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दोहा - पंचक

आँगन में जब शूल के, हँसते हों नित फूल
अच्छे दिन का आगमन, समझो है अनुकूल।।
*
सुख चलते हों नित्य जब, लेकर टूटे पाँव
रंगत कैसे प्राप्त हो, अभिलाषा के गाँव।।
*
दुख की तपती धूप में, जलते सुख के पाँव
कैसे फिर बोलो मिले, अभिलाषा को छाँव।।
*
गिरकर भी सँभले नहीं, जो भी जन सौ बार
कब ईश्वर भी कर सके, आ उन का उद्धार।।
*
जीया  मीठी  बातकर, जो  जीवन  पर्यन्त
या तो वो शातिर बहुत, या फिर सीधा सन्त।।
*
मौलिक -अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2023 at 3:42pm — No Comments

ग़ज़ल (जाँ फिर से नुमूदार न हों ग़म के निशाँ और)

2211 -2211 -2211 -22

जाँ फिर से नुमूदार न हों ग़म के निशाँ और 

आ चल कि चलें ढूँडें कोई ऐसा जहाँ और 

दुनिया का सफ़र मुझ पे गिराँ होने लगा है

कहती है मेरी तब्अ' कि ठहरूँ न यहाँ और 

आते हैं नज़र फिर से मुझे पस्ती के इम्कान 

लगता है कि बाक़ी हैं अभी संग-ए-गिराँ और

 

भड़की हुई आतिश न बुझे ख़ून-ए-जिगर से 

इस इश्क़ के दरिया में जले आब-रसाँ और

अब सहरा की लहरें नज़र आती हैं…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 29, 2023 at 7:18pm — No Comments

ग़ज़ल नूर की- चाहें किसी को और निबाहें किसी से हम

.

221 2121 1221 212 



चाहें किसी को और निबाहें किसी से हम

ख़ुश होईये कि हो ही गए आदमी से हम.

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वो आते इस से क़ब्ल दवा काम कर गई

उकता गए हकीम की चारागरी से हम.

.

दीवार पर लगी हुई तस्वीर है अना

पीछे से झाँकती हुई इक छिपकली से हम.  

.

बन्दों में और ख़ुदा में अजब घालमेल है

हम से ही वो बना है, बने हैं उसी से हम.

.

सूरज नहीं हैं हम जो किसी रात से डरें

लड़ते रहेंगे सुब्ह तलक तीरगी से हम.

.

दुनिया की दौड़…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 28, 2023 at 5:00pm — 6 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक . . . .

नारी का कामुक करे, दागदार जब चीर ।

आँखों की प्राचीर से, झर- झर बहता नीर ।।

हार वही जो जीत का, लिख डाले इतिहास ।

तृप्ति संग तृष्णा करे, हरदम प्यासी रास ।।

जीवन मधुबन ही नहीं, इसमें हैं कुछ खार ।

दो पल खुशियों के मिलें, दुख की लगी कतार।।

मन को मन का मिल गया, मन चाहा मन मीत ।

मन के आँगन अवतरित, मन की होती  प्रीत ।।

वो नजरों के पास हैं, या नजरों से दूर ।

दिल के सारे खेल तो, दिल से…

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Added by Sushil Sarna on June 27, 2023 at 6:30pm — 6 Comments

दोहे - मिट्टी - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

जीवन दाता ने रचा, जीवन बड़ा अनन्त

मिट्टी से आरम्भ कर, मिट्टी से दे अन्त।१।

*

मिट्टी में उपजे फसल, भरे सभी का पेट

मिले इसी से जिन्दगी, मिट्टी को मत मेट।२।

*

मिट्टी बढ़कर स्वर्ण से, सदा लगाओ भाल

केवल मिट्टी ही यहाँ , सब को सकती पाल।३।

*

जन्म, ब्याह, पूजा, मरण, कर मिट्टी की बात

कहते फिर भी लोग नित, घट मिट्टी की जात।४।

*

मिट्टी को घट बोलकर, रखते स्वर्ण सँभाल

पर मिट्टी को ही चलें, जग में चाल कुचाल।५।

*

करते पंछी पेड़ सब, मिट्टी का…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2023 at 8:31pm — No Comments

दिया दिखाते सूर्य को...

