For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इतनी रात गयॆ,,,
-------------------
इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं, एकांकी आना ठीक नहीं ॥
आयॆ हॊ तॊ ठहरॊ रात गुज़रनॆ दॊ, अब वापस जाना ठीक नहीं ॥

मिलना चाहा तुमसॆ पर,आस अधूरी रही सदा,
जी रहा पपीहा बनकर,प्यास अधूरी रही सदा,
ऋतुऒं का यौवन बीता,फ़िर भी न आयॆ तुम,
पतझड़ कॆ मौसम मॆं,स्नॆह निमंत्रण लायॆ तुम,

इन चातक नयनॊं कॊ हॆ चंद्रमुखी, इतना भी तरसाना ठीक नहीं ॥१॥
इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मॆरी दिन-चर्या मत पूंछॊ, तन्हाई का बादशाह हूं,
यादॊं कॆ सागर का माझी, पीड़ाऒं का शहंशाह हूं,
घनॆ अंधॆरॊं कॆ आंगन सॆ,अब मॆरा गहरा नाता है,
इन चौबंद घिरी दीवारॊं मॆं,रहना मुझकॊ भाता है,

इस थकॆ पथिक की पलकॊं सॆ, बॊझिल नींद चुराना ठीक नहीं ॥२॥
इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

अपनॆ हाल सुनाऒ बॊलॊ, भूली-बिसरी सब बातॆं,
कैसॆ कटतॆ थॆ तन्हा दिन,कैसॆ कटती थीं वॊ रातॆं,
जॊ फुलवारीं सींची थी हम नॆ, क्या वह फूल गईं,
याद तुम्हॆं है वॊ अमराई, या सारी बातॆं भूल गईं,

अपना कह कर अपनॊं सॆ फिर, कॊई बात छुपाना ठीक नहीं ॥३॥
इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

शब्द-शब्द धागॆ मॆं गॊया, तब तॆरा जन्म हुआ है,
आंखॊं सॆ खारा जल बॊया,तब तॆरा जन्म हुआ है,
करुणा की चादर मॆं सॊया,तब तॆरा जन्म हुआ है,
पीड़ाऒं कॊ कांधॆ मॆं ढ़ॊया,तब तॆरा जन्म हुआ है,

ऎ सुन्दरता की कल्पज काया, इतना भी इतराना ठीक नहीं ॥४॥
इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

दॆश काल का डर कैसा,सुख-दुख की परवाह नहीं,
सुविधाऒं सॆ मॊह नहीं, मुक्ति-भॊग की चाह नहीं,
नहीं सूर्य मॆं तॆज यहां, जला सकॆ जॊ मॆरा अक्षर,
नहीं प्रलय मॆं वॊ वॆग, हिला सकॆ जॊ मॆरा अक्षर,

मिथ्या कॊशिश कर शब्द-स्वयंभू का,सत्य डिगाना ठीक नहीं ॥५॥
इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

तॆरा कॊई नाम नहीं है,मॆरा ही नाम मिला तुझकॊ,
जीवन कॆ कंटक-पथ पर, लॆकर संग चला तुझकॊ,
माना श्रृष्टि कॆ आदि अंत,तक तॆरा ठौर-ठिकाना है,
मै कवि तू मॆरी कविता,अपना यह संबंध पुराना है,

सॊ जाऒ हॆ शब्द-सुंदरी अब, ज्यादा बात बढ़ाना ठीक नहीं ॥६॥
इतनी रात गयॆ सपनॊं की नगरी मॆं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

     कवि-राज बुन्दॆली
      २२/०४/२०१२

Views: 693

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on April 26, 2012 at 2:06am

छॊटू सिंह जी,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,आभार,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on April 25, 2012 at 2:23am

Arun Kumar Pandey 'Abhinav',,,,,,किन शब्दो मे आपका शुक्रिया अदा करूं शब्द ही कम पड़ गये है,,,,आभार ,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on April 25, 2012 at 2:21am

PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA,,,,प्रणाम आपको,,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on April 24, 2012 at 1:49pm

वन्दना जी,,,,,,नारी शक्ति को इस नाचीज़ का प्रणाम,,,,,,बहुत बहुत आभार आपका,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on April 24, 2012 at 1:48pm

प्रदीप सिंह जी,,,,,प्रणाम आपको ,,,,आशीष बनाये रखिये,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on April 24, 2012 at 1:47pm

अभिनव जी,,,किन शब्दो में आपका शुक्रिया अदा करूं मेरे पास शब्द-कोष कम पड़ रहा है,,,,,

इतना ही कहूंगा कि ये स्नेह हमेशा बरसाते रहिये,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,

Comment by Abhinav Arun on April 24, 2012 at 12:51pm

दॆश काल का डर कैसा,सुख-दुख की परवाह नहीं,
सुविधाऒं सॆ मॊह नहीं, मुक्ति-भॊग की चाह नहीं,
नहीं सूर्य मॆं तॆज यहां, जला सकॆ जॊ मॆरा अक्षर,
नहीं प्रलय मॆं वॊ वॆग, हिला सकॆ जॊ मॆरा अक्षर,

कवि जी आपके शब्द प्रवाह और भाव संयोजन के क्या कहने बहुत मधुर भाव भूमि की रचना हार्दिक बधाई !!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 24, 2012 at 12:36pm

पतझड़ कॆ मौसम मॆं,स्नॆह निमंत्रण लायॆ तुम,

आदरणीय राज जी, सादर अभिवादन, 
इतने सुन्दर भावों की माला. क्या कहना. बधाई.


Comment by कवि - राज बुन्दॆली on April 24, 2012 at 2:14am

शैलेन्द्र सिंह जी,,,,आभार आपका,,,,,,,,,,,

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 23, 2012 at 10:49pm

खूबसूरत कृति पर बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, यक़ीन मानिए मैं उन लोगों में से कतई नहीं जिन पर आपकी  धौंस चल जाती हो।  मुझसे…"
22 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय मैं नाम नहीं लूँगा पर कई ओबीओ के सदस्य हैं जो इस्लाह  और अपनी शंकाओं के समाधान हेतु…"
23 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय  बात ऐसी है ना तो ओबीओ मुझे सैलेरी देता है ना समर सर को। हम यहाँ सेवा भाव से जुड़े हुए…"
23 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय, वैसे तो मैं एक्सप्लेनेशन नहीं देता पर मैं ना तो हिंदी का पक्षधर हूँ न उर्दू का। मेरा…"
23 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, मैंने ओबीओ के सारे आयोजन पढ़ें हैं और ब्लॉग भी । आपके बेकार के कुतर्क और मुँहज़ोरी भी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन, ' रिया' जी,अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया आपने, विद्वत जनों के सुझावों पर ध्यान दीजिएगा,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन,  'रिया' जी, अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया, आपने ।लेकिन विद्वत जनों के सुझाव अमूल्य…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल का आपका प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा, बंधु! वैसे आदरणीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई "
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदाब, 'अमीर' साहब,  खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने ! और, हाँ, तीखा व्यंग भी, जो बहुत ज़रूरी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"1212    1122    1212    22 /  112 कि मर गए कहीं अहसास…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service