दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
रिश्ते नकली फूल से, देते नहीं सुगंध ।
अर्थ रार में खो गए, आपस के संबंध ।।
रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।
मिलने की ओझल हुई, संबंधों में प्यास ।।
गैरों से रिश्ते बने, अपनों से हैं दूर ।
खून खून से अब हुआ, मिलने से मजबूर ।।
झूठी हैं अनुभूतियाँ , कृत्रिम हुई मिठास ।
रिश्तों को आते नहीं, अब रिश्ते ही रास ।।
आँगन में खिंचने लगी, नफरत की दीवार ।
रिश्तों के प्रसून गए , अर्थ रार से हार ।।
उठा जनाजा इस तरफ, रुदन हुआ खामोश ।
बँटवारे में खो गया , जीवन संचित कोष ।।
व्यर्थ अर्थ की रार है, करो द्वन्द्व अब बन्द ।
फिसल न जाए हाथ से, रिश्तों का मकरंद ।।
सुशील सरना / 7-6-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर
रिश्तों के प्रसून गए
देख लीजिएगा
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