दिया दिखाते सूर्य को, बनकर वो कवि सूर ।

आखर एक पढ़ा नहीं, महफिल की हैं हूर ।।

बुद्ध ...पड़े ..बेकार ..हैं, जग की रेलम पेल ।

कि गधों के सिर ताज है, चलते उलटी रेल ।।

नवाँकुरों ..के घर हुई, उस्तादों... से रार ।

आज ग़ज़ल प्राईमरी, मीर भी गिरफ्तार ।।

छूट मिली थी जो चचा , उन्हें नहीं दरकार ।

आँखों ..के ...अन्धे हुए, घर के पहरे दार ।।

ज़ुल्म करते रहे अदब, बदल काफिया…

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Added by Chetan Prakash on June 25, 2023 at 9:30am — 1 Comment

तेरे रूठने का सिलसिला

तेरे रूठने का सिलसिला कुछ ज्यादा हीं बढ़ गया है 

लगता है मुझे दिल का किराया बढ़ाना होगा 

बहुत जिये तेरी उम्मीद के साये में अब तक 

अब खुदका एक तय आशियाँ बनाना होगा 

सब जानते है पता जिसने ताजमहल बनवाया था 

मगर उन गुमशुदा…

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Added by AMAN SINHA on June 24, 2023 at 11:24pm — 1 Comment

छंदमुक्त - अनुशासन

अनुशासन के दायरे

कर्म पथ पर दृढ़ता से

बढ़ना सिखलाते,

अनुशासन की महिमा से

जन्म सफल हो जाते

मन के वशीकरण का,

अनुशासन सुंदर मंत्र

ज्यों अपनी ही धूरी पर,

चलता जीवन तंत्र।

अनुशासन को ध्येय बना लो,

लक्ष्य भेद है निश्चित

और सफलता है निमित्त,

अनुशासन लाता है,

जीवन में उजियार,

सफल बनो संसार में,

खुशहाली हो अपार

अनुशासन ही है ,

विद्या का श्रृंगार

तत्परता से दूर हो ,

मूढ़ मन के विकार।



अनिता… Continue

Added by Anita Bhatnagar on June 22, 2023 at 12:43pm — 2 Comments

दोहे - समय

जो भी घटता  घाट  पर, सिर्फ समय का खेल

बाँकी जो भी जन करें, सब कुछ तुक का मेल।१।

*

कहता है सारा जगत, समय बड़ा बलवान

इसीलिए वह माँगता, हरपल निज सम्मान।२।

*

चाहे जितना आप दो, दौड़ भाग को तूल

कर्म जरूरी है मगर, फले समय अनुकूल।३।

*

जो भी छाया धूप है, या फिर कीर्ति कलंक

समय बनाता  भूप  है, और  समय  ही रंक।४।

*

सच कहते हैं सन्त जन, नहीं समय से खेल

समय करेगा  खेल  जब, नहीं  सकेगा झेल।५।

*

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2023 at 6:50pm — 2 Comments

ग़ज़ल नूर की - अँधेरे पल में ख़ुद के ‘नूर’ का दीदार हो जाना

.

अँधेरे पल में ख़ुद के ‘नूर’ का दीदार हो जाना

ये ऐसा है कि दुनियावी बदन के पार हो जाना.

.

कई सदियों से बस किरदार बन कर थक चुका हूँ मैं

मेरी है मुख़्तसर ख़्वाहिश कहानी-कार हो जाना.

.

दुआ है, जान है जब तक मेरा ये जिस्म चल जाए

बहुत रंजीदा करता है यूँ ही बेकार हो जाना.  

