ग़ज़ल :- अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी !
पेट की भूख का है बयाँ ज़िन्दगी ,
अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी |
सबसे आगे निकलने की एक होड़ है ,
जलती संवेदनाएं धुआँ ज़िन्दगी |
इस तमाशे की कीमत चुकाओगे क्या ,
हम हथेली पे रखते हैं जाँ ज़िन्दगी |
हम जमूरों की साँसें उसी हाथ हैं ,
उस मदारी के फ़न की अयाँ ज़िंदगी |
मौत के पास है सबके घर का पता ,
चार दिन को मयस्सर मकाँ ज़िंदगी |
हों सिकंदर या पोरस सभी मिट गए ,
किसका बाकी है नामो निशाँ ज़िंदगी |
- अभिनव अरुण [22112011]
Comment
आदरणीय श्री आशीष जी रचना पर विचार प्रकटीकरण के लिए धन्यवाद आपको !!
जीवन बहती नदी है। सदियों से बह रही है। सदियों तक बहेगी। हम तो इसमें उठने वाली लहरें हैं जो बनती और मिटती रहती हैं।
ashuktosh ji bahut bahut shukriya aapka !
waaaah Arun bhiya waaaah aaj to mujhe naaj ho rha hai aapki lekhni par sanvednaon ka samandar simat aaya hai yanha
बाबह्र, असरदार टानिक के जैसे लाजवाब शेर पढ़ने को मिले और दिल खुश हो गया
यह तीन शेर खास पसंद आये
हार्दिक बधाई
इस तमाशे की कीमत चुकाओगे क्या ,
हम हथेली पे रखते हैं जाँ ज़िन्दगी |
मौत के पास है सबके घर का पता ,
चार दिन को मयस्सर मकाँ ज़िंदगी |
हों सिकंदर या पोरस सभी मिट गए ,
किसका बाकी है नामो निशाँ ज़िंदगी |
साधुवाद स्वीकार करे एक स्तरीय गजल की प्रस्तुति के लिए। साधुवाद इसलिये भी कि कल्पना के पंख अनायास खुल नही पाते अगर कागज के फूल को देख कर वास्तविक रचना करनी हो किन्तु महक से लबरेज फूलरूपी गजल को आपने साकार किया है।
अभिनवजी, भाव पक्ष से सुदृढ़ इस ग़ज़ल ले लिये साधुवाद. जानता हूँ आप बह्र पर आजकल बहुत गंभीर हैं.
इस ग़ज़ल के हर शे’र पर बधाई. विशेष कर आखिरी दोनों अश’आर मुग्ध कर गये.
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