For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गंग नहाये जात हैं,दूर करै तन पाप।
जौ उनका पापी कहौं,क्योंकर हो संताप॥

माँ पत्नी भगिनी चहौं,ममता सेवा प्यार।
बेटी जनकर दुखी क्यों,हो जाते सरकार॥

आशा मन अच्छा करैं,लोग बाग बर्ताव।
क्यों रखते कुछ एक से,निज मन में दुर्भाव॥

अनुशासन जन में रहे,बना देश कानून।
क्यों होता है तब यहां,रोज कत्ल कानून॥

अंधे से नहि पूछते,बुरे भले की बात।
अंधा तो कानून भी,शरण चले क्यों जात॥

ललचाइ अंखियां लखै,तिरिया बेटी आन।
जौ कोई इनकै लखै,कांहे कहौ पिरान॥

भारत भ्रष्टाचार में,डूबै औ उतराय।
रहा धर्म अवलम्ब जो,निर्मल राखिन नाय॥

Views: 711

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on May 2, 2012 at 9:27pm
मृदु की मृदता देखि के,मन में खुशी अपार।
आप सराहे काव्य को,हार्दिक सर आभार॥
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on May 2, 2012 at 9:19pm
खरी कसौटी आपकी,निखरा दोहा रूप।
अम्बरीष गुण यों गहे,जैसे सच्चा सूप॥

अम्बरीष सर की कृपा,दोहा शिल्प कसाय।
गुरुता राखी गुरुन की,सिष सच बोध कराय॥

आप कहें मैं ना करूं,नामुमकिन इ बाय।
एक बार बस करि कृपा,हमका दियो बताय॥

अम्बरीष सर आपने,दोहा कमी सुधार।
उपकृत मुझको कर दिया,बहुत बहुत आभार॥
Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 30, 2012 at 12:24pm

सुन्दर दोहे सुदृढ़ भावाभियक्ति बधाई स्वीकार करें

Comment by Er. Ambarish Srivastava on April 29, 2012 at 12:08am

कहाँ  सुधारें शिल्प को, हमने दिया सुझाय|

प्रभुजी  इच्छा आपकी, 'हाय' कहें या 'बाय'||

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 27, 2012 at 9:09pm
रचना अच्छी या नहीं,बना शिल्प है नाय।
आप सराहिन वन्दना,जी का ई कम बाय॥
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 27, 2012 at 9:02pm

प्रभु हार्दिक आभार है,देखा रचना धार।
सब राउर आशीष है,भ्राता अरुण कुमार॥

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 27, 2012 at 8:54pm

धन्य भयो विन्ध्येश्वरी,वीनस सर आभार।
तव आशिष प्रभाव है,कवन बिसात हमार॥

Comment by Abhinav Arun on April 27, 2012 at 1:33pm

इन दोहों के ज़रिये आपका व्यंग्य धारदार बन पड़ा है आदरणीय श्री हार्दिक बधाई आपको !!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on April 26, 2012 at 11:43pm

भाई विन्ध्येश्वरी जी,

कथ्य शिल्प संमृद्ध है , लोक-नीति की बात.

दोहे मन को भा गए,        साधुवाद हे भ्रात..

_______________________________________________________________________

दोहों के सम्बन्ध में कुछ शिल्पगत सुझाव दे रहा हूँ ..........

//माँ पत्नी भगिनी चहौं,ममता सेवा प्यार।
बेटी जनी दुःखी क्यों,हो जाते सरकार॥//        २२ १२ १२ २  =१२ मात्रा अर्थात तृतीय चरण में एक मात्रा कम है

माँ पत्नी भगिनी चहौं,ममता सेवा प्यार।
बेटी जनकर क्यों दुःखी ,हो जाते सरकार||      यह मात्र सुझाव ही है सुधार आपको स्वयं ही करना है         

//आशा मन अच्छा करैं,लोग बाग बर्ताव।       तृतीय चरण में 'किसी' १२ के प्रयोग से सही गेयता नहीं आ पा रही है | इसके
क्यों रखते हैं किसी से,खुद ही मन दुर्भाव॥//    स्थान पर २१ अर्थात गुरु लघु वाला शब्द यथा 'एक' प्रयोग किया जा सकता है|

आशा मन अच्छा करैं,लोग बाग बर्ताव।      
क्यों रखते कुछ एक से,खुद ही मन दुर्भाव||    

//ललचा अंखियां लखै,तिरिया बेटी आन।       प्रथम चरण में एक मात्रा कम है
जौ कोई इनकै लखै,कांहे कहौ पिरान॥//

ललचाई अँखियां लखै,तिरिया बेटी आन।               
जौ कोई इनकै लखै,काहे कहौ पिरान॥

//भारत भ्रष्टाचार से,डूबै औ उतराय।                 प्रथम चरण  में  'से' के स्थान पर कृपया 'में' का प्रयोग करके देखें !
रहा धर्म अवलम्ब यक, निर्मल राखिन नाय//     एवं तृतीय चरण में 'यक' के स्थान पर 'सो' का प्रयोग करके देखें !

भारत भ्रष्टाचार में ,डूबै औ उतराय।                        
रहा धर्म अवलम्ब सो , निर्मल राखिन नाय||

सस्नेह

Comment by वीनस केसरी on April 26, 2012 at 10:19pm

बहुत बढ़िया विन्धेश्वरी जी आपको विविध छंदों पर काम करते देख दिल को सुकून प्राप्त होता है

सुन्दर दोहे हैं
बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
1 hour ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
17 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service