.

जिन्हें मैं जोड़ने में रोज़ थोड़ा टूट जाता था

उन्हें भी रास आया है मेरा मिस्मार हो जाना.     (तक़ाबुले रदीफ़ स्वीकर करते हुए)

.

मेरी बातें वही…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 19, 2023 at 5:15pm — 6 Comments

सभी कुछ जनता हूँ मैं

मोहब्बत है या नफरत है सभी कुछ जनता हूँ मैं 

इन लहजों को अदाओं को बहुत पहचानता हूँ मैं 

तेरे आने से फैली है जो खुशबू इन हवाओं में 

इस खुशबू से उस आहट तक तुझे पहचानता हूँ मैं 

कभी कुछ सोचना चाहा ख़यालों में तुम्ही ही आए …

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Added by AMAN SINHA on June 16, 2023 at 8:39pm — 1 Comment

ग़ज़ल नूर की - बनें जब तक बना कर हम रखेंगे इस ज़माने से

.

बनें जब तक बना कर हम रखेंगे इस ज़माने से

फिर इक दिन लौट जाएँगे चले थे जिस ठिकाने से.  

.

अँधेरे की हुकूमत यूँ तो चारों सिम्त फैली है

मगर वो काँप जाता है दीये के टिमटिमाने से.

.

तो फिर दरिया तो क्या मैं इक समुन्दर भी बहा देता

अगर बिछड़ा कोई मिलता हो अश्कों के बहाने से.

.

कई बरसों से मैं बस उन की ही महफ़िल में जाता हूँ

जिन्हें कुछ फ़र्क़ पड़ता हो मेरे आने न आने से.

.

बड़प्पन ये कि औरों से लकीर अपनी बड़ी रक्खें

नहीं बढ़ता किसी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 14, 2023 at 1:00pm — 2 Comments

एक ताज़ा गज़ल

22 22 22 22 2

आँगन-आँगन अब धूप खिली है

कि..अंगड़ाई ले ..नदी ..बही है

ओस पत्तियाें हुई सतरँगी है

बसंत, बूँद हीर कनी बनी है

बागों बहार फूल कली आई

ऋुतु बसन्त भी बन वधू बिछी है

लिखा शह्र के भाग्य अभी रोना

गली-सड़क याँ, लू गर्म बही है

तपता तवा सड़क तारकोल की

मुफलिस के घर वो छान पड़ी है

आई क्या गरमी मई - जून की

मौत आम जन सर, आन पड़ी है

बहरा हो गया ख़ुदा…

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Added by Chetan Prakash on June 12, 2023 at 5:26pm — No Comments

कैसे कर लेते हो

दबा कर आँखों में आँसू यूं मुस्कुरा जाते हो तुम 

देकर खुशियाँ अपने हिस्से की हमें ग़म भुला जाते हो तुम 

कैसे अपने एहसासों को ज़ुबां पर आने नहीं देते 

दिल के बवंडर को क्यों बह जाने तुम नहीं देते 

कैसे हर बार तुम हीं अपने अरमानो को दबाते हो …

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Added by AMAN SINHA on June 10, 2023 at 6:47am — No Comments

नग़्मा (टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे)

रिश्ते सब बिखर गये

दोस्त उज़्र कर गये 

वक़्त की हवा में रुख़ों से नक़ाब उतर गये 

हम तो बस वफ़ाओं का मज़ार देखते रहे 

टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे 

ग़म की धूप धीरे-धीरे सब नमी चुरा गई

पत्तियों का नूर और कली का रूप खा गई

मेरे आशियाँ पे कोई बर्क़-सी गिरा गई

ख़ाक भी न मिल सकी कि इस तरह जला गई

ज़ख़्म हो गए हरे

खिल गए, जो थे भरे 

दब चुके तमाम दर्द फिर उभर-उभर गये 

हम तो बस अचेत-से 

मुट्ठियों की…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 9, 2023 at 1:16am — No Comments

पुकार

कैसी ये पुकार है? कैसा ये अंधकार है 

मन के भाव से दबा हुआ क्यों कर रहा गुहार है? 

