यह निर्विवादित सत्य है कि जिस प्रकार कोयले के हर टुकड़े मे हीरा नही होता उसी तरह हर बुद्धिजीवी मे कवि भी नही होता ? बहुत प्रयास के बाद हीरा मिलने पर जैसे कारीगर अपने कौशल से तराश कर ‘‘हीरा’’ बनाता है,…Continue
Started this discussion. Last reply by Abhinav Arun Dec 13, 2011.
वास्तविक कवि और शायर हम किसे कहेंगे, उन्हे जो मंचों पर बार-बार दिखाई देते हैं या उन्हें जो मंचों पर दिखने के लिए संघर्ष करते रहते हैं, या उन्हें जिन्हे मंचों पर न आने देने के लिए प्रयास करते हैं…Continue
Started this discussion. Last reply by Pallav Pancholi Nov 22, 2011.
Added by Afsos Ghazipuri
आज भी बदक़िस्मती का वो ज़माना याद है ।
एक ज़वा बेटे का दरया डूब जाना याद है ।
क्या सुनाए कोई नग़मा क्या पढ़ें अब हम ग़ज़ल,
ग़म में डूबा ज़िन्दगी का बस फसाना याद है ।
जश्ने-होली खो गई दीवाली फीक़ी पड़ गई,
अब फ़क़त हर साल इनका आना-जाना याद है ।
सोचते थे अब तलक़ वो छुप गया होगा कहीं,
लौट कर आया नहीं उसका बहाना याद है ।
कर रहे थे बाग़बानी हम बड़े ही प्यार से,
आज भी…
Posted on November 26, 2011 at 8:08am — 2 Comments
छत पे उगे जो चाँद निहारा न कीजिए
सूरजमुखी का दिन में नज़ारा न कीजिए
महफ़ूज़ रह न पायेगी आँखों की रौशनी
दीदार हुस्ने-बर्क़ खुदारा न कीजिए
शरमा के मुँह न फेर ले आईना, इसलिये
ज़ुल्फ़ों को आइने में संवारा न कीजिए
ऐसा न हो कि ख़ुद को भुला दें हुज़ूर आप
इतना भी अब ख़याल हमारा न कीजिए
एहसा किसी पे कर के, किसी को तमाम रात
ताने ख़ोदा के वासते मारा न कीजिए
दिल जिस से चौक जाये किसी राहगीर का
अब उसका नाम ले…
Posted on November 25, 2011 at 9:14am — 6 Comments
एक ग़ज़ल
आपका यूँ मुस्कुराना क्यों मुझे अच्छा लगा ?
एक होना, डूब जाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?
जब अकेले हैं मिले, दीवानगी बढ़ती गई,
सिर हिलाना, भाग जाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?
हाथ में मेरे, कलाई जब…
ContinuePosted on November 9, 2011 at 12:30am — 4 Comments
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