,
संकल्पना कहती सदा ये,आशा सुधर जाने की हो.
कोई मार्ग खोजें मुक्ति का,आशय जीवन का यही है.
सद्कर्म से सम्भव बने यह,विचार दर्शन का सही…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 23, 2012 at 3:30pm — 14 Comments
आगॆ बढ़ कॆ बता,,,,
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हिम्मत है तॊ आगॆ बढ़ कॆ बता ॥
बिहार वाली ट्रॆन मॆं चढ़ कॆ बता ॥१॥
बिना टिकट गांव चला जायॆगा,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 23, 2012 at 1:30pm — 28 Comments
पतंगों को यूँ ढील मत देना.
Added by AVINASH S BAGDE on April 23, 2012 at 10:10am — 10 Comments
दोहा सलिला:
अंगरेजी में खाँसते...
संजीव 'सलिल'
*
अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..
*
टेबल याने सारणी, टेबल माने मेज.
बैड बुरा माने 'सलिल', या समझें हम सेज..
*
जिलाधीश लगता कठिन, सरल कलेक्टर शब्द.
भारतीय अंग्रेज की, सोच करे बेशब्द..
*
नोट लिखें या गिन रखें, कौन बताये मीत?
हिन्दी को मत भूलिए, गा अंगरेजी गीत..
*
जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.
जिस भाषा में…
Added by sanjiv verma 'salil' on April 23, 2012 at 7:10am — 15 Comments
ज़िन्दों और परिंदों का बस एक ही पहचान है.
ना ही थकना, ना ही रुकना बस और बस उड़ान है.
एक जगह जो रुक गया तो रुक गया उसका सफ़र.
इसलिए ही अब तो मंजिल रोज़ एक मुकाम है.
कौन कहता है जहां में ज़िंदा रहना है कठिन.
आदमी में है ही क्या एक जिस्म और एक जान है.
मौसमे बारिश गिरा देता है कितने आशियाँ .
हिम्मते मरदा है जो कि हर तरफ मकान है.
ज़िन्दगी में जंग ना तो क्या मज़ा मापतपुरी.
ज़िन्दगी खुद में ही तो एक जंग का एलान है.
----- सतीश मापतपुरी
Added by satish mapatpuri on April 23, 2012 at 3:58am — 10 Comments
इतनी रात गयॆ,,,
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इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं, एकांकी आना ठीक नहीं ॥
आयॆ हॊ तॊ ठहरॊ रात गुज़रनॆ दॊ, अब वापस जाना ठीक नहीं ॥
मिलना चाहा तुमसॆ पर,आस अधूरी रही…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 22, 2012 at 6:30pm — 12 Comments
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