क्यों है तू फंसा हुआ, बंधनों में बंधा हुआ 

अपनी भावनाओं के रस्सी में कसा हुआ 

त्याग चिंताओं को अब चिंतन की राह धरो

स्वयं पर विश्वास कर दृढ़ हो…

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Added by AMAN SINHA on June 3, 2023 at 7:26pm — No Comments

कुकुभ छंद आधारित सरस्वती गीत-वन्दनाः

दुर्दशा हुई मातृ भूमि जो, गंगा ...हुई... .पुरानी है

पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता-कथा सुनानी है !

दोहा ..सोरठा ..सवैया तज, कवि मुक्त काव्य लिखता है ।

सिद्ध छंद छोड़ काव्य वह अब, भार गिरा कर पढ़ता है ।।

ग़ज़ल उसे बहुत भाती रही, याद ,.,कविता.. दिलानी है ।

कविता का ..मर्म नहीं.. जाने , घुट्टी ..उन्हें ...पिलानी है ।।

पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !

माँ शारदे .. सुन, वरदान दे, दास काव्य का..बन…

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Added by Chetan Prakash on June 1, 2023 at 7:35am — 1 Comment

दोहा सप्तक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

जलते दीपक कर रहे, नित्य नये पड्यंत्र।

फूँका उन के  कान  में, तम ने कैसा मंत्र।१।

*

जीवनभर  बैठे  रहे, जो  नदिया  के तीर।

भाँणों ने उनको लिखा, मझधारों के वीर।२।

*

करती हो पतवार जब, दुश्मन सा व्यवहार।

कौन  करे  उम्मीद  फिर, नाव  लगेगी पार।३।

*

दुख के अपने रंग हैं, दुख की अपनी चाल।

जिसके चंगुल में हुए, जग में सभी निढाल।४।

*

लूले-लँगड़े सुख  सकल, साध  रहे  नित मौन।

आगे बढ़कर फिर भला, दुख को कुचले कौन।५।

*

दुख के जनपद हैं बहुत, सुख…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2023 at 10:25pm — 2 Comments

मोल रोटी का उसी को - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

*

अब न काली रातों में ही चूमती फिरती है लब

भोर में भी यह  उदासी  चूमती  फिरती है लब।१।

*

वो जमाना और था  जब प्यार था पर्दानशीं 

आज तो हर बेहयायी चूमती फिरती है लब।२।

*

जेब खाली की न घर में  पूछ होती आजकल

धन मिले तो स्वर्ग दासी चूमती फिरती है लब।३।

*

मोल रोटी का उसी को  हम  से  बढ़कर ज्ञात है

नित्य जिसके सिर्फ बासी चूमती फिरती है लब।४।

*

हर थकन से  मुक्ति  पाती  देह  जर्जर आज भी

जब गले लग झट से बच्ची…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 29, 2023 at 11:00am — 2 Comments

है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं

1212 1122 1212 22

है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं

मुनाफ़िकों की है बस्ती कि वो टहलते हैं

के चार सू यहाँ मरते हैं लोग तनहाई

बुझे- बुझे से हैं बूढ़े कहीं निकलते हैं

कि ख़ौफनाक है मंज़र ये नफ़रतों दुनिया

ये ज़ालिमों की है बस्ती खला बहलते हैं

वो शर्म मर गयी आँखों की ग़मज़दा हम हैं

करें भी क्या अदब वाले यहाँ से चलते हैं

गुलाम देते सलामी वो शाह भी खुश हैं

कि मार डाले हैं दुश्मन जहाँ जो…

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Added by Chetan Prakash on May 29, 2023 at 7:30am — No Comments

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