छत पे उगे जो चाँद निहारा न कीजिए
सूरजमुखी का दिन में नज़ारा न कीजिए
महफ़ूज़ रह न पायेगी आँखों की रौशनी
दीदार हुस्ने-बर्क़ खुदारा न कीजिए
शरमा के मुँह न फेर ले आईना, इसलिये
ज़ुल्फ़ों को आइने में संवारा न कीजिए
ऐसा न हो कि ख़ुद को भुला दें हुज़ूर आप
इतना भी अब ख़याल हमारा न कीजिए
एहसा किसी पे कर के, किसी को तमाम रात
ताने ख़ोदा के वासते मारा न कीजिए
दिल जिस से चौक जाये किसी राहगीर का
अब उसका नाम ले के पुकारा न कीजिए
वाइज़ नमाज़े-सुब्ह न हो जाए अब कज़ा
यूँ मैक़दे में रात गुज़ारा न कीजिए
‘अफ़सोस’ ज़िन्दगी में बज़ुज़ अपने आप के
भूले से भी किसी का सहारा न कीजिए
Comment
ऐसा न हो कि ख़ुद को भुला दें हुज़ूर आप
इतना भी अब ख़याल हमारा न कीजिए
वाह वाह गाजीपुरी से बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति है, सभी शेर मखमली अंदाज में कहे गए है, मतला से मकता तक तारीफ़ के योग्य है दाद कुबूल करे |
ऐसा न हो कि ख़ुद को भुला दें हुज़ूर आप
इतना भी अब ख़याल हमारा न कीजिए
आदाब है आदरणीय अफ़सोस जी. पूरी ग़ज़ल रुमानियत और दुनियावी पेंचोखम से गुजरती नये मंजर दिखाती चलती है.
महफ़ूज़ रह न पायेगी आँखों की रौशनी
दीदार हुस्ने-बर्क़ खुदारा न कीजिए
वल्लाह, क्या ही सलाह है.
एहसा किसी पे कर के, किसी को तमाम रात
ताने ख़ोदा के वासते मारा न कीजिए
किस महीनी को इशारा कर बैठे हुज़ूर !! .. .वाह-वाह !!!
इससे पहले कि मक्ते पे दाद दूँ जिसमें आपने तमाम एहसास उड़ेल डाला है, इस शे’र पर बधाई --
वाइज़ नमाज़े-सुब्ह न हो जाए अब कज़ा
यूँ मैक़दे में रात गुज़ारा न कीजिए.
इस बेदाग़ ग़ज़ल के लिये ढेरों दाद दे रहा हूँ, अफ़सोस साहब.
बाकमाल अशआर के लिए ढेरो दाद कबूल करें
यह तीन शेर खास पसंद आये
महफ़ूज़ रह न पायेगी आँखों की रौशनी
दीदार हुस्ने-बर्क़ खुदारा न कीजिए
ऐसा न हो कि ख़ुद को भुला दें हुज़ूर आप
इतना भी अब ख़याल हमारा न कीजिए
वाइज़ नमाज़े-सुब्ह न हो जाए अब कज़ा
यूँ मैक़दे में रात गुज़ारा न कीजिए
bahut hi achchhi lagi ye ghazal. sabhi she'r bahut achche lage.
बहुत खूबसूरत गज़ल| हर शेर पसंद आया और ये शेर बहुत पसंद आये |
महफ़ूज़ रह न पायेगी आँखों की रौशनी
दीदार हुस्ने-बर्क़ खुदारा न कीजिए
ऐसा न हो कि ख़ुद को भुला दें हुज़ूर आप
इतना भी अब ख़याल हमारा न कीजिए
वाइज़ नमाज़े-सुब्ह न हो जाए अब कज़ा
यूँ मैक़दे में रात गुज़ारा न कीजिए
ढेर सारी दाद कबूलिये|
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online