Added by AK Rajput on November 27, 2011 at 9:30am — 5 Comments
राणा प्रताप काव्य पाठ करते हुए
…
ContinueAdded by वीनस केसरी on November 26, 2011 at 11:37pm — 5 Comments
कविता
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on November 26, 2011 at 2:36pm — 3 Comments
आज भी बदक़िस्मती का वो ज़माना याद है ।
एक ज़वा बेटे का दरया डूब जाना याद है ।
क्या सुनाए कोई नग़मा क्या पढ़ें अब हम ग़ज़ल,
ग़म में डूबा ज़िन्दगी का बस फसाना याद है ।
जश्ने-होली खो गई दीवाली फीक़ी पड़ गई,
अब फ़क़त हर साल इनका आना-जाना याद है ।
सोचते थे अब तलक़ वो छुप गया होगा कहीं,
लौट कर आया नहीं उसका बहाना याद है ।
कर रहे थे बाग़बानी हम बड़े ही प्यार से,
आज भी…
Added by Afsos Ghazipuri on November 26, 2011 at 8:08am — 2 Comments
Added by Shyam Bihari Shyamal on November 26, 2011 at 6:30am — 4 Comments
दुधवा के गैंडों को मिलेगी नयी पहचान
Added by D.P.Mishra on November 25, 2011 at 6:30pm — 1 Comment
छत पे उगे जो चाँद निहारा न कीजिए
सूरजमुखी का दिन में नज़ारा न कीजिए
महफ़ूज़ रह न पायेगी आँखों की रौशनी
दीदार हुस्ने-बर्क़ खुदारा न कीजिए
शरमा के मुँह न फेर ले आईना, इसलिये
ज़ुल्फ़ों को आइने में संवारा न कीजिए
ऐसा न हो कि ख़ुद को भुला दें हुज़ूर आप
इतना भी अब ख़याल हमारा न कीजिए
एहसा किसी पे कर के, किसी को तमाम रात
ताने ख़ोदा के वासते मारा न कीजिए
दिल जिस से चौक जाये किसी राहगीर का
अब उसका नाम ले…
Added by Afsos Ghazipuri on November 25, 2011 at 9:14am — 6 Comments
कवि ताक रहा है फूल
श्याम बिहारी श्यामल
अँटा पड़ा है
मटमैला आँचल सदी का
क्षत-विक्षत लाशों से
तब्दील हो रहे हैं
तेज़ी से…
Added by Shyam Bihari Shyamal on November 25, 2011 at 6:00am — 20 Comments
Added by rajkumar sahu on November 24, 2011 at 11:39pm — No Comments
पंचतारा होटलों की शानशौकत कुछ न भाई
बैरा निगोड़ा पूछ जाता किया जो मैंने कहा
सलाम झुक-झुक करके मन में टिप का लालच रहा
खाक छानी होटलों की चाहिए जो ना मिला
क्रोध में हो स्नेह किसका? कल्पना से दिल…
Added by LOON KARAN CHHAJER on November 24, 2011 at 6:00pm — 2 Comments
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विराम-चिह्न की आत्मकहानी, सुनें उसी की जुबानी ।
मैं विराम-चिह्न हूँ। कुछ विद्वान मुझे विराम चिन्ह या विराम भी बोलते हैं लेकिन मुझे कोई आपत्ति नहीं है। हाँ, एक बात मैं… |
Added by Prabhakar Pandey on November 24, 2011 at 3:30pm — 3 Comments
Added by Arun Sri on November 23, 2011 at 1:30pm — 3 Comments
ग़ज़ल :- अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी !
पेट की भूख का है बयाँ ज़िन्दगी ,
अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी |
सबसे आगे निकलने की एक होड़ है ,
जलती संवेदनाएं धुआँ ज़िन्दगी |
इस तमाशे की कीमत चुकाओगे क्या ,
हम हथेली पे…
ContinueAdded by Abhinav Arun on November 22, 2011 at 7:30am — 15 Comments
बस क़दमों की आहट आये' आने का' इमकान कहाँ,
ऐसे झूटे' ख्वाबों के सच होने का' इमकान कहाँ।
उम्मीदों के' बागीचे का' पत्ता पत्ता बिखर गया,
इस गुलशन में' फूलों के' फिर खिलने का' इमकान कहाँ।
दाना खाने' के चक्कर में' पंछी जो' उस पार गये,
खा पीकर भी वापिस उनके' आने का' इमकान कहाँ।
हाँ दौलत के' ढेर नहीं ये' माना माँ के आँचल में,
पर' दो वक्ता रोज़ी के ना' मिलने का' इमकान कहाँ।
डगमग होके' गोते खाए रूहें बाबा अम्मा की,
टूटी नय्या' पर…
Added by इमरान खान on November 21, 2011 at 11:00am — 4 Comments
मुक्तक:
भारत
संजीव 'सलिल'
*
तम हरकर प्रकाश पा-देने में जो रत है.
दंडित उद्दंडों को कर, सज्जन हित नत है..
सत-शिव सुंदर, सत-चित आनंद जीवन दर्शन-
जिसका जग में देश वही अपना भारत है..
*
भारत को भाता है, जीवन का पथ सच्चा.
नहीं सुहाता देना-पाना धोखा-गच्चा..
धीर-वीर गंभीर रहे आदर्श हमारे-
पाक नासमझ समझ रहा है नाहक कच्चा..
*
भारत नहीं झुका है, भारत नहीं झुकेगा.
भारत नहीं रुका है, भारत नहीं रुकेगा..
हम-आप मेहनती हों, हम-आप नेक हों…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 21, 2011 at 7:31am — 2 Comments
दोहा मुक्तिका
यादों की खिड़की खुली...
संजीव 'सलिल'
*
यादों की खिड़की खुली, पा पाँखुरी-गुलाब.
हूँ तो मैं खोले हुए, पढ़ता नहीं किताब..
गिनती की सांसें मिलीं, रखी तनिक हिसाब.
किसे पाता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब..
हम दकियानूसी हुए, पिया नारियल-डाब.
प्रगतिशील पी कोल्डड्रिंक, करते गला ख़राब..
किसने लब से छू दिया पानी हुआ शराब.
मैंने थामा हाथ तो, टूट गया झट ख्वाब..
सच्चाई छिपती नहीं, ओढ़ें लाख…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 20, 2011 at 11:53am — No Comments
तुमने कभी सुना है,
रात का शोर?
कभी सुने हैं
चीखते सन्नाटे?
जो सोने नहीं देते ।
बार बार एक ही
नाम पुकारते है |
और ये अंधेरा
जो शोर मचाता है
किसी की याद दिलाता है |
सन्नाटों को ये जुबान
किसने दे दी…
ContinueAdded by Vikram Srivastava on November 20, 2011 at 1:47am — No Comments
हुस्न मिल जायेगा पर नहीं सादगी.
Added by AVINASH S BAGDE on November 16, 2011 at 10:30am — No Comments
बचपन.
Added by AVINASH S BAGDE on November 12, 2011 at 9:00pm — 4 Comments
ये कैसा व्यापार हुआ,
दुश्मन सारा बाज़ार हुआ |
दिल लेकर दिल दे बैठे तो,
क्यूँ जग में हाहाकार हुआ|
…
Added by Vikram Srivastava on November 12, 2011 at 2:08am — 12 Comments
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