नेता की शादी में
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नेता की शादी में
गरीब भी आये
पानी भरे -अंखियों से
लड्डू- मन में खाए !
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डांट खाए दुत्कार
कुत्ते के पीछे वे
गालियों का प्रसाद
झोली भर लाये !
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चकाचौंध फुलझड़ी
नींद में सताए
बिटिया जवान हुयी
कब तक छिपाए !
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बेटे ने देख लिया
नेता का डेरा
मोह हम से कम हुआ
छोरा-छिछोरा !…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 19, 2012 at 10:00pm — 19 Comments
"माँ" को शब्दों मे बयां करना नामुमकिन है,
पर कुछ एहसासों को अल्फ़ाज़ मे पिरोने की कोशिश की है,
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जब कभी मुझ पे मुसीबत ये हवा लाती हैं,
तब बचा के मुझे बस माँ की दुआ लाती हैं ।
देख लेती है अगर धूप मे चलता मुझको,
दौड़ कर साये मे वो मुझको बुला लाती है ।
माँ की लोरी के वो अल्फ़ाज़ मुझे याद हैं…
ContinueAdded by D.K.Nagaich 'Roshan' on May 19, 2012 at 8:00pm — 27 Comments
जिंदगी रूठ के मुझसे कहीं खोई होगी
तकिये में मुंह छिपाकर रोई होगी
जल गई थी जो अरमानों की फसल
यंकी नहीं कि फिर से बोई होगी
बढ़ गई होंगी जब दिल की बेताबियाँ
टूटी मेरी तस्वीर फिर संजोई होगी
मैं जानता हूँ हाल इस वक़्त भी उसका
शबनम ओढ़ के पलकों पे सोई होगी
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Added by rajesh kumari on May 19, 2012 at 6:21pm — 25 Comments
लघुकथा :- चिंगारी …
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 19, 2012 at 1:00pm — 53 Comments
क्यूँ तेरा अब, तुझी पे इख्तियार नहीं?
कठपुतली बना, पर सोगवार नहीं ?
मेहनत पसीने की रोटियाँ तो तोड़
कि साथ देता ज़माना, हर बार नहीं
ज़मीर तो होगा ही दामन में तेरे
शोहरत न रहे, तू खतावार नही
वो छीन लेंगे तेरी आँखों का पानी
टिकती है खुदाई, कोई किरदार नहीं
खबरों में है पर दिलों में कहाँ
तू अपने ही खातिर, वफादार नहीं
Added by Nilansh on May 19, 2012 at 11:00am — 13 Comments
पौधा था छोटा था
लगता था अब गया तब गया
कभी बारिश की बुँदे
सुहानी लगती थी
कभी लगता डूब गया डूब गया,
हिम्मत करके टहनियां बढ़ाई,
नयी कोपलें बिखराई,
अब गगनचुम्बी वृक्षों को
छूने लगी टहनियां,
लगा मै भी खडा हो गया खडा हो गया,
मगर पुष्पों के खिलने तक
अहसास नहीं हो पाया बड़ा होने का,
फलों से लदते ही लगा
मै बड़ा हो गया बड़ा हो गया,
मै भूल गया
वो छुटपन का अहसास
ना डर रहा कुछ खोने का
ना उत्साह और कुछ पाने का,
दे रहा हूँ आश्रय आने जाने…
Added by Ashok Kumar Raktale on May 19, 2012 at 9:00am — 20 Comments
रात आती है तेरी यादें सुहानी लेकर।
फिर मोहब्बत की वही बातें पुरानी लेकर॥
ख़्याल जब तेरा सताता है मुझे रातों को,
सिसकियाँ लेता हूँ मैं आँखों में पानी लेकर॥…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 19, 2012 at 12:30am — 14 Comments
आत्मावलोकन के क्षणों में
मन मेरे
जब तू जूझता
डूबता , उतराता
फिर थक के बैठ
किनारे सुस्ताता है
औ तब ये सब
देख रही होती हैं
मेरी आँखे
सबसे परे
उन सारे पलों को
तुझे जीते हुए
औ तभी
विहँस पड़ती हैं
उसी क्षण
जब उनमें से
चुन लेता है तू
एक मोती
18th May2012
Added by MAHIMA SHREE on May 18, 2012 at 10:10pm — 22 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 18, 2012 at 2:41pm — 7 Comments
(1)
जो ग़ालिब थे , मेरे जैसी ही उन पर भी गुज़रती थी,
अगर और जीते वो तो उनको क्या मिला होता....
डुबोया हम दोनों को अपने अपने जैसे होने ने,
वो न होते तो क्या होता , मैं न होती तो क्या…
Added by Sarita Sinha on May 18, 2012 at 2:30pm — 20 Comments
मेरे बड़े भाई का लीवर ट्रांसप्लांट आपरेशन गुडगाँव मेदान्ता अस्पताल में है| खून की जरूरत है वे वार्ड में एडमिट हैं| गुडगाँव, दिल्ली, नोयडा व् आस-पास रहने वाले सभी सुधी ब्लॉगर बंधुओं और मित्रों से अपील है कि यदि संभव हो तो मेरे बड़े भाई की जीवन रक्षा हेतु रक्तदान करें । हम आजीवन आपके आभारी रहेंगे । यहाँ पर मैं परम मित्र भाई सन्तोष जी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने आज अपने पांच मित्रो के साथ पहुंचकर रक्तदान किया। अभी भी लगभग 30 यूनिट रक्त रक्त की आवश्यकता है । धन्यवाद चातक…
ContinueAdded by Chaatak on May 18, 2012 at 2:17pm — 7 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 18, 2012 at 11:00am — 15 Comments
1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
उसी की…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 10:32pm — 6 Comments
कमी है कौन सी कुदरत के कारखाने में ,
उलझ के रह गया इन्सान जो आबो -दाने में .
वोह जिसके दम से उजाला है मेरी आँखों में ,
उस्सी की आज कमी है गरीब खाने में .
मेरे नसीब में लिखी है ठोकरे शयेद ,
जो भूल बैठा हूँ तुझको भी इस ज़माने में .
समझ रहा था जिसे मै गरीब परवर है ,
उस्सी ने आग लगे है आशियाने में .
हटा जो मर्कज़े हस्ती से देखीय "रिज़वान",
भटक रहा है वही दरबदर ज़माने में .
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 17, 2012 at 10:00pm — 8 Comments
Added by vivek mishr on May 17, 2012 at 9:30pm — 8 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 17, 2012 at 12:30pm — 23 Comments
सामने है खड़ी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे।
रास्ता हो गया दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे॥
अब तो हर चीज़ जुदाई में बुरी लगने लगी,
फूल भी लगने लगे ख़ार ख़ुदा ख़ैर करे॥…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 10:00am — 13 Comments
तुझे तो देख के जोरों से मेरा दिल धडकता है
जिये पानी बिना मछली के जैसे मन तडपता है
जिगर को थाम के बैठूं मैं अक्सर सामने तेरे…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 10:00am — 17 Comments
अरबों माल डकार के राजा जी गै छूट।
जनहित में संदेश है लूट सके तो लूट।।
निकले जब वो जेल से यूँ दिखलाया रंग।
अभिवादन थे कर रहे जीत लिया ज्यों जंग।।
बाहर आकर वायु मे चुम्बन रहे उछाल।
इतने घृणीत कर्म का कोई नही मलाल।।
हर्षित चेलाराम के जमीं न पड़ते पाँव।
बेशरमी रख ताख पे खुश हो करते काँव।।
झिंगुर घुरवा से कहे "जितबे तुहीं चुनाव।
कट्टा पिस्टल साथ हैं डर जइहैं सब गाँव"।।
आशीष यादव
Added by आशीष यादव on May 17, 2012 at 9:00am — 22 Comments
दिल मेरा फिर से सितमगर तलाश करता है।
आईना जैसे के पत्थर तलाश करता है॥
एक दो क़तरे से ये प्यास बुझ नहीं सकती,
दिल मेरा अब तो समंदर तलाश करता…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 16, 2012 at 2:00pm — 16 Comments
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